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इनवेस्टर्स समिट: तो यूपी बनेगा निवेश प्रदेश, निवेशकों के दिल में उतरने की तैयारी

raghvendra
Published on: 9 Feb 2018 11:55 AM IST
इनवेस्टर्स समिट: तो यूपी बनेगा निवेश प्रदेश, निवेशकों के दिल में उतरने की तैयारी
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अनुराग शुक्ला

लखनऊ: इन चमचमाती लाइटों के ठीक उलट यूपी में निवेश की रोशनी कभी नहीं दिखती। निवेश का सूरज करीब-करीब अस्ताचल की तरफ ही जाता दिखाई देता है। तभी तो 19 साल, तीन दलों की सरकार और कई तरह के राजनीतिक प्रयोग इस प्रदेश की सूरत-ए-हाल नहीं सुधार सके। अब लाइटों से सजे-धजे इन रास्तों से योगी सरकार की कोशिश है कि वह निवेशकों के दिल और फिर जेब तक उतर जाए। यही वजह है कि सरकार पूरी चमक-दमक के साथ यूपी इनवेस्टर्स समिट करने के लिए आतुर है। सरकार के मंत्री ‘इनवेस्टर्स समिट’ की तैयारी 6 महीने से कर रहे हैं। प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना देश में छह जगह रोड शो कर चुके हैं।

सरकार ने 21-22 फरवरी को होने वाली इनवेस्टर्स समिट को नाक का सवाल बना लिया है। इस समिट की विशेषता है कि इसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली समेत अनेक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। कई दिग्गज उद्योगपतियों के अलावा कई मल्टीनेशनल कंपनियों के सीईओ भी समिट में आएंगे। जिस तरह की तैयारी और गंभीरता है, उससे लगता है कि शायद निवेश के मामले में अब उत्तर प्रदेश भी प्रिफर्ड डेस्टिनेशन बन जाएगा। प्रदेश के इतिहास में पहली बार उद्योग लगाने को एक खास माहौल तैयार हुआ है।

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सरकार के प्रवक्ता कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने दावा किया है कि लगभग 5000 डेलीगेट्स का पंजीकरण समिट के लिए हुआ है। 1200 एक्जिबिटर्स मौजूद रहेंगे। थाईलैंड की डिप्टी कॉमर्स मिनिस्टर मिस क्षतिमा के अलावा मुकेश अम्बानी, गौतम अडानी, कुमारमंगलम बिड़ला, टाटा से के.एन.चंद्रशेखरन, आईटीसी के संजीव पुरी, एसेल ग्रुप के सुभाष चंद्रा भी समिट में हिस्सा लेंगे। सरकार को उम्मीद है कि उम्मीद से ज्यादा निवेश होगा। वहीं सरकार की तरफ से इनवेस्टर समिट की तैयारी में मुस्तैद आईआईडीसी अनूप चंद्र पांडेय कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि इससे पहले निवेश लाने की कोशिश नहीं की गयी। पहले भी कोशिशें हुई हैं पर समस्या सिर्फ प्लानिंग और एक्जीक्यूशन की थी। सरकार इसी पर काम कर रही है। हम फूलप्रूफ प्लानिंग और इंप्लीमेंटेशन पर काम कर रहे हैं। एक खास बात और है कि हमारे वरिष्ठ मंत्री और मुख्यमंत्री खुद ही रोड शो कर रहे हैं।

ऐसे में निवेशकों में एक सकारात्मक मैसेज गया है। उन्हें लगने लगा है कि इस बार के प्रयास में सरकार किसी तरह की कोई कोताही नहीं कर रही है और सारे प्रयास पर खुद मुख्यमंत्री की नजर है। ऐसे में बड़े से बड़े निवेशक का विश्वास जगा है और हम अब हर साल इन्वेस्टर्स मीट करेंगे। सरकार की निवेश आमंत्रण की कोशिश रंग लाती दिख भी रही है। मुंबई और बेंगलुरु में एयरपोर्ट बनाने वाले जीवीके ग्रुप को हाल में नवी मुंबई का एयरपोर्ट बनाने का काम किया है। ग्रुप के मालिक प्रसन्न रेड्डी ने उत्तर प्रदेश में निवेश की इच्छा जाहिर की है। हैदराबाद में रोड शो के दौरान जीवीके ग्रुप ने यूपी में निवेश की इच्छा व्यक्त की। जीवीके ग्रुप ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को इच्छुक है। हैदाराबाद में सी.आई.आई. हैदराबाद के अध्यक्ष तथा पूजो लानो ग्रुप के मालिक अभिजीत पाई ने भी निवेश को लेकर इच्छा जाहिर की है।

निवेश की राह आसान नहीं

उत्तर प्रदेश में निवेश की अगर बात की जाए तो यह इतना आसान नहीं है। 2004-05 के आधार मूल्यों को अगर संदर्भ माना जाए तो नीति आयोग की रिपोर्ट है कि साल 2013-14 में उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास की दर 1.95 थी वहीं साल 2014-15 में यह दर घटकर 1.93 आ गयी। यह वही समय है जब अखिलेश यादव अपनी सरकार में निवेश की भरमार होने का दावा कर रहे थे। उन्होंने अपनी औद्योगिक नीति को 5 सितंबर 2012 को पारित कराया। उस समय निवेश की लाइन लगी होने का दावा किया गया था।

वर्ष 1999 से 2011 तक उत्तर प्रदेश की जीडीपी का आकार 1,75,159 करोड़ रुपये से बढक़र 5,95,055 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यूपी की जीडीपी में कुल 41.71 फीसदी बढ़ोतरी हुई जबकि देश की जीडीपी का आकार इसी काल में 300.69 फीसदी बढ़ गया। इसी समय में देश की जीडीपी में उत्तर प्रदेश का योगदान 9.8 फीसदी से घटकर 8.3 फीसदी रह गया। इसका सीधा मतलब है कि देश के दूसरे राज्यों ने अपने आर्थिक प्रदर्शन से यूपी को बहुत पीछे छोड़ दिया। यूपी देश में किस तरह पिछड़ता गया इसका एक उदाहरण औद्योगिक विकास की दर भी सामने ला रही है। 1994-95 से लेकर 2003-04 तक उत्तर प्रदेश का औद्योगिक विकास 3.86 फीसदी की सालाना दर से आगे बढ़ा। जबकि दूसरी औद्योगिक नीति आने के बाद यह सुधरने लगा। साल 2005 से 2011 तक के समय में भारत के औद्योगिक विकास की दर 8.65 थी जबकि यूपी में औद्योगिक विकास की दर 7.15 फीसदी थी।

बेरोजगारी दूर करने के लिए निवेश है जरूरी

बेरोजगारी पर जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 5 करोड़ से ज्यादा बेरोजगार हैं। राज्य में करीब 55 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं। बेरोजगारी के आंकड़ों के आधार पर उत्तर प्रदेश 11वें पायदान पर आता है। उत्तर प्रदेश में प्रति 1000 में 39 व्यक्ति बेरोजगार हैं और देश में यह आंकड़ा 50 का है। भाजपा की योगी सरकार ने 2017 की ताजा तरीन औद्योगिक नीति जारी की है। अब सूरत बदलने की मंशा से जारी भाजपा सरकार की नई नीति से अचानक किसी उम्मीद का न जगना स्वाभाविक है, क्योंकि उत्तर प्रदेश पहले भी उत्तम प्रदेश, ऊर्जा प्रदेश, अति उत्तम प्रदेश समेत कई तरह के कागजी नारों से दो चार हो चुका है।

नीतियां प्रदेश के विकास में कामयाब नहीं है। वहीं डेढ़ लाइन यूपी में निवेश की पूरी कहानी बयां करती है- 7 मुख्यमंत्री, 4 औद्योगिक नीतियां और देश में होने वाले कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 0.02 फीसदी ही उत्तर प्रदेश में आ रहा है। वह भी तब जब देश के सबसे ज्यादा आबादी के साथ ही प्रदेश को देश में सबसे बड़े बाजार होने का गौरव भी हासिल है।

गौरतलब है कि यूपी सरकार ने अगले 5 साल में पांच लाख (500000) करोड़ का निवेश व बीस लाख (2000000) रोजगार के अवसर सृजित करने का संकल्प किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसे सिर्फ निवेश नहीं यूपी की प्रतिष्ठा से जोडक़र देख रहे हैं। तभी तो अपना भारत/ न्यूजट्रैक को जारी एक एक्सक्लूसिव प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा, ‘इनवेस्टर्स समिट प्रदेश की छवि को उभारने व निखारने का एक प्रतिष्ठित आयोजन है।’

1998 में पहली बार आई थी औद्योगिक नीति

उत्तर प्रदेश में वैश्वीकरण के बाद पहली बार औद्योगिक नीति 1998 में आई। यह औद्योगिक नीति गरीबी और बेरोजगारी मिटाने के लिए आर्थिक विकास पर खास ध्यान देने वाली थी। इस नीति में 1998 में छोटे स्तर पर कुछ आर्थिक सुधार लागू किए गए, लेकिन कैबिनेट से 19 फरवरी, 2004 को मंजूरी मिलने के बाद लागू दूसरी औद्योगिक विकास नीति ने आर्थिक सुधारों की गाड़ी को यूपी में कुछ हद तक रफ्तार दी। कहना गलत नहीं होगा कि 2007 के बाद से इस गाड़ी ने अपना गियर बदल लिया। पर उत्तर प्रदेश में यह गाड़ी पटरी पर आने के बाद उतरती दिखी तभी तो 2007-2012 तक के काल में यूपी में करीब 55 हजार करोड़ का निवेश आया जो 2012 से 2016 तक के समय में घटकर करीब 27 हजार करोड़ पर जा धंसा।

पिछले 10 सालों में कानपुर की लेदर इंडस्ट्री की 400 यूनिट में से 146 बंद हो चुकी हैं। 2016 में आए ‘स्टेट इन्वेस्टमेंट पोटेंशियल इंडेक्स’ में 21 राज्यों में उत्तर प्रदेश का स्थान बीसवां था। उत्तर प्रदेश की जीडीपी 1991 में 5.58 फीसदी थी जो 2006-07 में अब तक के सबसे ज्यादा स्तर 8.1 फीसदी तक पहुंच गयी। साल 2011-12 तक यह फिर से 6 फीसदी की दर पर लुढक़ गयी।

विपक्षी दलों को भरोसा नहीं

दरअसल यूपी में निवेश न आने की वजह यूपी में बिजली और कानून व्यवस्था बताई जाती रही है। चाहे मुलायम सिंह यादव के जमाने का उत्तम प्रदेश रहा हो, मायावती का सर्वोत्तम प्रदेश का दावा हो या फिर अखिलेश का यंग यूपी का चेहरा, निवेशकों को कुछ नहीं लुभा सका है। इस बार योगी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है पर विपक्ष को इस पर शंका है। सपा के विधायक और अखिलेश की टीम के अहम सदस्य सुनील साजन के मुताबिक प्रदेश में निवेशक आएं तो सबको खुशी हो पर निवेशकों के आने की कुछ शर्तें होती है। सबसे जरूरी व्यापारी को सुरक्षा चाहिए।

जब राजधानी में लूट हो रही है और लोगों को रात-रात भर जगकर दहशत में जीना पड़ रहा है तो ऐसे में कौन सा निवेशक उत्तर प्रदेश की तरफ रुख करेगा। उद्योगपति आ सकते हैं, लेकिन वो मुख्यमंत्री के साथ चाय नाश्ता कर वह वापस लौट जाएंगे। यहां स्थितियां सुधारे बिना निवेश नहीं आ सकता है। बसपा के विधायक विनय शंकर तिवारी तो सरकार की साख पर ही सवाल उठा रहे हैं। वे कहते हैं, ‘सरकार ने अपनी लोकप्रियता तो मैनेज कर रखी है पर अपनी साख खो चुकी है। अब लोकप्रियता भी छीजने लगी है। आने वाले समय में उद्योगपतियों समेत पूरी जनता जान जाएगी कि इनकी बातें और वादे पानी का बुलबुला हैं। ये समिट सिर्फ एक छलावा है, इससे अधिक कुछ नहीं।’

क्या किया मायावती, अखिलेश व अन्य मुख्यमंत्रियों ने

यूपी में औद्योगिक नीति जारी करने वाले मुख्यमंत्री हर बार बड़े-बडे दावे करते हैं, लेकिन यूपी में औद्योगिक निवेश जस का तस ही रह जाता है। 1995 में मुलायम सिंह यादव ब्रिटेन की यात्रा पर निवेश आमंत्रित करने गये पर निवेश नहीं आ सका। 1997 में मायावती जापान और कोरिया की यात्रा पर गयीं। इस यात्रा का कोई फल नहीं निकल सका। इसके बाद भाजपा के मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता मुंबई गए और दावा किया कि उद्यमी प्रदेश में 27 हजार करोड़ का निवेश करने को तैयार हैं पर कोई निवेश नहीं हुआ।

साल 2003 में मायावती मुंबई उद्यमियों से मिलने गयीं पर एक रुपये का निवेश नहीं ला सकीं। इसके बाद यूरोप और अमरीका की पांच देशों की यात्रा में वह कांशीराम, अपने भाई व उनके परिवार के साथ निवेश आमंत्रित करने गईं। वहां पर यूएसबीआईसी( यूनाइटेड स्टेट बिजनेस इंडिया काउंसिल) के एक कार्यक्रम में गयीं, नियाग्रा फाल गईं, ओरलैंडों गई और लंदन जाकर उन्होंने एक प्रेसनोट जारी कराया कि लंदनवासी मायावती की तुलना मार्गेट थैचर से कर उन्हें देखने उमड़ पड़े पर विकास नहीं हो सका। साल 2004 के बाद तो 8 साल तक प्रदेश में औद्योगिक विकास नीति ही नहीं आ सकी।

महज कागजी दावे ही हुए

मायावती के शासनकाल के वित्तीय वर्ष 2008 में विकास दर 7.32 फीसदी थी वहीं 2009, 2010, 2011 में यह दर 6.99 फीसदी, 6.58 फीसदी और 5.58 फीसदी रही। अखिलेश यादव के कार्यकाल के पहले चार साल में यह दर 2013, 2014, 2015, 2016 में क्रमश: 5.78, 4.95, 6.00 और 7.13 थी। वहीं इस अवधि में बिहार की विकास दर कभी भी 9 फीसदी से नीचे नहीं गयी और वर्ष 2011 में यह दर सबसे ज्यादा 15.63 फीसदी थी। यह बात और है कि मायावती की सत्ता जाने के बाद 2012 में आए अखिलेश यादव ने आकर यह दावा किया किया कि उन्होंने प्रदेश में निवेश के द्वार खोल दिए हैं। उनका दावा था कि उनकी औद्योगिक नीति आने के बाद से 78681 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं।

असलियत यह रही कि इस पाइपलाइन का मुंह खुला ही नहीं और यह दावे से सिर्फ कागजों में रह गये और 4 साल में महज 27374.48 करोड़ का ही कुल निवेश हो सका। अखिलेश यादव के राज में बड़ी कंपनी जैसे सैमसंग, रिलायंस सीमेंट, एचसीएल, टाटा जैसे नाम तो आए पर रंग नहीं दिखा सके। अखिलेश यादव ने तो जुलाई 2013 में अमरीकी शहरों में रोड शो करने की तैयारी की थी। उन्हें बोस्टन, न्यूयार्क, शिकागो समेत कई शहरों में रोड शो करना था पर बोस्टन में उनके कैबिनेट मंत्री आजम खान के साथ हुए दुव्र्यवहार के कारण इसे स्थगित करना पड़ा। अखिलेश यादव न्यूयार्क गए जरूर पर यूएसआईबीसी के चेयरमैन और प्रेसिडेंट रॉन सोमर्स ने उनसे होटल में जाकर मुलाकात की।

इनवेस्टर्स समिट प्रदेश की छवि को उभारने व निखारने का एक प्रतिष्ठित आयोजन है।

योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश इस समय अराजकता का शिकार है, ऐसे में यह समिट भी ध्यान भटकाने के लिए है। भाजपा के लोग सिर्फ जुमले और भटकाने की राजनीति करते हैं। बिना कानून व्यवस्था सुधारे कौन सा निवेशक आएगा।

राम गोविंद चौधरी, नेता प्रतिपक्ष

इस सराकर में कानून की धज्जी उड़ी हुई है। ऐसे में निवेशक यहां कैसे आएगा।

लालजी वर्मा, बसपा विधायक दल नेता



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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