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जैसा नाम वैसा काम, ITI छात्र ने ऐसे दिया 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं' का संदेश
पने टीवी चैनलों और बड़े-बड़े समाजसेवियों द्वारा बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ के जागरूकता अभियान जरूर देंखे होगे l लेकिन एक ऐसा छात्र जो अपनी टीशर्ट पर 'बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ का पोस्टर चस्पा' कर रोजाना 5 किलोमीटर साइकिल चलाकर लोगों को जागरूक करता हैl
कानपुर: आपने टीवी चैनलों और बड़े-बड़े समाजसेवियों द्वारा बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ के जागरूकता अभियान जरूर देंखे होगे l लेकिन एक ऐसा छात्र जो अपनी टीशर्ट पर 'बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ' का पोस्टर चस्पा कर रोजाना 5 किलोमीटर साइकिल चलाकर लोगों को जागरूक करता हैl
इसके बाद पढ़ाई के लिए कॉलेज जाता है, आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी इसके साहस में कोई कमी नहीं है l कानपुर में यह युवा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। उसकी इस पहल को लोगों का भरपूर समर्थन भी मिल रहा है l
बर्रा थाना क्षेत्र के बर्रा 7 में रहने वाले राजेंद्र सिंह प्राइवेट नौकरी करते हैl परिवार में दो बेटे है। बड़ा बेटा संजय और छोटा बेटा केके सिंह उर्फ़ चकित। वहीं इनकी पत्नी का 2016 में हार्ट अटैक से मौत हो गई थीl
सभी को किया 'चकित'
अपने काम से सभी को 'चकित' करने वाले चकित ने सरकारी कॉलेज से कॉरपेंटर ट्रेड से आईटीआई कर रहे हैl समाजसेवा का जज्बा चकित के अंदर कूट-कूट कर भरा हैl उसने बताया कि रोजाना 5 किलोमीटर साइकिल चलाकर लोगों को बेटियों को बचाने और उन्हें पढ़ाने के लिए जागरूक करने का काम काफी अच्छा लगने लगा हैl शुरुआत में लोगों ने पहले मेरा मजाक उड़ाया, लेकिन अब वहीं लोग मेरी कद्र करने लगे हैl चकित ने कहा कि 'मैं यह काम बीते 11 माह से कर रहा हूं। मैं सुबह उठकर मंदिरों, पार्कों और सार्वजानिक स्थानों पर जाकर लोगों से बात करता हूं, उन्हें बेटियों को बचाने के लिए जागरुक करता हूंl इसके बाद वहां से लौटने के बाद अपने कॉलेज जाता हूंl
बेटी को बनाएं काबिल
उसने बताया कि जिस तरह से देश के कई प्रदेशो में लिंग अनुपात में बड़ा अंतर आया हैl जिसमे बेटियों की संख्या लगातार गिरती चली जा रही है। लोग कोख में ही बेटी की हत्या कर जघन अपराध कर रहे हैंl ऐसा करने वालों को ही जागरुक कर रहा हूं कि बेटी को बोझ न समझे l बल्कि बेटी को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाएं l जिस प्रकार देश के सर्वोच्च पद पर प्रतिभा पाटिल बैठ सकती है तो आप की बेटी क्यों नही बैठ सकती है l
ताउम्र करूंगा यह काम
चकित का कहना है कि मै आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हूं। मेरे अन्दर लालसा थी कि मै बेटियों के लिए कुछ करूंl मेरे पास साइकिल और कागज कलम के आलावा कुछ नहीं था। बस मैं एक दिन यही लालसा लेकर खुद पर पोस्टर चस्पा कर निकल पड़ा l मेरा लोगों ने बहुत मजाक भी उड़ाया लेकिन उनकी यही हंसी मेरे प्रेरणा का काम करती चली गई l उसने कहा कि मैं ता उम्र निस्वार्थ भाव से यह काम करता रहूंगा वो भी l मेरे इस अभियान ने कुछ ही बच्चियों की जिन्दगी बचा ली तो मेरा जीवन सफल हो जायेगा l
बचपन से ही था जज्बा
चकित के पिता बताते है कि जब यह छोटा था तभी इसके अन्दर समाजसेवा का जज्बा था l जब चकित अपने घर के बाहर झाड़ू लगाता था तो वह अपने घर बाहर के साथ ही साथ कई घरो के बाहर लगे कूड़े के ढेरो को साफ कर देता था l यदि मोहल्ले में नाली भर जाती थी तो खुद उसकी सफाई के लिए जुट जाता था l कुछ भी हो लेकिन मैं अपने बेटे के इस काम से बहुत प्रभावित हूं और उसका उत्साहवर्धन करता हूँ l