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मां रक्तदंतिका शक्ति पीठ मंदिर, दर्शन से चमक जाता है भाग्य

बेतवा नदी के किनारे अलग-अलग पहाड़ों पर बने ऐतिहासिक एवं प्राचीन शक्तिपीठ मंदिरों की अलग पहचानो व मान्यताएं हैं।

Afsar Haq
Report By Afsar HaqPublished By Shraddha
Published on: 18 April 2021 9:11 AM GMT
मां रक्तदंतिका शक्ति पीठ मंदिर की विशेषता
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मां रक्तदंतिका शक्ति पीठ मंदिर

जालौन : बेतवा नदी के किनारे अलग-अलग पहाड़ों पर बने ऐतिहासिक एवं प्राचीन शक्तिपीठ मंदिरों की अलग पहचानो व मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि चेत एवं शरदीय नवरात्रि के अलावा मकर संक्रांति पर भव्य मेले का आयोजन होता है। श्रद्धालुओं में दोनों शक्तिपीठों पर अटूट विश्वास बना हुआ है। वैसे तो बुंदेलखंड कोने कोने से श्रद्धालु आए दिन मंदिरों पर आकर रक्तदंतिका देवी एवं मां अक्षरा देवी पर मत्था टेकने के साथ मन्नते भी मांगते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है।

डकोर ब्लॉक की ग्राम पंचायत सैदनगर से निकली बेतवा नदी किनारे एक ओर पहाड़ों पर बसी रक्तदंतिका शक्तिपीठ का वर्णन दुर्गा सप्तशती में मिलता है। पहाड़ पर देवी रक्तदंतिका विराजमान हैं। यह मंदिर सदियों पुराना है। पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था। यहां पर बलि देने का प्रावधान था। कोई भी साधक रात में मंदिर परिसर में नहीं रुक सकता था। कई वर्षों पहले लंका वाले महाराज आकर रुक गए थे उन्होंने यहां पर साधना शुरू की। वह किसी से बोलते चालते नहीं थे। उनके समय से ही नवरात्र के दिनों में कुछ साधक देवी भक्त मंदिर में रुकने लगे थे पहाड़ में देवी के मंदिर के साथ ही दूसरी तरफ एक हनुमान जी का मंदिर बना हुआ है।

इस मंदिर की विशेषता

मंदिर की विशेषता यह है कि देवी मंदिर में दो शिलाएं रखी हुई हैं। यह शिलाएं रक्तिम हैं। सती के दांत यहां पर गिरे थे। बताया जाता है कि अगर शिलाओं को पानी से धो दिया जाए तो कुछ ही देर में यह शिलाएं फिर से रक्तिम हो जाती हैं। अब इस मंदिर में एक देवी प्रतिमा की स्थापना कर दी गई है। वास्तिवक पूजा दंत शिलाओं की ही होती है। मंदिर के पुजारी भगवान दास फलाहारी ने बताया की गर्भ गृह में किसी को जाने की अनुमति नहीं है।

पहाड़ पर बने कुंड की कई मान्यताएं

मां अक्षरा देवी शक्तिपीठ

सैदनगर में बेतवा नदी के किनारे दूसरी ओर पहाड़ पर स्थित मां अक्षरा देवी शक्ति पीठ का मंदिर बना हुआ है। जानकारों के अनुसार अध्यात्मिक पौराणिक धरोहरें में उनमें अक्षरा देवी धाम एक है। बताते हैं कि ईसा पूर्व यहां पर चेदिवंश का शासन हुआ करता था जल परिवहन का अस्तित्व खत्म हो जाने के बाद अक्षरा देवी धाम मुख्य धारा से कट गया था। बाद में दक्षिण भारत से आये संन्यासी ब्रह्म कृष्ण स्वामी ने यहां पर प्रवास किया। उन्हीं की प्रेरणा से मंदिर का रख रखाव नए सिरे से किया गया। मंदिर के परिसर में बने विशाल सरोवर का सुंदरीकरण उन्हीं की प्रेरणा से हो सका। बताते हैं कि लिपि का उदगम अक्षरा पीठ से हुआ जिससे यहां पर बौद्धिक साधना ही मान्य है।

यहां पर नारियल तक चढ़ाने की परंपरा नहीं है क्योंकि इसे बलि पूजा का अंग माना जाता है।यह मंदिर जनपद ही नहीं बहुत दूर दराज तक विख्यात है। यह भी सिद्ध शक्ति पीठों में एक है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु देवी अक्षरा के दर्शन करने को आते हैं। नवरात्र में अपार भीड़ होती है। नवरात्र के बाद पड़ने वाली एकादशी को यहां मेला भी लगता है। मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है बल्कि अक्षरों पर लगने वाले साढ़े तीन मात्राओं के एक पिंड की पूजा होती है। माना जाता है कि लिपि की शुरूआत अक्षरा देवी धाम से हुई है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र आज भी बना हुआ है।मां रक्तदंतिका शक्ति पीठ मंदिर, दर्शन से चमक जाता है भाग्य

मां अक्षरा देवी शक्तिपीठ

पहाड़ पर बना कुंड की है कई मान्यताएं

मां अक्षरा देवी शक्ति पीठ के पंडा राजेंद्र बिधौलिया ने बताया कि पहाड़ पर बने कुंड की कई विशेषताएं हैं। कई सालों पहले 3 साल के लिए गांव में सूखा पड़ा हुआ था लेकिन कुंड का पानी कभी नहीं सूखा था वह बराबर भरा हुआ था और आज भी वह भरा रहता है। कुंड का पानी सुबह के टाइम मां अक्षरा देवी के स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाता है जबकि कुंड की गहराई 15 फीट के लगभग की बताई जा रही है लेकिन कभी भी कुंड का पानी भीषण गर्मी में भी नहीं सूखता है।

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