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Jalaun News: जानिए वो मंदिर जहां मां सरस्वती के रौद्र रूप की होती है उपासना, भारत में ऐसे हैं सिर्फ दो शक्तिपीठ
Jalaun News: जनपद जालौन में एक ऐतिहासिक मंदिर ऐसा है, जो अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज और बुंदेलखंड के आल्हा-ऊदल के बीच युद्ध का गवाह रहा है।
Jalaun News: नवरात्र शक्ति की उपासना का प्रमुख पर्व है। इसमें मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। पूरे देश में नवरात्र के आखिरी दिन देवी मां के मंदिरों में पूजा-अर्चना की जा रही है। जनपद जालौन में एक ऐतिहासिक मंदिर ऐसा है, जो अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज और बुंदेलखंड के आल्हा-ऊदल के बीच युद्ध का गवाह रहा है। यहां मां सरस्वती के रौद्र रूप की उपासना होती है। यहां न केवल नवरात्रि में, बल्कि पूरे साल दूर-दूर से लोग बड़ी संख्या में दर्शन करने आते रहते हैं।
मां शारदा शक्तिपीठ के नाम से है विख्यात
यह मंदिर जनपद की उरई तहसील के अकोढ़ी बैरागढ़ ग्राम में स्थित है। यहां पर ज्ञान की देवी मां सरस्वती शक्ति के रूप में विराजमान हैं। यहां मां शारदा के रौद्र रूप की पूजा होती है। देवी जी की प्राचीन अष्टभुजी प्रतिमा सफेद पत्थर से निर्मित है। जनश्रुतियों के अनुसार मां शारदा के शक्ति पीठ की स्थापना चंदेलकालीन राजा टोडलमल द्वारा ग्यारहवीं सदी में कराई गई थी। जबकि जानकारों के अनुसार यह मंदिर इससे भी प्राचीन बताया गया है। मां शारदा की अद्भुत प्रतिमा के प्राकट्य को लेकर स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि मूर्ति मंदिर के पीछे बने कुंड से निकली थी। शारदीय और चैत्र नवरात्र में यहां पूरे नौ दिन तक साधकों का जमावड़ा रहता है, जो अपनी साधना में लीन रहते हैं। मां की कृपादृष्टि प्राप्त करते हैं। नवमी तिथि को यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें दूरदराज के दर्शनार्थी लाखों की संख्या में आकर देवी मां की कृपा प्राप्त करते हैं।
पृथ्वीराज और आल्हा-ऊदल के युद्ध का गवाह बैरागढ़
बैरागढ़ स्थित शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध का साक्षी है, पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड को जीतने के उद्देश्य से ग्यारहवीं सदी के बुंदेलखंड के तत्कालीन चंदेल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढ़ाई की थी। उस समय चंदेलों की राजधानी महोबा थी। आल्हा-ऊदल राजा परमाल की सेना के सबसे वीर योद्धा थे। बैरागढ़ के युद्ध में आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में परास्त कर दिया था। बताया गया कि आल्हा और उदल मां शारदा के उपासक थे। जिसमें आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सकेगा। ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुये अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी। उसके बाद आल्हा ने विजय के प्रतीक स्वरूप मां शारदा के चरणों में 40 मन बजनी सांग समर्पित की थी। जिसके बाद उन्होंने युद्ध से वैराग्य ले लिया था। वह सांग आज भी मंदिर के मठ के शिखर पर दिखती है, जिसकी ऊंचाई लगभग 30 फीट है। आल्हा और पृथ्वीराज के बीच हुए युद्ध के कारण इस स्थान का नाम बैरागढ़ पड़ गया।
पूरे देश में दो ही शक्तिपीठ हैं मां शारदा के
मां शारदा के पूरे देश में सिर्फ दो ही शक्तिपीठ हैं, जिसमें एक जालौन जनपद के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना जनपद के मैहर में है। मंदिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूरदराज से श्रद्धालु यहां आते रहते हैं। मंदिर के पुजारी श्याम जी महाराज बताते हैं कि मां शारदा के दर्शन करने प्राचीन समय में आल्हा ऊदाल आते थे। उन्होंने बताया कि लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर चैत्र और शारदीय नवरात्रि में दर्शन करने आते हैं और माई उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
दिन में कई रूप बदलती हैं मां शारदा
यह भी अद्भुत ही है कि मां शारदा दिन के अलग-अलग समय में भक्तों को अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं। शक्तिपीठ के बारे में दर्शन करने वाले लोगों के अनुसार मूर्ति कई रूपों में दिखाई देती है। सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है, तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है। इस प्रकार माई अपने भक्तों को नारी के हर रूप का दर्शन कराती हैं।
कुंड में नहाने से दूर हो जाते हैं चर्म रोग!
मंदिर के पुजारी श्याम महाराज के मुताबिक मंदिर के पीछे एक चमत्कारी कुंड है। ऐसी मान्यता है कि मां शारदा शक्तिपीठ में बने इस कुंड में किसी भी प्रकार के चर्म रोग से ग्रस्त व्यक्ति अगर एक बार स्नान कर ले तो उसके चर्म रोग कुछ ही दिनों में जड़ से खत्म हो जाते हैं। यहां पर कुंड में नहाने के लिए लोगों का तांता लगा रहता है। कुछ चर्म रोग से पीड़ित कुंड का पानी बोतल में भरकर अपने घर ले जाते हैं और उसको साल भर इस्तेमाल करते हैं।