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Jalaun News: शहीद योगेंद्र पाल को बाइक रैली निकालकर दी गई श्रद्धांजलि, मनाया गया कारगिल विजय दिवस
Jalaun News: भूतपूर्व सैनिकों एवं परिजनों ने शहीद योगेंद्र पाल की याद में बाइक रैली मुख्यालय से लेकर गांव तक निकल कर उन्हें श्रद्धांजलि देकर उनकी शहादत को याद किया।
Jalaun News: जालौन में कारगिल विजय दिवस के रूप में शहीद हुए वीर जवान की याद में मुख्यालय से लेकर गांव तक बाइक रैली निकालकर उनकी शहादत को याद किया गया। सेना के कर्नल ने कहा कि कारगिल में जिस तरह दुश्मनो को मुंहतोड़ जवाब दिया है। वे आज भी भारत देश के वीर सपूतों को जिंदगी भर याद रखेंगे। भारत देश पर आंख उठाने वाले दुश्मनों का जवान आज भी मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं।
527 जवान हुए थे शहीद
पूरा देश आज कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मना रहा है। आज के दिन को इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है। इस दिन हमारे देश के 527 वीरों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी। उनकी शहादत की वजह से हम अपना सिर फक्र से ऊंचा कर पा रहे हैं। 26 जुलाई को हम अपने उन बहादुर सैनिकों की याद में मनाते हैं। जिन्होंने वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।
90 दिनों तक चला युद्ध
बता दें कि 90 दिनों तक चलने वाले कारगिल युद्ध में देश 2 लाख से ज्यादा सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया था और जिस बहादुरी से भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की घुसपैठ का जवाब दिया उसे कभी नहीं भूला जा सकता है। इस युद्ध में यूपी के जालौन से रहने वाले योगेंद्र पाल ने हिस्सा लिया और अपने विरोधियों को धूल चटाई और घायल होने के बाद भी अंतिम सांस भी देश के नाम पर न्योछावर कर दी। शहीद योगेंद्र पाल की शहादत पर उनका परिवार गमगीन है तो यहां के ग्रामीण शहीद का गांव कहलाने पर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं।
शहीद योगेंद्र पाल की याद में गांव में बनाया गया स्मारक
कारगिल युद्ध में शहीद योगेंद्र पाल ने साल 1996 में भारतीय सेना की ईएम6-631 रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। उन्होंने 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई तक करीब 90 दिनों तक चले युद्ध में दुश्मनों को भारतीय सेना का लोहा मनवाया था। 3 महीने तक चलने वाले इस युद्ध में -30 डिग्री के तापमान में भारतीय सेना का हर जवान अपनी आखिरी सांस तक लड़ा। शहीद योगेंद्र पाल कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को युद्ध के बाद सर्च अभियान के दौरान माइंस पर पैर पड़ने के कारण घायल हो गए थे और 7 अगस्त 1999 को शहीद हो गए थे। उनकी याद में चिल्ली गांव में प्रवेश द्वार और स्मारक बनाया गया है।