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जन औषधि योजना: डॉक्टरों की कमाई पर शामत, दवाओं की गुणवत्ता पर उठे सवाल

केंद्र सरकार की जन औषधि केंद्र योजना का उद्देश्य आम जनता को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराना है। राज्य के सभी जिलों में जन औषधि मेडिकल स्टोर खुल रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में भी इसके काउंटर खोलने की तैयारी है, लेकिन इसके विस्तार में कई अड़चनें भी हैं।

priyankajoshi
Published on: 25 Aug 2017 5:36 PM IST
जन औषधि योजना: डॉक्टरों की कमाई पर शामत, दवाओं की गुणवत्ता पर उठे सवाल
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अमित यादव

लखनऊ : केंद्र सरकार की जन औषधि केंद्र योजना का उद्देश्य आम जनता को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराना है। राज्य के सभी जिलों में जन औषधि मेडिकल स्टोर खुल रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में भी इसके काउंटर खोलने की तैयारी है, लेकिन इसके विस्तार में कई अड़चनें भी हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाने लगे हैं। योजना के फायदे और नुकसान दोनों गिनाए जा रहे हैं। चूंकि दवा बनाने वाली कंपनियों को जेनरिक दवाओं के चलते अपने व्यापार में घाटा होने की संभावना है। इसको लेकर फार्मा इंडस्ट्री में मचा शोर साफ सुना जा सकता है।

मेडिकल स्टोर वालों का कहना है कि यदि व्यापार में घाटा हुआ तो वह हड़ताल कर सकते हैं। निजी चिकित्सक जेनेरिक दवाएं लिखने को तैयार नहीं है। असल में इसकी सबसे बड़ी वजह दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच कमीशन खोरी का बुना वह मजबूत जाल है जिसके फंदे में फंसकर आम जनता वर्षों से अपनी जेबें ढीली करती रही है। वैसे, प्रदेश में 303 प्राइवेट जन औषधि केंद्र खुल चुके हैं। सरकारी अस्पतालों में 1000 जन औषधि केंद्र खोलने का लक्ष्य है। राजधानी के अस्पतालों में जगह भी चिन्हित हो चुकी है।

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सवाल उठ रहे हैं

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ इकाई के अध्यक्ष डॉ पी.के. गुप्ता जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जेनरिक दवाओं पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इन दवाओं को लेकर बहुत सी चीज गड़बड़ दिख रही है। अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि दवाएं किस फार्मूले के तहत बन रही हैं। केंद्र सरकार को दवाओं के निर्माण से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए।

जेनरिक दवाओं को लेकर सरकारी डॉक्टर भी असमंजस में हैं क्योंकि केंद्र से मिले नए निर्देश के तहत उन्हें ज्यादातर जेनेरिक दवाओं को लिखना है। उनका कहना है कि यदि मरीज की हालत गंभीर हो और जेनरिक दवा न हो तो ऐसी स्थिति में वह क्या करेंगे? यह स्पष्ट नहीं है। दूसरी ओर प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को जेनेरिक दवाओं पर यकीन नहीं है। उनके मुताबिक, एक ओर तो जेनेरिक दवाओं को ब्रांड रहित कहा जाता है तो दूसरी ओर इन दवाओं को बनाने का जिम्मा उन्हीं ब्रांडेड कंपनियों को मिला है जिनकी दवाएं बाजार में धड़ल्ले से बिक रही हैं। ऐसे में जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है।

जेनेरिक मेडिसिन स्टोर खोलने के लिए नियम

-कोई भी व्यक्ति जिसके पास फार्मासिस्ट की डिग्री या डिप्लोमा हो। या कोई एनजीओ या संस्थान स्टोर खोलने के लिए 120 वर्ग फुट की जगह होनी चाहिए।

-रिटेल ड्रग लाइसेंस तथा टिन नंबर होना चाहिए।

-पिछले तीन सालों का फाइनेंशियल ब्यौरा देना होगा।

दुकानदारों को लाभ

-जन औषधि स्टोर खोलने के लिए सरकार संबंधित व्यक्ति या संस्थान को 2 लाख रुपए देती है। हार्डवेयर आदि लगाने के लिए अलग से 50 हजार रुपये की मदद मिलती है।

-स्टोर मालिकों को जेनेरिक दवाएं एमआरपी से 16 प्रतिशत कम दाम में उपलब्ध कराई जाती है।

-बिक्री के आंकड़ों के मुताबिक स्टोर मालिकों को इंसेंटिव भी मिलता है।

-यह जानकारी कस्टमर केयर नंबर 18001808080 पर ले सकते हैं

जन औषधि योजना या जेनेरिक दवाओं संबंधी कोई भी जानकारी बीपीपीआई विभाग के कस्टमर केयर नंबर पर फोन कर के ली जा सकती है।

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क्या है जन औषधि योजना ?

जन औषधि योजना केंद्र सरकार का एक अभियान है जिसके अंतर्गत कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता की जेनेरिक दवाइयां मिलती हैं। सामान्य दवाओं और जेनेरिक दवाओं की कीमत में 5 से 10 गुना का अंतर होता है। यह योजना 23 अप्रैल 2008 में शुरू हुई थी।

जेनेरिक दवाएं : जेनेरिक दवाएं बाजारों में उपलब्ध ब्रांडेड दवाओं के समान होती हैं। पर इनका कोई ब्रांड नहीं होता है और ये पेटेंट मुक्त होती हैं। यह दवाएं ब्रांडेड दवाओं की अपेक्षा कम कीमत पर मिलती हैं। जन औषधि केंद्रों पर 600 से भी अधिक जेनेरिक दवाएं मिलती हैं।

बीपीपीआई करती है इसका संचालन : ब्यूरो ऑफ फार्मा (बीपीपीआई) सभी जन औषधि अभियान का देखरेख करती है। यह भारत सरकार के फार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा बनाया गया विशेष विभाग है। लोगों को जागरूक करने का काम भी बीपीपीआई का ही है।

जन औषधि केंद्र संचालक खुश

जन औषधि मेडिकल स्टोर कुर्सी रोड, जानकीपुरम में दुकान के संचालक अजय शुक्ला ने बताया कि अब धीरे-धीरे लोग जेनेरिक दवाओं के बारे में जान रहे हैं। पहले से अधिक दवाएं हमारे स्टोर से निकल रही हैं। करीब 600 प्रकार की जेनेरिक दवाओं के प्रकार हमारे पास हैं।

जन औषधि केंद्र, गोल मार्केट

इस स्टोर के संचालक नवीन ने बताया कि नई दुकान होने के बावजूद लोग दवाओं को खरीदने आने लगे हैं। इसके अलावा जेनेरिक दवाओं के बारे में जानकारी लेने के लिए भी लोग आ रहे हैं। जेनेरिक दवाओं के बारे में लोगों को जागरुक किया जा रहा है। इस नए स्टोर में जेनेरिक दवाओं की करीब 600 वेराटियां मिल रही हैं।

जौनपुर-जन औषधि केंद्र, केराकत

दुकान के मालिक राजीव ने बताया कि पिछले एक साल से रोजाना लोग जेनेरिक दवाओं को खरीदने आ रहे हैं। लोग इन दवाओं पर भरोसा जता रहे हैं। इससे गरीब लोगों को काफी सहूलियत मिली है।

वाराणसी, जन औषधि केंद्र, मैदागिन

दुकान के संचालक विक्रम नाथ जायसवाल ने बताया कि साल भर पहले तो रिस्पांस बहुत अच्छा नहीं था, लेकिन इस समय काफी बढ़िया तरीके से स्टोर चल रहा है।

हमारे यहां ऑर्डर लेकर भी दवाएं मंगाई जा रही है। जेनेरिक दवाओं के दाम ब्रांडेड दवाओं के दाम से कई गुना अंतर में मिलते हैं। इससे हमको भी व्यापार करने में अधिक भार नहीं पड़ता है। कम दाम में अधिक संख्या में दवा हमें बेचने को मिल जाती हैं।

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निजी डॉक्टर सशंकित

डॉ जीएस पाठक ने कहा कि जेनेरिक दवाएं सामान्य बीमारियों में एक हद तक काम तो कर सकती हैं लेकिन गंभीर स्थितियों में ये दवाएं असर करेंगी यह उम्मीद कम है। जेनेरिक किस आधार पर तैयार हो रही है यह पता नहीं है। जेनेरिक दवाओं के दाम बहुत कम रखे गए हैं। आखिर यह कैसे संभव है कि सभी गुणवत्ता को इतने सस्ते दामों पर उपलब्ध हो जाएं। इस पर सवाल उठ रहे हैं। मरीजों को सस्ती दवाएं तो मिल जा रही हैं लेकिन वे कितनी कारगर साबित होंगी इस पर शक है।

इंदिरानगर के डॉक्टर का क्या कहना है?

डॉ परमेश्वर का कहना है कि जेनेरिक दवाएं तो ठीक हैं लेकिन जो मरीज ब्रांडेड दवाओं को खरीदने में सक्षम हैं उनको बिना ब्रांड की दवा नहीं खरीदनी चाहिए। किस तरह से कौन सी दवा काम कर रही है इस पर प्रश्न है। इसके अलावा मरीजों को डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने का दबाव नहीं बनाना चाहिए। इसका सीधा असर मरीज के इलाज पर पड़ेगा। जेनेरिक दवाओं के काम को अभी आंका जा रहा है।

सरकारी डॉक्टर ने कहा कि अस्पताल में मरीजों को जेनेरिक दवाएं दी जाती हैं। जैसे स्टॉक आता है उस हिसाब से दवाओं को मरीजों में बांटा जाता है। डॉक्टरों को अधिक से अधिक जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश हैं।

सीएमएस बलरामपुर अस्पताल के डॉक्टर ने क्या कहा?

डॉ ऋषि सक्सेना ने बताया मरीजों को अधिकांश जेनेरिक दवाएं ही दी जाती हैं। अस्पताल में वितरण काउंटर पर ये दवाएं मिलती हैं। बहुत से मरीज डॉक्टरों को दिखाते समय कहते हैं कि उन्हें जेनेरिक मेडिसिन लिखी जाए। अस्पताल में उपलब्ध जेनेरिक दवाओं के आधार पर डॉक्टर दवाईयां लिखते हैं।

सीएमएस सिविल अस्पताल के डॉक्टर ने क्या बताया?

डॉ आशुतोष दुबे ने कहा, जेनेरिक दवाओं में उच्च क्वालिटी वाले गुण होते हैं। दवाओं की कार्यक्षमता भी बेहतर है। कैंसर जैसी सीरियस बीमारी में भी ये दवाएं असर करती हैं। दवाओं की कीमत कई गुना कम होने से मरीजों को काफी राहत मिली है।

डॉ वेद प्रकाश, मेडिकल कॉलेज

मेडिकल कॉलेज के डॉ वेद प्रकाश का कहना है कि जन औषधि योजना के बारे में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। जेनेरिक दवाओं का मरीजों पर असर भी दिख रहा है। यूपी भर में जन औषधि योजना को विकसित करने की योजना तैयार है। लोगों को राहत पहुंचाने का लक्ष्य है जिससे कि दवा खरीदने में अधिक पैसे खर्च नहीं करने पड़े।

वर्जेश चर्तुवेदी, जन औषधि योजना लखनऊ प्रभारी

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इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

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