TRENDING TAGS :
Janeshwar Mishra Jayanti: जनेश्वर मिश्र को क्यों पुकारा जाता था छोटे लोहिया,दिलचस्प है इसकी दास्तान
Janeshwar Mishra Jayanti: 5 अगस्त 1933 को बलिया के शुभ नाथहि गांव में पैदा हुए जनेश्वर मिश्र समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के बड़े अनुयायियों में गिने जाते हैं।
Janeshwar Mishra Jayanti: कई बार केंद्रीय मंत्री और सांसद रहने वाले जनेश्वर मिश्र छोटे लोहिया के नाम से प्रसिद्ध रहे। समाजवादी पुरोधा डॉ.राम मनोहर लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का उनके जीवन पर गहरा असर दिखता था। जब भी समाजवादी राजनीति की चर्चा होती है तो जनेश्वर मिश्र का नाम लिए बिना यह चर्चा पूरी नहीं होती।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी रहे जनेश्वर मिश्र का जन्म 1933 में आज ही के दिन हुआ था। समाजवादी नेता और कार्यकर्ता उन्हें छोटे लोहिया के नाम से भी पुकारते रहे हैं। उन्हें छोटे लोहिया का नाम कैसे मिला,इसकी भी एक दिलचस्प दास्तान है।
बलिया में हुआ जन्म और प्रयाग बनी कर्मभूमि
5 अगस्त 1933 को बलिया के शुभ नाथहि गांव में पैदा हुए जनेश्वर मिश्र समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के बड़े अनुयायियों में गिने जाते हैं। उनके पिता का नाम रंजीत मिश्र और माता का नाम बासमती था। छात्र जीवन में ही उनके ऊपर लोहिया के विचारों का प्रभाव पड़ गया था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचारों से भी वे काफी प्रभावित थे।
समाजवादी युवजन सभा से जुड़ने के बाद जनेश्वर मिश्र पहली बार डॉक्टर लोहिया के संपर्क में आए थे। उनका जन्म भले ही बलिया में हुआ हो मगर उनकी कर्मभूमि संगम नगरी ही रही। वे 1953 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए पहुंचे थे और इसके बाद वे लगातार सियासी मैदान में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते रहे।
कैसे छोटे लोहिया के नाम से प्रसिद्ध हुए
समाजवादी विचारक जनेश्वर मिश्र के छोटे लोहिया के रूप में प्रसिद्ध होने की दिलचस्प कहानी है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री नारद राय का कहना है कि जनेश्वर मिश्र ने लंबे समय तक राम मनोहर लोहिया के साथ काम किया था। इस दौरान उन्होंने लोहिया के विचारों और काम करने के तौर-तरीकों को अपने जीवन में भी अपना लिया था। ऐसा लगता था कि वे डॉक्टर लोहिया की परछाईं की तरह हैं।
उन्होंने बताया कि डॉक्टर लोहिया के निधन के बाद इलाहाबाद में बड़ी जनसभा हो रही थी। इस जनसभा के दौरान समाजवादी नेता छुन्नू ने कहा कि जनेश्वर मिश्र के अंदर राम मनोहर लोहिया के सारे गुण हैं और इसलिए वे एक तरह से 'छोटे लोहिया' हैं।
इसके बाद जब जनेश्वर मिश्र फूलपुर से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने उन्हें छोटे लोहिया का नाम दिया। इसके बाद से ही जनेश्वर मिश्र का नाम छोटे लोहिया मशहूर हो गया। बाद में कई कार्यक्रमों के दौरान उन्हें छोटे लोहिया के नाम से ही संबोधित किया जाने लगा। काफी संख्या में लोग उन्हें इसी नाम से संबोधित किया करते थे।
1969 में बने पहली बार सांसद
बलिया से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद पहुंचे थे और उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में दाखिला लिया था। उन दिनों वे हिन्दू हॉस्टल में रहते थे। स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही वे छात्र राजनीति से जुड़े। छात्रों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को लेकर उन्होंने कई आंदोलन छेड़े। 1967 में उनके सियासी जीवन की शुरुआत हुई। समाजवादी नेता छुन्नन गुरू व सालिगराम जायसवाल के अनुरोध पर वे फूलपुर से विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे। लोकसभा चुनाव के सात दिन पहले उन्हें जेल से रिहा किया गया। इस चुनाव में जनेश्वर मिश्र को हार का सामना करना पड़ा था।
बाद में विजय लक्ष्मी पंडित के राजदूत बनने के बाद 1969 में इस सीट पर उपचुनाव कराया गया। जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जीत हासिल की। वे फूलपुर से चुनाव जीतने वाले पहले गैर कांग्रेसी सांसद थे।
बाद में उन्होंने 1972 के चुनाव में कमला बहुगुणा को और वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। वर्ष 1977 में वे वीपी सिंह को इलाहाबाद सीट पर हराकर लोकसभा पहुंचे।
कई प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम
जनेश्वर मिश्र ने कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, एचडी देवगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल के मंत्रिमंडल में उन्होंने बतौर राज्य मंत्री और कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया। पहली बार वे केंद्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने थे। फिर ऊर्जा , परंपरागत ऊर्जा, खनन मंत्रालय, परिवहन, संचार, रेल, जल संसाधन, पेट्रोलियम मंत्रालय भी उन्हें मिले।
जीवन के आखिरी समय तक उन्होंने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। वे जमीन से जुड़े हुए नेता थे कई बार केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद उनके पास न तो कोई बंगला था और न अपना कोई निजी वाहन। वे चार बार लोकसभा के लिए चुने गए जबकि 1996,2000 और 2006 में वे राज्यसभा के सदस्य बने।
22 जनवरी 2010 को हार्ट अटैक की वजह से उनका इलाहाबाद में निधन हुआ था। उत्तर प्रदेश में सपा के शासनकाल में उनके नाम पर लखनऊ में जनेश्वर मिश्र पार्क का निर्माण कराया गया था।