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सोती रही यूपी सरकार, हत्यारे अगस्त ने निगल ली ढाई हजार से ज्यादा जान
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनते ही स्वास्थ्य विभाग की प्रेजेंटेशन देखी गई। इसमें बड़े दावे किए गए। इसमें स्वाइन फ्लू और जेई (जापानी इंसेफ्लाइटिस) जैसे गंभीर रोगों को प्रदेश से पूरी तरह खत्म करने की चर्चा भी हुई। लोगों की उम्मीद थी कि अब प्रदेश में ये दोनों गंभीर बीमारियां कहर नहीं बरपा पाएंगी।
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लेकिन अगर स्वाइन फ्लू और जेई के केसों और मौतों के आंकडे चौंका देने वाले हैं। इन मौतों में ज्यादा संख्या बच्चों की है। इसके बाद भी जब सूबे के सीएम खुलेआम ये बयान देते हैं, कि लोग अपने बच्चों को पालने की जिम्मेदारी भी सरकार पर छोड़ देंगे तो निश्चित रूप से एक बड़ा सवाल जहन में उठता है–कि क्या सरकार में आम जनता की वास्तविकता में कोई सुनवाई हो रही है या नहीं...
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स्वाइन फ्लू के 2 हजार से ज्यादा मामले, लखनऊ अव्वल
प्रदेश में अब तक स्वाइन फ्लू के 2 हजार पांच सौ बीस मामले प्रकाश में आए हैं और पंजीकृत हुए हैं। इसमें हैरानी की बात ये है, कि 1450 मामले अकेले राजधानी से हैं। इनमें से पिछले 24 घंटों में ही 38 नए मामले पंजीकृत हुए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार के स्वाइन फ्लू पर लगाम लगाने के सारे दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं और इस रोग की चपेट में आकर अब तक करीब 5 दर्जन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।
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खुद बीजेपी नेता भी स्वाइन फ्लू की चपेट में
यूपी में योगी सरकार बनने के बाद आम जनता ही नहीं बल्कि माननीय भी इसकी चपेट में आ चुके हैं। इसमें बीजेपी के सरधना विधायक संगीत सोम खुद स्वाइन फ्लू की चपेट में आ चुके हैं। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के एमएलसी सुनील सिंह साजन, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया तक इसकी जद में आ चुके हैं।
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इसी बीमारी के चलते राष्ट्रीय लोक दल के दिवंगत प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान का 1 अगस्त 2016 को देहावसान हो गया था। माननीयों के साथ ही सरकारी अस्पतालों के डाक्टर और कर्मचारी तक इस रोग की चपेट में आ चुके हैं। सरकार इस पर अंकुश लगाने के दावे तो कर रही है परंतु इसके रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। लेकिन इसके बाद भी स्वाइन फ्लू के आगे प्रदेश सरकार नतमस्तक दिखाई पड़ रही है।
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जेई ने छीन लीं 10 हजार जिंदगियां
योगी सरकार में जापानी इंसेफ्लाइटिस के कहर को रोकने के बड़े वादे हुए लेकिन सरकारी आंकड़ो पर ही गौर करें तो प्रदेश के 38 जिलों के जेई के कहर के चलते संवेदनशील घोषित करके टीकाकरण का कार्य शुरू किया गया। इसके बावजूद जेई के केसों में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आ रही है। इसके उलट जेई पीडितों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। इनमें भी जेई पीडितों में 90 प्रतिशत से अधिक बच्चे शामिल हैं। इसमें बड़ी संख्या में पूर्वी उत्तर प्रदेश से केस सामने आ रहे हैं।
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खुद सीएम के गृह जनपद गोरखपुर में लोगों को टीकाकरण की जानकारी तक नहीं है।ऐसे में सरकार द्वारा चलाया जा रहा टीकाकरण अभियान कितना प्रभावी है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
सरकारी आंकडो के मुताबिक अब तक जेई से प्रदेश में करीब 10 हजार जानें जा चुकी हैं। उसमें भी साढ़े 6 हजार से अधिक बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं।हालांकि गैर सरकारी संख्या इससे कहीं ज्यादा है।
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सरकार नोटिफिकेशन जारी करके ठोंक रही पीठ
योगी सरकार ने इन दो गंभीर बीमारियों से बचने के लिए नोटिफिकेशन जारी करके अपनी पीठ ठोंकना शुरू कर दिया है। इनमें सरकार ने स्कूलों में असेंबली न करवाने, फुल स्लीव कपड़े पहनने से लेकर मास्क का उपयोग करने की नसीहत दी थी। इसके लिए प्रदेश सरकार के जिला विद्यालय निरीक्षकों और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने अपने अपने जनपद में नोटफिेकेशन जारी करते हुए कहा था, कि सरकार का मकसद बच्चों को इन गंभीर रोगों की चपेट में आने से बचाना है।
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लखनऊ डीआईओएस डा. मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि हमने इस संबंध में शासन के निर्देशों के अनुरूप एहतियात के तौर पर ऐसा निर्देश जारी किया है। इसके अलावा हर स्कूल में एक शिक्षक को इसका नोडल शिक्षक बनाया गया है कि वह बच्चों को इस संबंध में जागरूक करे।
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पर बड़ा सवाल ये है कि महज नोटिफिकेशन जारी करने और टीकाकरण अभियान को शुरू कर देने भर से सरकार के कर्तव्यों की इतिश्री कैसे हो सकती है, वो भी तब जब इन गंभीर रोगों के आंकडो में कोई कमी होती नहीं दिख रही है।