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तैयारियों के साथ साथ जापानी बुखार के मरीज बढ़े
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: दो वर्ष पहले गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौत को लेकर सरकार को किरकिरी झेलनी पड़ी थी। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के बयान अगस्त में तो मौतें होती ही हैं, ने तो सरकार की राष्ट्रीय फलक पर फजीहत करा दी थी। ऑक्सीजन कांड के दोषी डॉक्टरों और अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बाद बीते वर्ष इंसेफेलाइटिस से मौतों के आंकड़े में आश्चर्य में डालने वाली कमी के बाद सरकार के नुमाइंदों ने खूब वाहवाही बटोरी।
अफसरों ने दावा किया कि यह टीकाकरण, अस्पतालों में बढ़ी सुविधाओं और सीएचसी-पीएचसी को सुविधा संपन्न करने का नतीजा है। लेकिन पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री द्वारा बीआरडी मेडिकल कॉलेज में की गई समीक्षा बैठक में खुद डॉक्टरों ने यह आंकड़ा प्रस्तुत कर सभी को चौंका दिया कि जापानी बुखार के मरीज बढ़ रहे हैं। वह भी उन महीनों में जब स्थितियां अमूमन सामान्य रहती हैं। आंकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2014 में जापानी इंसेफेलाइटिस के एक भी मरीज नहीं मिले थे। जबकि बीते पहली जनवरी से लेकर 15 जून तक के आंकड़े 20 मौतों की तस्दीक कर रहे हैं। यह आंकड़ा इसलिए भी चिंताजनक है क्योकि जेई और एईएस के सर्वाधिक मरीज जुलाई से सितम्बर महीने के बीच में आते हैं।
आंकड़ों की बाजीगरी
दरअसल, प्रदेश सरकार के कड़े तेवर के बाद बीआरडी मेडिकल कॉलेज ने इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों को लेकर आंकड़ा देने में ही अघोषित सेंसरसिप लगा रखी है। मरीजों की भर्ती से लेकर मौतों का आंकड़ा बीआरडी प्रशासन उपलब्ध नहीं करा रहा है। लेकिन जिम्मेदारों के आंकड़ों की बाजीगिरी खुद मुख्यमंत्री के सामने खुल गई जब वह बीते 22 जून को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अफसरों के साथ गोरखपुर और बस्ती मंडल में इंसेफेलाइटिस की तैयारियों को लेकर बैठक कर रहे थे। अफसरों ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए उनके मुताबिक एईएस के मामलों में तो कमी दर्ज हुई है, लेकिन जापानी इंसेफेलाइटिस के मामले में पांच साल में 20 गुना अधिक मरीजों की मौत हुई है।
सीएम ने अफसरों को फटकारा
मुख्यमंत्री ने अफसरों को फटकारते हुए कहा कि जेई-एईएस की रोकथाम को लेकर सभी संभव उपाय करें। जेई के मरीज क्यों बढ़ रहे हैं, इसकी ठीक से पड़ताल करें। योगी ने यह भी कहा कि मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार है तो बीआरडी में स्थितियां काफी हद तक काबू में हैं। इंसेफेलाइटिस को देखते हुए देश की नजर पूर्वी यूपी पर है। इसे पॉजीटिव तरीके से हैंडल करें। मीडिया को सकारात्मक सूचनाएं दें। एडी हेल्थ डॉ. पुष्कर आनंद कहते हैं कि जेई के मरीजों की संख्या बढऩे के कारणों की तलाश की जा रही है। लगातार प्रयासों का असर एईएस मरीजों की घटी संख्या के रूप में देखा जा सकता है।
सरकार का हालात काबू में होने का दावा
सरकार का दावा है कि चिकित्सा शिक्षा, महिला कल्याण, बाल विकास, पंचायती राज और नगर निगम की टीमों ने मिलकर लगातार पेयजल, स्वच्छता, टीकाकारण के साथ जागरूकता कार्यक्रम चलाए हैं, जिसका नतीजा है कि बिहार का मुजफ्फरपुर जहां चमकी बुखार से तप रहा है, वहीं बीआरडी मेडिकल कॉलेज में काफी हद तक हालात काबू में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार में मेडिकल एजुकेशन और ट्रेनिंग के डायरेक्टर केके गुप्ता बताते हैं कि गांव-कस्बों में जागरूकता कार्यक्रमों के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं का भी विस्तार हुआ है। इसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर अस्पतालों में अधिक बेड लगाने, डॉक्टरों, नर्सों और पारा-मेडिकल स्टाफ की संख्या बढ़ाने जैसी सुविधाएं शामिल हैं। कई विभागों के एक साथ काम करने के चलते इंसेफेलाइटिस पर प्रभावी अंकुश लगाने में कामयाबी मिली है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डा.गणेश कुमार बताते हैं कि जापानी इंसेफेलाइटिस के टीकाकरण का असर दिख रहा है। 2018 में मई महीने तक 168 मरीज आए थे, जिसमें 57 की मौत हो गई थी। इस साल इसी अवधि में भर्ती 78 मरीजों में से 15 की मौत हुई है।
सरकार का दावा, ऐसे रोकी महामारी
स्वास्थ्य महकमे से जुड़े अफसर दावा कर रहे हैं कि पिछले दो साल में सरकार द्वारा चलाए जा रहे टीकाकरण और दस्तक अभियान का एईएस पर अंकुश लगाने में प्रभावी असर पड़ा है। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री ने अफसरों को स्पष्ट निर्देश दिया था कि गांवों से एईएस के मरीज सीधे बीआरडी मेडिकल कॉलेज में नहीं पहुंचने चाहिए। गांव और कस्बे में स्थित पीएचसी और सीएचसी पर बच्चों को प्राथमिक इलाज दिया जाए। इसके बाद जिला अस्पताल में उन्हें इलाज दें। इसके बाद गंभीर मरीजों को ही बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया जाए। इसके साथ ही डॉक्टरों की जवाबदेही तय करने के लिए डेथ के साथ पेशेंट ऑडिट की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है जिसके तहत जिलों के चिकित्सकों को मरीज को बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर करने का कारण बताना होता है। साथ में यह भी बताना होता है कि मरीज को क्या इलाज मिला है। नतीजा यह हुआ कि 2017 में अगस्त महीने में बीआरडी में भर्ती एईस मरीजों के आंकड़े में भारी कमी दर्ज हुई। साल 2017 के अगस्त महीने में बीआरडी में भर्ती मरीजों की संख्या जहां 409 थी, वहीं संख्या 2018 अगस्त में घटकर 80 पर सिमट गई।
साल भर में तीन गुना बढ़े जेई मरीज
प्रदेश में इंसेफेलाइटिस प्रभावित 38 जिलों में एईएस मरीजों की संख्या भले ही कम हुई हो, लेकिन जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के मामले बढ़े हैं। इस साल बीआरडी में भर्ती एईएस के करीब 90 मरीजों में से 20 में जेई की पुष्टि हुई है यानी कुल भर्ती मरीजों में से करीब 23 फीसदी जापानी इंसेफेलाइटिस से पीडि़त हैं। यह पिछले साल की तुलना में तीन गुना से भी ज्यादा है। जेई के मरीजों की बढ़ी संख्या को सीएम ने गंभीरता से लिया है और जिम्मेदारों से जवाब मांगा है। सीएम ने प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य और कमिश्नर से रिपोर्ट मांगी है कि आखिर जेई के मरीजों की संख्या क्यों बढ़ रही है। मंडल में सबसे ज्यादा जेई के मामले गोरखपुर और कुशीनगर में मिले हैं। सीएम ने टीकाकरण अभियान पर अधिकारियों को संजीदा रहने के निर्देश दिए। सीएम ने इंसेफेलाइटिस प्रभावित जिलों के सीएमओ को एक-एक कर सीएचसी, पीएचसी, मिनी पीडियाट्रिक आईसीयू, दवाओं की उपलब्धता, डॉक्टरों की मौजूदगी को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। सीएम ने अफसरों को निर्देशित करते हुए कहा है कि बरसात शुरू हो चुकी है। इंसेफेलाइटिस का पीक सीजन आने वाला है। इसे देखते हुए विभाग पूरी तरह से तैयार रहे। किसी स्तर पर कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए।
धान के खेतों में पाया जाता है क्यूलेक्स मच्छर
पूर्वी यूपी में एक बार फिर से जेई का वायरस एक बार फिर से सक्रिय हो गया है। यह वायरस मच्छर के काटने से फैलता है। इस साल बीआरडी मेडिकल कालेज में भर्ती हर चौथे मरीज में जेई की पुष्टि हुई है। वर्ष 2005 के बाद दूसरी बार करीब 25 फीसदी मरीजों में जेई की पुष्टि हुई है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जनवरी से 22 जून तक भर्ती हुए 90 मरीजों में से 20 में इंसेफेलाइटिस की वजह जेई वायरस ही है। क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होने वाले जेई वायरस ने पूर्वी यूपी में 1978 से तबाही मचा रखी है। 90 दशक के अंत में पहली बार इस बात की पुष्टि हुई कि बीमार बच्चों में प्लेवी वायरस से हो रहा है। इस वायरस की पहली बार पहचान जापान में हुई। इसलिए इसे जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) भी कहते हैं। इस वायरस का वाहक सुअर या बगुला होता है। इंसानों को यह बीमारी क्यूलेक्स मच्छर काटने से होती है। यह मच्छर धान के खेतों में पाया जाता है। मच्छर जब सुअर या बगुले का खून चूसता है तो वायरस उसके शरीर में आ जाता है। यही मच्छर जब इंसानों का खून चूसता है तो वायरस इंसानों के शरीर में प्रवेश कर जाता है।