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पंचायत चुनावः जौनपुर में उड़ीं कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां, कोई नियम नहीं
न तो कोविड 19 के नियमों का पालन किया जा रहा है नहीं आयोग के नियम गांव में प्रभावी नजर आ रहे है।
जौनपुर: पंचायत चुनाव में आयोग की गाइड लाइन का पालन कराने एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिला प्रशासन के अधिकारी भले ही परिश्रम कर रहे हैं लेकिन गांव की सरकार में भागीदारी करने वाले ग्रामीण नेता आयोग की किसी भी गाइड लाइन का अनुपालन नहीं कर रहे हैं। न तो कोविड 19 के नियमों का पालन किया जा रहा है नहीं आयोग के नियम गांव में प्रभावी नजर आ रहे है। पंचायत चुनाव में वोटों की खरीद फरोख्त से लेकर चुनाव जीतने के लिए हर अनुचित कृत्य को अंजाम दिया जा रहा है और मतदाता भी अपने पांच साल की कीमत वसूलने में जरा भी संकोच नहीं कर रहा है।
कोरोना गाइडलाइन का नहीं हो रहा पालन
यहाँ बतादे कि प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के कारण शासन स्तर से लगातार कोविड 19 के गाइड लाइन के पालन का आदेश निर्गत किया जा रहा है। दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी' का स्लोगन जारी किया जा रहा है। लेकिन पंचायत के इस चुनाव में प्रचार के दौरान कोविड 19 के गाइड लाइन का जरा भी पालन नहीं किया जा रहा है। मदताओ को पटाने के लिये शक्ति प्रदर्शन खूब किया जा रहा है। इसके अलावां मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्याशी बच्चे भी खेलाने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
यहां एक बात और है कि महानगरों में रोटी रोजी के लिए रहने वाले पंचायत चुनाव में हिस्सेदारी करने के लिए महानगरों से गांव की ओर चल दिये हैं । महानगरों जैसे महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात आदि स्थानों पर कोरोना का कहर तेजी से फैला हुआ है। अगर पंचायत चुनाव के दौरान यह संक्रमण गांव में प्रवेश कर गया तो उसके भयावहता का आकलन करना कठिन होगा। इसे रोकने के लिए अभी तक कोई भी गाइड लाइन शासन प्रशासन की ओर से जारी नहीं हो सकी है।
आयोग की गाइड लाइन के अनुसार चुनाव प्रचार में कहीं भी सामूहिक भोज प्रतिबंधित है लेकिन गांव में नजारा यह देखने को मिल रहा है कि लगभग हर रात प्रत्याशीयों के सौजन्य से कहीं न कहीं मतदाताओं को पटाने के लिये भोज चल रहा है। इतना ही नहीं छक कर दारू मुर्गा की दावतें खुले आम देखी जा रही है। भीड़ लगा कर हर खेल किया जा रहा है। सूत्र की माने तो प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए वोटों की खरीद फरोख्त करने में जरा भी संकोच नहीं कर रहे हैं तो मतदाता भी अपना पांच साल पांच सौ से लगायत एक अथवा दो हजार रूपये में बेंच रहा है।
इस तरह के खेल में दलित एवं आदिवासी मतदाताओं की रूझान अधिक देखने को मिल रही है। इनको लोकतंत्र से कोई सरोकार नहीं है इनका इमान केवल पैसा शराब और मांस आदि है जहां से उपरोक्त सुविधायें मिल रही है उसी का जिन्दाबाद कर रहे हैं। ऐसे मतदाताओं को खरीदने की होड़ लगी हुई है। ताकि गांव की सरकार का मुखिया बन सके। यहां पर सवाल यह खड़ा होता है कि जो पैसे के बल पर वोट खरीद कर गांव की सरकार का मुखिया बनेगा क्या वह गांव के विकास के प्रति गम्भीर अथवा इमानदार बन सकेगा।
इस तरह अब तो यह साफ हो गया है कि लोकतंत्र के इस महापर्व को खरीद फरोख्त का खुला स्वरूप प्रदान कर दिया गया है। सरकारी अमला केवल कागजी बाजीगरी का खेल कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर रहा है। लगभग प्रतिदिन पुलिस विभाग की विज्ञप्तियां जारी हो रही है कि पुलिस ने इतनी शराब यहाँ पकड़ा जो पंचायत के चुनाव में उपयोग के लिए ले जायी जा रही थी। यानी सरकारी तंत्र को पता है कि वोटरों को कैसे लुभाने का खेल चल रहा है। फिर भी कागजी रोकथाम का सिलसिला चल रहा है और मतदाता खुले आम बिक रहा है।