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Jaunpur News: वृत्ति नहीं व्रत है पत्रकारिता, लोकतंत्र में संरक्षण का काम मीडिया ही करेगी -प्रो. राम मोहन पाठक

Jaunpur News: मुख्य अतिथि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास एवं मदनमोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि वर्तमान समय में भाषा की ताकत को समझना होगा। साथ ही भाषा की सामासिक संस्कृति को अपनाना होगा।

Kapil Dev Maurya
Published on: 12 Aug 2023 8:34 PM IST
Jaunpur News: वृत्ति नहीं व्रत है पत्रकारिता, लोकतंत्र में संरक्षण का काम मीडिया ही करेगी -प्रो. राम मोहन पाठक
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(Pic: Newstrack)

Jaunpur News: वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में सामासिक संस्कृति के संवाहक: भाषा, साहित्य और मीडिया विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शनिवार को समापन सत्र हुआ। यह सत्र ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में चला। इसमें विश्व के कई देशों के शिक्षकों और साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास एवं मदनमोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. राममोहन पाठक ने कहा कि वर्तमान समय में भाषा की ताकत को समझना होगा। साथ ही भाषा की सामासिक संस्कृति को अपनाना होगा। भावना और व्यावहारिक स्तर पर साहित्य में सामासिक संस्कृति को लाना जरूरी है। उन्होंने कहा अपनी माटी अपना देश का चिंतन साहित्य से ही आया है। मीडिया पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकारिता वृत्ति नहीं व्रत है। लोकतंत्र में संरक्षण का काम मीडिया ही करेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करती हुई कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम का होना ही सामासिक संस्कृति का उदाहरण है। उन्होंने दक्षिण में हिंदी के क्षेत्र में किए गए काम का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि संस्कृति की संवाहक मीडिया है। सामासिक संस्कृति हमें जोड़ना सिखाती है। मीडिया को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी पत्रकारिता का धर्म मिशन ही है। काठमांडू के हिंदी के विद्वान एवं पत्रकार वीर बहादुर महतो ने कहा कि हमारी राजनीतिक सीमा अलग है लेकिन सांस्कृतिक रूप से एक हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि सामासिकता भारत के डीएनए में समाई हुई है। वर्तमान में समासिकता एक देश की नहीं अपितु पूरे विश्व स्तर का है।

मध्य प्रदेश अकादमिक के निदेशक विकास दवे ने कहा कि समान रूप से प्रकट होने वाली कृति संस्कृति कहलाती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद जैसे शब्दों से परहेज करना चाहिए, जहां वाद आता है वहां परिवाद और विवाद दोनों आते हैं। पत्रकारिता में सुचिता का अभाव दिख‌ रहा है। विशिष्ट अतिथि डॉ. ईश्वर चंद झा करूण ने कहा कि भाषा संस्कृति को जोड़ती है। उन्होंने तमिल भाषा के शब्दों को साहित्य से जोड़ने की वकालत की। डॉ. नितेश जायसवाल दोनों दिनों के सेमिनार की रिपोर्ट पेश की।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव अनंग, स्वागत आयोजन सचिव डॉक्टर मनोज मिश्र, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. धीरेंद्र चौधरी ने किया। इसके पूर्व पीएनबी के राजभाषा अधिकारी डॉ. सुशांत शर्मा ने कहा कि आज की मीडिया के समानांतर सोशल मीडिया चल रही है। इस अवसर पर प्रो. बीबी तिवारी, प्रो रजनीश भास्कर, प्रो. वंदना दुबे, पीएनबी के रामबहादुर, प्रबंधक चंद्रेश्वर सिंह, अमित यादव, डॉ. कमरुद्दीन शेख, प्रो. देवराज सिंह, डॉ. प्रमोद कुमार यादव, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. राकेश यादव, डॉ. राजबहादुर यादव, डॉ. अमरेंद्र सिंह, डॉ. प्रवीण कुमार सिंह, डॉ. नीतेश जायसवाल, डॉ. ऋषिकेश, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ. अवध बिहारी सिंह, डॉ. चंदन सिंह, डॉ. जाह्नवी श्रीवास्तव, डॉ. अनु त्यागी, डॉ. मनोज पाण्डेय, डॉ. पीके कौशिक, सुशील प्रजापति आदि ने प्रतिभाग किया।



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