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Jhansi News: बुंदेलखंड क्षेत्र में मूंगफली की खेती किसानों के लिए वरदान, कृषि वैज्ञानिक ने दी ये सलाह
Jhansi News: कृषि वैज्ञानिकों ने बुंदेलखंड क्षेत्र में किसानों को मूंगफली की खेती करने की सलाह दी है। आइए, जानते हैं कैसे मूंगफली की खेती आपके लिए वरदान साबित हो सकती है।
Jhansi News: रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी के कृषि वैज्ञानिकों ने वैज्ञानिक विधि से मूंगफली की खेती करने की सलाह दी है। डॉ. राकेश चौधरी और डॉ. जितेन्द्र कुमार ने बताया कि मूंगफली की खेती के लिए कम जल भराव वाली, भुरभूरी दोमट एवं बलुई दोमट अथवा लाल मिट्टी (राकड़) सबसे उपयुक्त होती है। खेत में मिट्टी पलटने वाले हल या हेरो कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद में सामान्य कल्टीवेटर से दो जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा होने के पश्चात् पाटा लगाकर समतल बना लें।
बुवाई के लिए प्रमाणित बीज का ही करें प्रयोग
फसल को बीजजनित रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए बीज को इमिडाक्लोप्रिड 18.5ः एवं हेक्साकोनाज़ोल 1.5ः (एफएस) के मिश्रण से 2 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। इस बीजोपचार के 5-6 घंटे के पश्चात् बुवाई से पूर्व 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति 10 कि.ग्रा. बीज की दर से मूंगफली के बीज को उपचारित करें। मूंगफली की बुवाई के लिए उचित समय मानसून आने के बाद जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम पखवाड़ा होता है। मूंगफली की गुच्छेदार किस्मों के लिए बीज की मात्रा 75-80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयेर एवं फैलने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयेर उपयोग में लेना उचित है। बुवाई के लिए प्रमाणित बीज का ही उपयोग करना चाहिए। बुवाई मशीन द्वारा कतारों में करनी चाहिए तथा कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. (गुच्छेदार किस्मों के लिए) तथा 45 से.मी. (फैलने वाली किस्मों के लिए) तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. होनी चाहिए।
उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण की संस्तुति के आधार पर करें
मूंगफली की खेती में नींम की खली को अंतिम जुताई से पूर्व 400 कि.ग्रा. प्रति हेक्टैयर की दर से उपयोग करना अधिक फायदेमंद होता है। इसके प्रयोग से अधिक उत्पादन, दीमक का नियंत्रण एवं नत्रजन तत्वों की भी पूर्ति होती है। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि मूंगफली में उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण की संस्तुति के आधार पर करें। अगर भूमि परीक्षण नहीं किया गया है तो 20-30 कि.ग्रा. नत्रजन, 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 40-50 कि.ग्रा. पोटाश, 250 कि.ग्रा. जिप्सम एवं 4-5 कि.ग्रा. बोरेक्स (बोरोन) प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना लाभप्रद होता है। नत्रजन एवं जिप्सम की आधी मात्रा एवं अन्य उर्वरको की पूरी मात्रा बुवाई के समय बेसल डोज के रूप में उपयोग करना चाहिए। शेष बची हुई नत्रजन, जिप्सम एवं बोरेक्स की पूरी मात्रा को फसल के तीन सप्ताह बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में छिड़कने के बाद गुड़ाई कर भूमि में मिला देना चाहिए। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण हेतु डिक्लोसुलम 84ः डब्ल्यू डीजी के 30 ग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा पेंडिमेथिलीन 30 ईसी के 3.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 48 घंटों के भीतर 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इस क्षेत्र में मूंगफली की उन्नत किस्मों में टीजी 37 ए, गिरनार 2, वी आरआई 12, दिव्या, मल्लिका, एचएनजी 123 एवं राजस्थान मूँगफली 3 प्रमुख हैं।