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Jhansi News: 'मोनिया नृत्य' में नजर आई बुंदेलखंड की अद्भुत छटा, 'देसी दिवारी' ने भी मन मोहा

Moniya Dance in Bundelkhand: बुंदेलखंड में लंबे समय से चली आ रही बुंदेली 'मोनिया नृत्य' परंपरा आज भी लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इस नृत्य के अभ्यास के लिए लोग महीनों पहले से तैयारी करते हैं।

B.K Kushwaha
Published on: 15 Nov 2023 11:15 AM IST
Moniya Dance in Jhansi
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Moniya Dance in Jhansi (Social Media)

Moniya Dance in Bundelkhand: बुंदेलखंड में लंबे समय से चली आ रही बुंदेली 'मोनिया नृत्य' परंपरा आज भी लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इस नृत्य के अभ्यास के लिए लोग महीनों पहले से तैयारी करते हैं। दिवालीके बाद इस नृत्य का जगह-जगह प्रदर्शन होता है। इस नृत्य में लोगों की एक मंडली होती है, जिसमें काफी लोग भाग लेते हैं। ढोल-नगाड़े, आतिशबाजी के साथ लाठी-डंडों को घुमाकर एक-दूसरे के साथ यह खेल खेला जाता है। साथ ही, 'देसी दिवारी' (Desi Diwari) का गायन भी सुनाया जाता है।

इसमें कलाकार तरह तरह की वेशभूषा में नृत्य करते नजर आते हैं। नृत्य को देखने का एक अलग ही अंदाज रहता है। इस कार्यक्रम को दिखाने के लिए कलाकारों को काफी मशक्कत करना पड़ती है। कस्बा में जगह-जगह ये कार्यक्रम दिखाई दिया। साथ ही, इस नृत्य को देखने के लिए काफी संख्या में लोगों की भीड़ दिखाई दी। लोगों ने इस नृत्य का भरपूर लुफ्त उठाया। आपको बता दें, मोनिया मंडली को लोगों के द्वारा बड़े-बड़े इनाम भी दिए जाते हैं। यह कार्यक्रम देर शाम तक चलता रहता है। चारों तरफ ढोल, नगाड़ों, आतिशबाजी की आवाज गूंज रही थी।

घरों से निकली मौनियों की टोलियां

मौनी नर्तकों का समूह 12 गांव जाकर नृत्य करने के लिए निकले। गांव-गांव जाकर मौनी नृत्य किया। मौनिया सैरौ के बारे में वरिष्ठ भाजपाई जगत मोहन बताते हैं कि प्रात: से ही मौनियों की टोलियां सार्वजनिक स्थानों यानी मंदिर, चौराहों, अथाई बाजारों या समाज के प्रतिष्ठित मुखिया, जनप्रतिनिधि, पूर्व जमींदार के यहां ही यह नृत्य करते हैं।

यह है मान्यता

वह बताते हैं कि नृत्य को लेकर एक लोक कथा है कि एक राक्षस, किशोर कृष्ण की सारी गायों को भटका कर अन्यत्र ले जाता है। दुखी कृष्ण एक वृक्ष के नीचे मौन रहकर लेट जाते हैं और किसी से बात नहीं करते। तब उनके साथी ग्वाल बाल भी मौन रखकर असफेर (आसपास) में गायों को खोजने निकल पड़ते थे। उसी की याद में बुन्देलखंड में यह मनाया जाता है। यादव, पाल, कुशवाहा आदि पशुपालन से जुड़ी पारम्परिक जातियों के लोग मोनिया बनते हैं।

गौ माता को समर्पित रहता है यह व्रत

मोनियों को लेकर अलग-अलग मान्यता है। कुछ लोगों का मानना है कि किसी की मनौती पूरी होने पर वह मोनिया बनकर देव स्थानों पर नृत्य करते हैं तो कुछ लोगों का मानना है कि यह गोवर्धन पूजा साथ लोग गोवंश की रक्षा की कामना के साथ यह व्रत करते हैं। यह देव स्थानों पर जाकर गोवंश की समृद्धि की कामना कर बरेदी नृत्य करते हैं। यह परंपरा सालों से चली आ रही है।



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aman

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Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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