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Jhansi News: कैंसर रोग से संघर्ष के बीच लिखी गई मेजर ध्यानचंद संग्रहालय की पटकथा: हेमंत दुबे
Jhansi News: झाँसी नगर में इस ऐतिहासिक डिजिटल संग्रहालय के प्रेरक हेमंत दुबे ने खेल विशेषज्ञ बृजेन्द्र यादव से बातचीत में कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उद्घाटन में भले ही मैं उपस्थित नहीं रह पाया लेकिन म्यूजियम बनने से मेरे काम को सम्मान मिला है और मेहनत करने वाले के लिए सबसे बड़ा सम्मान यही है।
Jhansi News: विगत कई माह से राष्ट्रीय खेल दिवस को लेकर झांसी में हॉकी के उस महान जादूगर के नाम से मेजर ध्यानचन्द हॉकी संग्रहालय स्थापित होने की चर्चाएं आम थी, उनके जन्मदिवस 29 अगस्त राष्ट्रीय खेल दिवस पर उत्तर प्रदेश के जन-जन के यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने इस डिजिटल संग्रहालय का लोकार्पण कर उन चर्चाओं को खास कर दिया। इस ऐतिहासिक संग्रहालय को देश विदेश के दर्शनार्थियों के लिये 1 सितंबर से खोला जाएगा।
एशिया का दूसरा श्रेष्ठ हॉकी संग्रहालय
कैंसर से जूझते हुए जारी रही मेजर ध्यानचंद पर रात और दिन मेहनत के बाद आज अपने सजीव चित्रण के साथ ध्यानचंद की स्मृतियों को मेजर ध्यानचंद म्यूज़ियम संजोए हुए है। यह बात हेमंत चंद बबलू दुबे ने खेल विशेषज्ञ बृजेन्द्र यादव से बातचीत में कही। मेजर ध्यानचन्द के सुपुत्र हॉकी लीजेंड 1975 विश्वकप विजेता, अर्जुन एवर्डी अशोक कुमार के साथ सांसद अनुराग शर्मा, विधायक रवि शर्मा, बबीना विधायक राजीव सिंह परीक्षा, गरौठा विधायक जवाहर लाल राजपूत, एमएलसी रमा निरंजन, बाबूलाल तिवारी और झाँसी के प्रशासनिक अधिकारी एशिया के दूसरे श्रेष्ठ हॉकी संग्रहालय के उद्घाटन के साक्षी बने। उस लम्हे का साक्षी संग्रहालय का शोध करता हेमंत दुबे बबलू नहीं बन सका।
मेजर ध्यानचंद के जीवन से प्रेरणा जरूरी
झाँसी नगर में इस ऐतिहासिक डिजिटल संग्रहालय के प्रेरक हेमंत दुबे ने खेल विशेषज्ञ बृजेन्द्र यादव से बातचीत में कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उद्घाटन में भले ही मैं उपस्थित नहीं रह पाया लेकिन म्यूजियम बनने से मेरे काम को सम्मान मिला है और मेहनत करने वाले के लिए सबसे बड़ा सम्मान यही है। जो मेजर ध्यानचंद के जीवन से प्रेरणा लेकर ही सीखा जा सकता है, इसमें कोई दो राय नहीं है। उन्होंने कहा मेरे जीवन की तपस्या का परिणाम मेजर ध्यानचन्द संग्रहालय बनाना था, वह साकार हुआ। मैं बेहद प्रसन्न भी हूं कि महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यान चंद की यादें संग्रहालय में संजोकर रखीं जाएगी।
ध्यानचंद पर की लंबी रिसर्च, मिली सफलता
इस ऐतिहासिक डिजिटल संग्रहालय के प्रेरक हेमंत दुबे ने खेल विशेषज्ञ बृजेन्द्र यादव से बातचीत में एक सवाल के जवाब में कहा कि मुझे इसकी प्रेरणा 1936 बर्लिन ओलंपिक के 75 वर्ष पूर्ण होने के वर्षगांठ पर मिली। ओलंपियन का मैच 15 अगस्त 2011 भोपाल के बाद मुझे कैंसर हुआ और उस संघर्ष के दौर में ही मेजर ध्यानचंद पर रिसर्च का कार्य प्रारंभ किया। जैसे-जैसे कैंसर संघर्ष चरम पर पहुंचता, वैसे-वैसे मेजर ध्यानचंद की रिसर्च गहरी होते जाती, घंटो, रात और दिन का फर्क खत्म हो गया था। ठीक वैसे ही जैसा मेजर ध्यानचंद ने रात और दिन मैदान पर अभ्यास कर फर्क समाप्त कर दिया था। अंत में लम्बे संघर्ष के बाद इस विकराल रोग कैंसर को पराजित करने में सफ़ल होता गया और ध्यानचंद पर जारी रिसर्च अपना आकार लेने लगी, जो आपको आज म्यूज़ियम के रूप में दिख सकती है।
ध्यान रहे मेजर ध्यानचंद की मौत कैंसर से हुई लेकिन उन्होंने अपनी आत्मा से चाहने वाले की मौत नहीं होने दी ,परिणाम सामने है। इस संघर्ष में मेजर ध्यानचन्द के पुत्र अशोक कुमार ध्यानचंद ने पल-पल मेरा साथ दिया और प्रोत्साहन दिया। लगता था की ध्यानचंद स्वयं अपनी रिसर्च मुझ से करा रहे हो। यह सब स्वप्न जैसा था पर यह हकीकत है आप जब किसी को भी शुद्ध अंतःकरण से उसके प्रति आस्था रखेंगे तो जीवन के संकट के समय वह आपका साथ देने खड़ा होगा और उससे ही तीसरी शक्ति के रूप मे भगवान के दृष्टि के रूप में देखा और पूजा जाता हैं और मैने मेजर ध्यानचंद को अपने आराध्य के रूप में देखा।