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Jhansi: बीस वर्ष में बेतवा नदी के बहाव में आई 16 प्रतिशत की कमी, क्या है कारण?

Jhansi News: एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 1982-2000 की तुलना में 2001-2020 के दौरान बेतवा के औसत प्रवाह में 16 प्रतिशत की कमी आई है।

Gaurav kushwaha
Published on: 20 Jun 2024 5:03 AM GMT
Betwa river
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Betwa river   (photo: social media)

Jhansi News: विगत 20 वर्षों में बेतवा नदी के बहाव में लगभग 16 प्रतिशत तक की कमी आई है। इसका प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन के साथ बेतवा के तटीय क्षेत्र में कृषि व शहरी क्षेत्र का विस्तार है। वहीं, नदी से बेतहाशा रेत उत्खनन भी एक कारण है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले 50 वर्ष में बेतवा का बहाव बहुत कम हो सकता है। हां, बरसात के दिनों में बांधों के गेट खोलने से इसके वेग में बहुत अंतर आ जाता है।

एक वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 1982-2000 की तुलना में 2001-2020 के दौरान बेतवा के औसत प्रवाह में 16 प्रतिशत की कमी आई है। इस दौरान अन्य मानदंडों, जिसमें मिट्टी, ढलान और ऊंचाई के जलग्रहण क्षेत्र में बदलाव तो नहीं मिला परंतु तटीय क्षेत्रों में कैचमेंट एरिया ज्यादातर स्थानों पर बदलाव मिले। वहीं, लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन से औसत मानसून में भी कमी आई है।

बीते वर्षों में लगातार सूखे के चलते बेतवा नदी का जल स्तर कम हुआ है। जिससे यहां से होकर निकलने वाली लिफ्ट केनालों के संचालन में भी दिक्कत आ सकती है। बीते दिनों शासन ने बेतवा के बहाव की गति का मापन कराया। केंद्रीय जल आयोग की टीम ने बेतवा नदी के बहाव की गति के साथ उसमें मौजूद पानी का आंकलन किया।

कैसे मापते हैं नदी के बहाव की गति

धारा प्रवाह के विसर्जन या वेग को मापने के लिए धारामापी का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक उपखंड में, उपखंड की चौड़ाई और गहराई को यंत्रों द्वारा मापकर क्षेत्रफल प्राप्त किया जाता है, और पानी के वेग को धारामापी का उपयोग करके निर्धारित किया जाता है। वैसे बेतवा का जल बहाव आमदिनों में पांच किलोमीटर प्रति घंटा होती है। लेकिन, मानसून के दिनों में मध्यप्रदेश की ओर से आने वाली अथाह जलराशि के चलते वेग में बहुत अंतर आ जाता है। ऐसे में वर्षा पूर्व और वर्षा के दौरान बेतवा के वेग में अंतर पाया जाता है।

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई

बेतवा के तट पर हमेशा से घने जंगल हुआ करते थे। समय के साथ-साथ इनकी बेतहाशा कटाई की जाने लगी। ऐसे में तटों की मजबूती का क्षरण होता गया। अब स्थिति यह है कि बेतवा के तट पर कभी घने जंगलों की जगह वीरान जगह दिखाई दे रहीं हैं। तटीय इलाकों में कृषि क्षेत्रफल का प्रसार भी एक कारक है। इसके अलावा इन दिनों बेतवा के तट पर बसे नगरों में रिहायशी कालोनियां बनाने से स्थिति और बिगड़ रही है। कहीं-कहीं तो नदी का बहाव प्रभावित होने लगा है।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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