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Jhansi News: खतरनाक है डीप बोरिंग, सूखने लगे हैंडपंप, कुंए तालाब और प्राचीन जलस्रोत
Jhansi News: भूमि की ऊपरी सतहों पर जमा पानी के अत्याधिक दोहन से ऊपरी सतहें बंजर होने लगीं हैं।
Jhansi News: बुंदेलखंड में डीप बोरिंग यहां के कुंओं, तालाबों, हैंडपंपों और अन्य जलस्रोतों को नुकसान पहुंचा रही है। डीप बोरिंग से भूमि की निचली सतहों में रिक्तता आती जा रही है जिसकी पूर्ति करने के लिए भूमि की ऊपरी सतह में जमा पानी रिसकर निचली सतहों को जाने लगता है। भू गर्भ जल के जानकारों का कहना है कि डीप बोरिंग धरती की निचली सतहों में पानी जमा है जिसे हम जीवाश्म जल भी कहते हैं। इसका दोहन करने से जमीन की निचली सतहों के बीच पानी के पॉकेट में शून्यता आ जाती है, यदि मानसून में ठीकठाक बारिश नहीं होती है तो भूमि बंजर होने लगती है। साथ ही चट्टानों के बीच आई रिक्तता अक्सर भूकंप का कारण भी बन जाती है।
भूमि की ऊपरी सतहों पर जमा पानी के अत्याधिक दोहन से ऊपरी सतहें बंजर होने लगीं हैं। ऐसे में लोगों के निशाने पर निचली सतहें हैं जहां जमा पानी को डीप बोरिंग करके निकाला जाने लगा है। ऐसे में हमें पानी तो मिल रहा है परंतु यह सभी के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो सकता है। बुंदेलखंड के लगातार गिरते भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने के तमाम प्रयास किए जा रहे हैं पर बात नहीं बन रही है। कारण है कि बुंदेलखंड वर्षाजल की कुल मात्रा का नब्बे प्रतिशत पानी बहकर नदियों के माध्यम से समुद्र में व्यर्थ चला जाता है। तमाम प्रयासों के बाद वर्षाजल की बहुत कम मात्रा भूमिगत जलस्तर से मिला पाते हैं।
बुंदेलखंड में प्राकृतिक रूप से नदियों, तालाबों और कुंओं से पानी निकाला जाता है। पर इन्हें वर्षाजल या भूमिगत जल रीचार्ज करता है। चूंकि बुंदेलखंड की सतह और बहुत नीचे तक पत्थर और चट्टानें हैं। ऐसे में वर्षाजल रिसकर चट्टानों के बीच के स्थानों में एकत्र हो जाता है। जल धरती की सतह के नीचे चट्टानों के बीच के अंतरकाश या रन्ध्राकाश में मौजूद जल को भूमिगत जल कहते हैं। इसमें वर्षाकाल में बारिश का पानी मिलता रहता है, ऐसे में हम इसे जल स्तर की बढ़ोत्तरी या गिरावट करते हैं। यह मीठे के स्रोत होते हैं।
पीजोमीटर से मापते हैं, भूगर्भ जल का स्तर
भूमिगत जलस्तर की माप की पीजोमीटर से जाती है। इसके लिए 40 से 60 मीटर तक की गहराई की 6 इंच मोटी बोरिंग की जाती है। इसमे 4 इंच मोटाई का पाइप डाला जाता है। रीडिंग इंची टेप में एक शंक्वाकार भार बांधकर बोरिंग में छोड़ा जाता है। जल का स्तर मिल जाने पर आवाज आती है। यही भूगर्भ जल स्तर की माप होती है। इस काम में 50 मीटर लंबाई का फीता प्रयोग किया जाता है।
की जा रही है प्री मानसून रीडिंग
भूमिगत जलस्तर को मापने के लिए वर्षाकाल से पूर्व और वर्षाकाल के बाद रीडिंग की जाती है। बुंदेलखंड में आमतौर पर मानसून से पूर्व और मानसून के बाद जलस्तर में कम से कम दो मीटर का अंतर आ जाता है। कहीं-कहीं यह अंतर और भी ज्यादा हो जाता है। बुंदेलखंड के जिन क्षेत्रों में बारिश ठीकठाक होती है साथ ही वहीं पानी भूमिगत जल को रीचार्ज करता है तो वहां भूमिगत जलस्तर बढ़ जाता है। लेकिन इसके बाद लगातार दोहन से स्थिति जस की तस हो जाती है।