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Jhansi News: परकोटों, खिड़कियों और अन्य स्थानों पर धार्मिक स्थलों के नाम पर अवैध कब्जे

Jhansi News: नगर के ऐतिहासिक परकोटों, दरवाजों और खिड़कियों पर हजारों की संख्या में कब्जे व अतिक्रमण हो चुके हैं जो कि स्पष्ट रूप से दिखाई भी पड़ते हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर नगर निगम को इन अतिक्रमण और अवैध कब्जों की कोई जानकारी नहीं है।

Gaurav kushwaha
Published on: 22 May 2024 11:41 AM IST (Updated on: 22 May 2024 10:06 PM IST)
Jhansi News
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झांसी के परकोटों पर अवैध कब्जे (Pic: Newstrack)

Jhansi News: महारानी लक्ष्मीबाई की ऐतिहासिक नगरी झांसी में अभेद्य समझे जाने वाले परकोटों पर कब्जे हो चुके हैं जो बचे हैं तो वे ढहने लगे हैं। इन हालातों में झांसी की बची खुची धरोहरों पर संकट मंडराने लगा है। ऐसे में झांसी की ऐतिहासिक क्रांति और उसमें अपना बलिदान करने वाली वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की स्मृतियों को यदि संजोकर न रखा गया तो निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ियां झांसी के गौरवशाली इतिहास के साक्ष्यों से रूबरू नहीं हो पाएंगी। झांसी के ऐतिहासिक किले को अभेद्य माना जाता था। किले की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर परकोट् बनाए गए थे।

झांसी में प्रवेश करने के लिए विभिन्न नगरों को जाने के लिए दरवाजे (गेट) बनाए गए थे। परकोटों की सुरक्षा के लिए सैन्य चौकियां बनाई गईं थीं। परकोटों से नगर की सीमाओं की निगरानी के लिए खिड़कियां बनाई गईं थीं। परकोटे पर बने हर दरवाजे पर हनुमान जी या ईष्ट देवी-देवताओं के मंदिर बनाए गए थे। झांसी का किला अंग्रेजों के अधीन जाने के बाद किले के परकोटों, खिड़कियों और अन्य सामरिक महत्व के स्थानों को नष्ट करना शुरू कर दिया गया। झांसी के किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया तो वहीं झांसी नगर के वाशिंदों ने परकोटों, खिड़कियों, बगीचों, तालाबों और महत्वपूर्ण स्थलों पर कब्जे कर लिए। ऐसे में ऐतिहासिक किले के परकोटों, खिड़कियों और महत्वपूर्ण स्थानों का अस्तित्व समाप्त सा हो गया है।

ढह रहे हैं झांसी के अभेद्य परकोटे (Pic: Newstrack)

नगर निगम के पास नहीं पहुँची कोई शिकायत : वर्मा

नगर के ऐतिहासिक परकोटों, दरवाजों और खिड़कियों पर हजारों की संख्या में कब्जे व अतिक्रमण हो चुके हैं जो कि स्पष्ट रूप से दिखाई भी पड़ते हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर नगर निगम को इन अतिक्रमण और अवैध कब्जों की कोई जानकारी नहीं है। नगर निगम के अतिक्रमण प्रवर्तन दल के प्रभारी बृजेश वर्मा का कहना है कि परकोटों या ऐतिहासिक धरोहरों पर हुये कब्जों की उनके पास कोई जानकारी नहीं है। वैसे भी यह पुरातत्व विभाग से सम्बन्धित मामला है।

दतिया गेट पर सबसे ज्यादा कब्जे

परकोटों पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण और अवैध कब्जे शहरी क्षेत्र के दतिया गेट, उन्नाव गेट, सैंयर गेट, लक्ष्मी गेट पर हैं। यहां लोगों ने परकोटे के पत्थरों को ही अवैध निर्माण में उपयोग कर लिया है। दतिया गेट के करीब एक किलोमीटर लम्बे परकोटे पर दुकानें, मकान, कथित धार्मिक स्थल, मैकेनिकों के अड्डे, गैराज, मीट बेचने वालों की दुकानें, हज्जामों के सैलून दिखाई पड़ रहे हैं। वहीं, पचकुइया मंदिर से लेकर खाई मुहल्ला तक परकोटों पर कब्जा करके लोगों ने निर्माण कर लिए हैं।




किसी के पास नहीं हैं कोई कागजात

परकोटों पर कब्जा करने वाले अधिकांश लोगों का कहना है कि वह यहां कई वर्षों से वहां रह रहे हैं। ज्यादातर कब्जा धारकों का कहना है कि उनके पास परकोटे की जमीन का पट्टा है, तो कोई नजूल की जमीन फ्री होल्ड में खरीदने की बात कहता है। इतना सब होने के बाद भी ज्यादातर लोगों के पास कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है जिससे सरकारी जमीन पर की गई लूट को वो वाजिब ठहरा सकें।

कब हटेंगे अवैध कब्जे

करीब दो-तीन दशक पूर्व झांसी में सरकारी संपत्तियों, परकोटों, ऐतिहासिक दरवाजों और खिड़कियों पर कब्जा करने की होड़ सी मची थी। झांसी की गौरवशाली धरोहरें समाप्त हो रहीं थीं। वहीं, जिला प्रशासन और तत्कालीन नगर पालिका परिषद मूक दर्शक की तरह अपनी भूमिका अदा कर रही थी। राजनेताओं से संरक्षण मिलने पर अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद थे। सत्ताधारी नेताओं के दबाव की वजह से सरकारी मशीनरी अपने आपको असहाय पा रही थी। लेकिन अब भी कोई ऐसी ठोस कार्यवाही नहीं हो पा रही है जिससे शहर के यह बदनुमा दागों को दूर किया जा सके।

Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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