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Jhansi News: रंग लाई संस्था की मेहनत, बुंदेलखंड में उपजाई गई पीली गाजर
Jhansi News: इण्टरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीटयूट फॉर सेमी एरिड ट्रापिक यानि इक्रीसेट ने जनपद के टहरौली में पीली गाजर की सफल खेती की है।
Jhansi News: बुंदेलखंड में यूं तो पीली गाजर की उपज बिलकुल नहीं होती है, पर टहरौली के चालीस गांव के किसानों ने तीस हेक्टेयर में इसकी खेती करके एक नया कीर्तिमान बनाया है। एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था इण्टरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीटयूट फॉर सेमी एरिड ट्रापिक यानि इक्रीसेट ने जनपद के टहरौली के किसानों को एक नई दशा दी है। संस्था ने न सिर्फ चैकडेम बनाकर टहरौली क्षेत्र का जलस्तर बढ़ाया, बल्कि पहली बार गाजर की खेती करवाते हुए गाजर के साथ मटर के उन्नत बीज भी तैयार करवाए हैं। इससे किसानों की काफी आमदनी बढ़ गई है।
25 से 30 हेक्टेयर में की गई खेती
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2022-23 में टहरौली के आसपास के 40 गांवों को मिलाकर 28 हजार हेक्टेयर में जल संरक्षण व उन्नत खेती की परियोजना पर काम किया। इसमें उन्होंने चैकडेम बनाकर एक लाख 20 हजार घन लीटर पानी को रोका। जल संरक्षण के माध्यम से क्षेत्र का जल स्तर बढ़ गया। क्षेत्र के 64 हजार कुओं में 15 फुट पर पानी मिलने लगा। योजना के तहत किसानों को अच्छी आमदनी के लिए 25 से 30 हेक्टेयर में पारम्परिक खेती के स्थान पर गाजर की खेती कराई गई। इसमें किसानों को काफी लाभ हुआ और प्रति एकड़ लगभग एक से डेढ़ सौ क्विंटल तक गाजर की पैदावार हुई है। संस्था के अधिकारी आरके उत्तम ने बताया कि प्रधानमंत्री के अनुसार किसानों की आमदनी को दोगुना करने के उद्देश्य को लेकर संस्था काम कर रही है।
अन्य फसलों से ज्यादा फायदा
बडोखर के किसान पुष्पेन्द्र सिंह बुन्देला ने बताया कि इसके लिए उनको संस्था द्वारा बुलन्द शहर ले जाकर पांच दिन का प्रशिक्षण दिया गया था। संस्था के अधिकारियों के मार्गदर्शन में आठ एकड़ क्षेत्र में गाजर की खेती की। यह दतिया और कानपुर के कोल्ड स्टोरेज में रखी गई है। ग्राम नोटा के किसान रामप्रकाश पटेल ने बताया कि उन्होंने सात एकड़ में गाजर की खेती की है। इसमें अन्य फसलों से ज्यादा फायदा मिल रहा है। साथ ही विगत दो माह में प्राकृतिक आपदा से जहां अन्य फसलों को नुकसान हुआ है। गाजर की फसल के साथ कुछ भी नहीं हुआ।