Jhansi News: लीकेज से हो रही पानी की बर्बादी, जल संस्थान को महानगर में रोजाना मिल रहीं 15 से 20 शिकायतें

Jhansi News: जानकारों का कहना है कि पाइप लाइनें पुरानी होने व पानी के प्रेशर की वजह से अक्सर पाइप लाइनें फट जाती हैं या फिर इनमें कमजोर स्थानों पर लीकेज होने लगती है।

Gaurav kushwaha
Published on: 3 Jun 2024 6:46 AM GMT (Updated on: 3 Jun 2024 6:46 AM GMT)
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प्रतीकात्मक तस्वीर (सोशल मीडिया)

Jhansi News: महानगर झांसी में वर्ष 2050 तक पेयजल की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 600 करोड़ से अधिक की परियोजना पर जल निगम द्वारा काम किया जा रहा है। पर वर्तमान में जो व्यवस्था है वही समस्याएं दे रही है। ऐसे में वर्ष 2050 के लिए तैयार किए जा रहे ढांचे में समस्याओं का क्या हाल होगा यह सवाल खड़ा हो गया है। इन दिनों पाइप लाइन से की जाने वाली पेयजल सप्लाई में लीकेज बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरी है। जल संस्थान एक लीकेज ठीक कराता है तो दूसरी जगह लीकेज की शिकायत आ जाती है। ऐसे में विभाग का पूरा ध्यान पानी की सप्लाई से ज्यादा लीकेज ठीक करने में लगा रहता है। महीने भर में महानगर में पाइप लाइन तकरीबन 6000 स्थानों पर लीकेज होते हैं, ऐसे में पानी की सप्लाई तो बाधित होती है साथ ही गर्मी के दिनों में कीमती पेयजल भी सड़कों और नालियों में बहता दिखाई देता है।

जल संस्थान का कहना है कि महानगर में रोजाना 15 से 20 पाइप लाइन लीकेज की शिकायतें मिलती हैं। ऐसे में वार्ड की पेयजल व्यवस्था पर असर पड़ता है। दरअसल, महानगर में पाइप लाइन लीकेज की बढ़ती समस्या से निजात पाने के लिए जल संस्थान ने लीकेज की मरम्मत का कार्य ठेके पर दे दिया। विभाग का कहना है ठेकेदार से विभाग के बीच करार है कि पाइप लाइन लीकेज ठीक करने के साथ काटी गई सड़क की मरम्मत भी उसे करानी होगी। सड़क काटने की अनुमति नगर निगम या पीडब्ल्यूडी से जल संस्थान द्वारा ली जाएगी। हर माह लीकेज ठीक करने के बाद ठेकेदार को बिल देना होगा, जिसे विभागीय अधिकारी सत्यापित करेंगे। विभागीय सूत्रों के अनुसार जल संस्थान हर महीने लीकेज ठीक कराने में ही 3 से 4 लाख रुपए का भुगतान करता है। वह भी उस दशा में जब पाइप लाइन के टुकड़े और मरम्मत सामग्री विभाग द्वारा दिए दी जाती है। ठेकेदार लीकेज ठीक कराने के लिए श्रमिक या कारीगर उपलब्ध कराता है।

काफी पुरानी हैं पाइप लाइनें

झांसी की पेयजल व्यवस्था के तहत 30-40 साल पहले पाइप लाइनें बिछाई गईं थीं। पुरानी बस्तियों में तो 50-60 वर्ष पूर्व पाइप लाइनें डाली गईं थीं। इनमें लोहे की पाइप लाइनों के साथ प्लास्टिक की पाइप लाइनें हैं। जानकारों का कहना है कि पाइप लाइनें पुरानी होने व पानी के प्रेशर की वजह से अक्सर पाइप लाइनें फट जाती हैं या फिर इनमें कमजोर स्थानों पर लीकेज होने लगती है। हालांकि, पाइप लाइनों की लीकेज को लेकर जल संस्थान द्वारा जल निगम से बात भी की जाती है। जरूरत के अनुसार पाइप लाइनों को बदला भी जाता है।

Jugul Kishor

Jugul Kishor

Content Writer

मीडिया में पांच साल से ज्यादा काम करने का अनुभव। डाइनामाइट न्यूज पोर्टल से शुरुवात, पंजाब केसरी ग्रुप (नवोदय टाइम्स) अखबार में उप संपादक की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद, लखनऊ में Newstrack.Com में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। भारतीय विद्या भवन दिल्ली से मास कम्युनिकेशन (हिंदी) डिप्लोमा और एमजेएमसी किया है। B.A, Mass communication (Hindi), MJMC.

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