Jhansi News: रेशम उत्पादन में झांसी फिसड्डी, 6 हजार टन की डिमांड, उत्पादन केवल दो टन

Jhansi News: जिले में 195 एकड़ में तीन फॉर्मों में रेशम कीट पालन किया जा रहा है। प्रदेश के उत्पादन में झांसी का योगदान मात्र 0.033 प्रतिशत है।

Gaurav kushwaha
Published on: 12 July 2024 9:27 AM GMT
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Jhansi News (Pic: Newstrack)

Jhansi News: बुंदेलखंड में रेशम उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए यहां बीते बीस साल से कवायद की जा रही है। प्रदेश में 6 हजार मीट्रिक टन रेशम उत्पादन की डिमांड है पर झांसी में 2 टन ही उत्पादन तक पहुंच सका है जोकि प्रदेश के लक्ष्य में मात्र 0.033 प्रतिशत हिस्सेदारी बनती है। हालांकि, यहां लगभग दो सौ एकड़ क्षेत्रफल में बनाए गए तीन फार्मों में बाकायदा अर्जुन के पेड़ लगाए गए हैं। यहां कीट पालन के साथ कोकून उत्पादन भी हो रहा है। पर, ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित हो रहा है।

उत्पादन के लक्ष्य से बहुत दूर

बुंदेलखंड में करीब बीस साल पूर्व रेशम उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए झांसी जिले के बबीना घिसौली रेशम फार्म में 47.25 एकड़ भूमि पर रेशम उत्पादन के लिए अर्जुन के पौधे लगाए गए। उम्मीद थी की तीन-चार वर्ष में पौधे जब बड़े और घने पत्तीदार हो जाएंगे तो उनमें रेशम कीट को छोड़ा जाएगा जिससे कोकून उत्पादन होने लगेगा। प्रक्रिया चलती रही। इसके बाद बबीना के ही बदनपुर में 79 एकड़ में और रेशम उत्पादन की योजना बना दी गई। इसके साथ ही कटेरा देहात में 91 एकड़ भूमि पर पौधे लगा दिए गए। इसके साथ ही इन फार्मों में रेशम कीट पालन और कोकून उत्पादन में 120 लोगों को भी लगा लिया गया। हालांकि, यह लोग वेतनभोगी नहीं बल्कि पार्ट टाइमर के रूप में रेशम फार्म में प्रति कोकून की दर से काम करते हैं।

सहायक निदेशक ने दी जानकारी

इस संबंध में सहायक निदेशक रेशम एके राव का कहना है कि अन्य जनपदों में दो से तीन हजार एकड़ में रेशम उत्पादन किया जा रहा है। झांसी के बुखारा मऊरानीपुर में भी रेशम फार्म प्रारंभ किया जा रहा है। साथ ही एफपीओ के माध्यम से लोगों को रेशम उत्पादन के लिए जोड़ा जा रहा है। इससे 450 किसान इस कार्य से जुड़ेंगे तो निश्चित तौर पर रेशम उत्पादन की गति बढ़ेगी।

चार रेशम उत्पादन फार्म पर सिर्फ दो कर्मचारी

रेशम उत्पादन में कमी का एक कारण यहां प्रबंधन और तकनीकी स्टाफ की बहुत ज्यादा कमी है। झांसी के चार फार्म में मात्र दो सहायक रेशम अधिकारी हैं। वहीं, दो सहायक हैं। इसके अलावा तकनीकी कर्मचारियों की बात करें तो इनकी भी बहुत कमी है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की संख्या नगण्य है। ऐसे में रेशम उत्पादन कैसे संभव होगा।

Sidheshwar Nath Pandey

Sidheshwar Nath Pandey

Content Writer

मेरा नाम सिद्धेश्वर नाथ पांडे है। मैंने इलाहाबाद विश्विद्यालय से मीडिया स्टडीज से स्नातक की पढ़ाई की है। फ्रीलांस राइटिंग में करीब एक साल के अनुभव के साथ अभी मैं NewsTrack में हिंदी कंटेंट राइटर के रूप में काम करता हूं। पत्रकारिता के अलावा किताबें पढ़ना और घूमना मेरी हॉबी हैं।

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