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Jhansi medical college: 12 बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन, अभी तक तय नहीं
Jhansi medical college : मेडिकल कालेज में अब मरीजों को ठीक तरह से इलाज नहीं मिल रहा है। यहां ड्यूटी करने वाले चिकित्सक व नर्स मेडिकल कालेज के बाहर बने प्राइवेट नर्सिंग होम में काम करती है।
Jhansi News: महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एसएनसीयू वार्ड में हुए अग्निकांड के दौरान रेस्क्यू किए गए बच्चों में से चौथे दिन इलाज के दौरान मौत हो गई। बीमारी के चलते उक्त मासूम की मौत हुई है। अब तक 12 बच्चे मौत में शमा चुके है। उधर, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना को गंभीरता से लिया है। वह सोमवार को झारखंड में चुनावी सभा का संबोधित करने गए हैं। यहां से वापस आने के बाद मुख्यमंत्री किसी भी समय झांसी आ सकते हैं। इसके लिए यहां का प्रशासन अलर्ट हो गया है।
महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज के एसएनसीयू वार्ड में शार्ट सर्किट से आग लग गई थी जिसमें दस मासूम बच्चों की मौत हो गई थी जबकि 39 बच्चों को रेस्क्यू कर बचाया गया था। इनमें कुछ बच्चों को प्राइवेट अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती कराया गया था। सोमवार को एक और बच्चे की मौत हो गई। इस बच्चे की मौत बीमारी के चलते हुई है। रविवार को भी एक और बच्चे की जान चली गई थी। अब तक 12 बच्चों की मौत हो चुकी है।
रिपोर्ट से पता चलेगा कैसे हुआ शॉर्ट सर्किट
इस अग्निकांड में मुख्यमंत्री को भेजी जाने वाली रिपोर्ट के बिन्दु सामने आ गए हैं। हादसे के बाद दो सदस्यों की एक टीम गठित की गई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। सूत्रों के मुताबिक रानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में हुई घटना दुर्भाग्यपूर्ण हैं और इसमें किसी तरह की साजिश या फिर लापरवाही नहीं की गई है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक की अध्यक्षता में गठित जांच कमेटी की विस्तृत रिपोर्ट में पता चलेगा शॉर्ट सर्किट कैसे हुआ, क्या वार्ड में लगी मशीनो पर ओवरलोड थी, जिसकी वजह से शोर्ट सर्किट हुआ? यहां आपको यह भी बता दें कि अब इस मामले में चार सदस्यों की भी एक टीम बनाई गई है और वो भी जल्द ही अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
अब तक नहीं की गई है एफआईआर
मेडिकल कॉलेज में हुई घटना में कोई अपराधिक षड्यंत्र या साजिश नहीं का मामला सामने नहीं आया है, जिसकी वजह से अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। कमिश्नर और डीआईजी की कमेटी ने घटना के समय मौजूद अस्पताल के कर्मचारियों से बातचीत कर रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें कहा गया है कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी है।
कौन झूठ बोल रहा है सीएम या डीएम
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि झांसी रानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नीकू वार्ड हुए अग्निकांड हादसे में 10 नवजात बच्चे चपेट में आए थे जबकि 54 नवजात को सकुशल सुरक्षित निकाला गया था। सभी बच्चों को रेस्क्यू ऑपरेशन के जरिये बचाया गया था। वहीं, जिलाधिकारी अविनाश कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया था उस समय एनआईसीयू में 49 नवजात भर्ती थे, जिनकी पुष्टि फोन कॉल और नर्सिंग स्टाफ से जांच के बाद की गई है। उनमें से 38 सुरक्षित हैं और उनका इलाज चल रहा है।
पहले लिया था बीआरएस, अब बने हैं मलबा के प्रधानाचार्य
बताते हैं कि महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज में नरेंद्र सिंह सेंगर प्रधानाचार्य के पद पर तैनात है। कुछ साल डॉक्टर नरेंद्र सिंह सेंगर मेडिकल कालेज में डॉक्टर के पद पर तैनात थे। यहां रहते हुए उन्होंने नौकरी से बीआरएस ले लिया था। इसके बाद वह मध्य प्रदेश के ओरछा में स्थित रामराजा अस्पताल में पार्टनर हो चुके थे। जैसे ही पैरा मेडिकल कालेज शुरु हुआ तो यहां आकर उन्हें डायरेक्टर बनाया गया था। इसके बाद मेडिकल कालेज का कार्यवाहक प्रधानाचार्य बनाया गया था। इस समय वह मलबा के प्रधानाचार्य बने हुए हैं।
डॉक्टर नरेंद्र सिंह सेंगर को बर्खास्त करने की उठने लगी हैं मांग
मेडिकल कालेज में उपचार करने आए मरीज के तीमारदारों ने जमकर हंगामा किया है। उन्होंने मलबा के प्रधानाचार्य को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग उठाई है। सीपरी बाजार क्षेत्र के पंकज कुमार त्रिपाठी ने बताया कि नरेंद्र सिंह सेंगर काफी दिनों से यहां जमे हुए हैं। इनके प्राइवेट नर्सिंग होम से अच्छे संपर्क है।
ड्यूटी से डॉक्टर व नर्स रहती है नदारत
मेडिकल कालेज में अब मरीजों को ठीक तरह से इलाज नहीं मिल रहा है। यहां ड्यूटी करने वाले चिकित्सक व नर्स मेडिकल कालेज के बाहर बने प्राइवेट नर्सिंग होम में काम करती है। नाम ने शर्त पर मेडिकल कालेज के स्टॉफ ने बताया है कि वार्ड में आने वाले डॉक्टर व नर्स यहां हस्ताक्षर करने के बाद प्राइवेट नर्सिंग होम में ड्यूटी करने चले जाते हैं। जब कोई बीआईपी आता है तो इन लोगों को तत्काल सूचना दे दी जाती है। इस कारण यह लोग वापस वार्ड में आ जाते हैं।
आखिर कैसे जले कागजात, फॉरेसिंक जांच की मांग
एसएनसीयू वार्ड में भर्ती होने से पहले मरीज का इमरजेंसी से पर्चा बनाया जाता है। इसके बाद उक्त वार्ड में मरीज को लाया जाता है। जैसे ही एसएनसीयू वार्ड में मरीज दाखिल होता है तो वार्ड में बने पहले कमरे में पर्चा जमा करवाया जाता है। इसके बाद मरीज को डिलीवरी के लिए भर्ती किया जाता है। डिलवरी होने के बाद बच्चे को वार्ड में लगी मशीन में दाखिल किया जाता है। इसके अलावा तमाम कार्रवाई की जाती है। कंप्यूटरों में मरीज व उसका पता अंकित किया जाता है। शुक्रवार की रात लगी वार्ड में मरीजों के कागज भी पुरी तरह से जल गए थे। कुछ लोगों ने प्रशासन ने भर्ती रजिस्टर की छाया प्रति मांगी तो उन्होंने देने से मना कर दिया था। एेसी संभावना है कि कागजातों से छेड़छाड़ की या जान बूझकर हेराफेरी की गई है। लोगों ने इस मामले में फोरेंसिक जांच करवाए जाने की मांग की है।
आखिर कहां गया था स्टॉफ
जिस समय एसएनसीयू वार्ड में आग लगी थी, उस समय वार्ड का स्टॉफ क्या नदारत था। आग लगने की सूचना सबसे पहले तीमारदार ने दी थी। तीमारदार की सूचना पर वार्ड का स्टॉफ सक्रिय हो गया था। एेसे में प्रथम दृष्टया वार्ड का स्टॉफ ही दोषी है। अब आग लगने की कारण शॉर्ट सर्किट बताया जा रहा है।
जिससे आग बुझा जा रही थी उसका इस्तेमाल आईसीयू वार्ड में नहीं होना चाहिए था
मेडिकल कालेज में आग लगने के मामले में एक ओर बात सामने आई है। बताया जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज में जिस मल्टी पर्पज फायर एक्सटिंग्विशर से आग बुझाई जा रही थी, उसका इस्तेमाल आईसीयू वार्ड में नहीं किया जाना चाहिए था। बताते हैं कि आईसीयू या एसएनसीयू वार्ड में सीओ-2 बेस्ड फायर एक्सटिंग्विशर का प्रयोग किया जा सकता है, जिससे एसएनसीयू वार्ड के स्विच बोर्ड में शॉर्ट -सर्किट से आग लगी, उसे सिर्फ सीओ-2 बेस्ड फायर एक्सटिंग्विशर से ही बुझाया जा सकता था।
टीम ने शुरु की जांच
चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण विभाग के महानिदेशक की अगुवाई में एक उच्चस्तरीय टीम झांसी पहुंच चुकी है। इस टीम चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाएं निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाएं अपर निदेशक और महानिदेशक, अग्निशमन द्वारा नामित अधिकारी शामिल है। टीम ने अपनी जांच शुरु कर दी है। यहां आकर मंडलायुक्त और जिलाधिकारी से बातचीत की है। हालांकि अब तक घटना का मुकदमा दर्ज नहीं कराया गया है।
सात दिन के अंदर सरकार को सौंपेगी रिपोर्ट
कमेटी आग लगने के प्राथमिक कारण, किसी भी प्रकार की लापरवाही या दोष की पहचान और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं के बचाव हेतु सिफारिशें देगी। साथ ही कमेटी गठन के बाद सात दिनों में जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया था।