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Jhansi: प्राइवेट बसों में यात्रियों की जान माल की कोई गारंटी नहीं, एक परमिट पर चल रहीं कई बसें

Jhansi News: गुंडे-मवाली टाइप के लोग प्राइवेट बसों में कंडक्टर या क्लीनर के रूप में चलते हैं जोकि किसी भी महिला पुरुष सवारी से गाली गलौज और मारपीट को उतारू रहते हैं।

B.K Kushwaha
Published on: 26 March 2024 2:56 PM IST
Jhansi Private buses
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JhansiPrivate buses (photo: social media )

Jhansi News: बुंदेलखंड में चलने वाली प्राइवेट बसों में यात्रियों के जानमाल की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। बस दुर्घटना होने या यात्री का सामान चोरी होने पर यात्री को यह साबित करना मुश्किल हो जाता है कि वह उक्त बस में यात्रा कर रहा था। टिकट न होने पर यात्री बीमा क्लेम या मुआवजा राशि का हकदार भी नहीं रहता है। बस में सामान गहने चोरी होने या जेब कटने पर थाने में रिपोर्ट दर्ज भी दर्ज नहीं हो पाती है। इसके अलावा इन प्राइवेट बसों में किसी भी सवारी का सामन भी सुरक्षित नहीं रहता है। गुंडे-मवाली टाइप के लोग प्राइवेट बसों में कंडक्टर या क्लीनर के रूप में चलते हैं जोकि किसी भी महिला पुरुष सवारी से गाली गलौज और मारपीट को उतारू रहते हैं। पीड़ित की

संबंधित थाने या पुलिस चौकी में कोई सुनवाई नहीं होती है। बताया जाता है कि बस संचालकों की पहुंच ऊपर तक होने से परिवहन विभाग से लेकर पुलिस थाना भी इन पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।

झांसी से ललितपुर के मध्य चलने वाली ज्यादातर प्राइवेट बसों में परिवहन विभाग के किसी भी नियम का पालन नहीं किया जाता है। उल्लेखनीय है कि झांसी और ललितपुर जुड़वां शहर माने जाते हैं। झांसी में ललितपुर, तालबेहट और बबीना से रोजाना हजारों लोग रोजगार के लिए ट्रेन से आते जाते हैं। 8 से 10 हजार लोग तो रोडवेज या प्राइवेट बसों से आते जाते हैं। लोगों के आवागमन के लिए झांसी-ललितपुर मार्ग पर जहां मात्र 15 सरकारी बसें लगाई गई हैं तो वहीं 35 से 40 प्राइवेट बसें इस रूट पर दौड़ती नजर आती हैं। झांसी से ललितपुर का बस का किराया 100 रुपया निर्धारित है, लेकिन अधिकांश प्राइवेट बसों में यात्री से किराया वसूलने के बाद भी टिकट नहीं दिया जाता है। यात्री द्वारा टिकट मांगने पर बस स्टाफ अभद्रता पर उतारू हो जाता है। इस मार्ग पर चलने वाली ज्यादातर बसें खटारा हैं, इनमें सवारियां ठूंस ठूंसकर भरी जाती हैं।

एक परमिट पर चलती हैं कई बसें

बताया गया कि आरटीआई की निरंतर चेकिंग के बाद भी एक परमिट पर कई कई बसें चलाई जा रही हैं। बस स्टाफ निर्धारित ड्रेस नहीं पहनता है। नॉन स्टॉप के नाम पर चलने वाली बसें जहां चाहे रुक जाती हैं। इन प्राइवेट बसों में श्रम विभाग के कानून भी नहीं चलते। बस संचालक किसी भी ड्राइवर, कंडक्टर या क्लीनर को नौकरी पर नहीं रखता है बल्कि बस ठेके पर दी जाती है। सूत्रों के मुताबिक बस संचालक ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर को वेतन देने की बजाए 1500 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से ठेके पर देते हैं। इससे बस संचालक इन कर्मचारियों के बीमा, भत्ते या अन्य सुविधाओं को देने से मुक्ति पा लेते हैं। दुर्घटना में इन कर्मचारियों की मृत्यु या अपंगता होने पर बस संचालक की कोई जवाबदेही नहीं होती है।

झांसी-ललितपुर के मध्य कुछ ही रोडवेज बसें संचालित हैं, जिनके चक्कर भी अक्सर कैंसिल कर दिए जाते हैं। वहीं प्राइवेट बसों में बेतवा बस सर्विस,श्रीनाथ बस सर्विस, छाबड़ा बस सर्विस, पीताम्बरा बस सर्विस, मुरली बस सर्विस सहित अन्य संचालकों की बस सर्विस इस मार्ग पर सक्रिय हैं। इनमें से कुछ बसें अच्छी कंडीशन में हैं जबकि कई की हालत खराब है।

प्राइवेट बस संचालक करें नियमों व मानकों का पालन:आरटीओ

बस यात्रियों की समस्याओं पर सम्भागीय परिवहन अधिकारी का कहना है कि बस में टिकटनुमा जो पर्ची दी जाती है उसे बीमित (इंश्योर्ड)टिकट नहीं मान सकते हैं। इसकी वजह है कि इस टिकट से कहीं साबित नहीं होता है कि टिकट धारक ने ही बस यात्रा की है। प्राइवेट बस की कम दूरी की यात्रा करने पर लिए गए टिकट में रेलवे रिजर्वेशन की तरह यात्री का नाम, यात्रा की तिथि, ट्रेन और सीट/बर्थ नम्बर भी अंकित नहीं होता है।ऐसे में यह साबित नहीं किया जा सकता कि अमुक व्यक्ति अमुक बस में अमुक तिथि पर यात्रा कर रहा था। विभाग बसों के परमिट और फिटनेस के नियमों का कड़ाई से पालन कराता है। इसके अंतर्गत मानकों और प्रावधानों की जांच की जाती है, उल्लंघन पाए जाने पर नियमानुसार कार्यवाही की जाती है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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