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Jhansi News: शीतला और संकटा माता पचकुंइया मंदिर में फूल और जल करते हैं चमत्कारिक असर
Jhansi News: पुजारी पं.विष्णु दुबे से बातचीत में उन्होंने बताया कि यह मंदिर चंदेलकालीन है। मंदिर में स्थापित देवी शीतला माता और संकटा माता की प्रतिमाएं गुसाइंयों और चंदेलों काल से पहले की हैं।
Jhansi News: नगर का चंदेलकालीन पचकुंइया मंदिर अपनी अलौकिकता और ऐतिहासिकता के लिए विख्यात है। इस मंदिर में शीतला माता और संकटा माता की प्रतिमाएं विराजमान हैं जो इस स्थान की दिव्यता और भव्यता को बढ़ातीं हैं। नवरात्रि पर्व पर पचकुंइया मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही हैं। भोर होते ही महिलाएं देवी माता के दर्शन और उनके चरणों में जल चढ़ाने के लिए मंदिर पहुंचने लगती हैं। सुबह से ही मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में देवीभक्त पहुंचने लगते हैं। इस दौरान घंटे-घड़ियालों की झंकार और मंदिर में हवन, धूप और फूलों से वातावरण सुगंधित हो जाता है। वहीं, मंदिर में देवी मइया के दर्शन को आयी महिलाओं द्वारा भक्तिगीतों और भजनों से धार्मिक और श्रद्धामय हो जाता है। वहीं, देवी मइया के जयकारों की आवाज सुनकर लोग देवी मां के चरणों में नत मस्तक हो जाते हैं।
मंदिर के मुख्य पुजारी पं.विष्णु दुबे नवरात्रि पर्व पर विधि विधान से देवी मां के पूजन-अर्चन कार्यों को संपादित करवा रहे हैं। पुजारी पं.विष्णु दुबे से बातचीत में उन्होंने बताया कि यह मंदिर चंदेलकालीन है। मंदिर में स्थापित देवी शीतला माता और संकटा माता की प्रतिमाएं गुसाइंयों और चंदेलों काल से पहले की हैं। दुबे बताते हैं कि महारानी लक्ष्मीबाई के समय में इस मंदिर में उनके पूर्वज वैद्य भोलानाथ दुबे जी पुजारी थे।
महारानी लक्ष्मीबाई इस मंदिर में नियमित देवी मां की पूजा करने आतीं थीं। उस दौरान उनका दत्तक पुत्र दामोदर राव बहुत बीमार पड़ गए, इसका वैद्य भोलानाथ दुबे ने इलाज किया। माता की कृपा से दामोदर राव ठीक हो गए। इससे प्रसन्न होकर महारानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राजवैद्य नियुक्त किया साथ ही उन्हें जागीर स्वरूप खेती के लिए जमीनें और पचकुंइया मंदिर प्रदान किया। उसके बाद से पं.भोलानाथ दुबे और उनके वंशज मंदिर में निरंतर देवी मां की सेवा में रत हैं। वर्तमान में पं.विष्णु दुबे जोकि भोलानाथ वैद्य की पांचवीं पीढ़ी के हैं वह मंदिर का संचालन कर रहे हैं।
फूल और जल करते हैं चमत्कारिक असर
मान्यता है कि देवी मां के इस मंदिर पर चढ़ाए गए फूल और देवी माता के चरणों में चढ़ाए गए जल का भी चमत्कारिक असर होता है। यह जटिल रोगों को ठीक करने में रामबाण की तरह काम करते हैं। पचकुंइया मंदिर पर पुराने समय से नवरात्रि पर मेला लगने की परंपरा रही है। इस मेले में परंपरागत मिट्टी के बर्तन खरीदे जा सकते हैं तो वहीं हाथ पर मेहंदी रचवाई जा सकती है। बच्चों के लिए झूले और खिलौने आकर्षण का केंद्र रहते हैं। वहीं, महिलाएं चूड़ी, बिंदी और श्रंगार सामग्री खरीद सकती हैं।
वीर सिंह जूदेव ने कराया था मंदिर का जीर्णोद्धार
चंदेल वंश के राजाओं द्वारा मां शीतला के मंदिर को छोटे रुप में बनाया गया था। उस समय यहां मां शीतला और संकटा माता की छोटी मूर्तियां थीं। 16वीं शताब्दी में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने जब झांसी किले का निर्माण करवाया तो छोटे मंदिर का भी जीर्णोद्धार कर इसे विशाल रूप दिया। इतिहासकार मुकुंद महरोत्रा ने बताया कि मंदिर में पांच कुएं स्थापित हैं। इन कुओं की खासियत यह है कि इनमें सबका जलस्तर सदा एक सा रहता है। इनमें एक कुआं मंदिर की देवी के लिए आरक्षित था। मराठा शासन में महारानी लक्ष्मीबाई भी रोजाना यहां पूजा करने आती थीं।
अलग बीमारियों के लिए अलग देवियां
पंचकुईयां मंदिर में अलग अलग बीमारियों के लिए कई देवियां है। मोतीझरा बीमारी के लिए मोतीझरा माता को पालक की भाजी चढ़ाई जाती हैं। खसरा के इलाज के लिए बोदरी माता को सफेद कागज पर पालक चढ़ाने की मान्यता है। बड़ी चेचक की दाग के लिए खिलौनी खिलौना माता का मंदिर बना हुआ हैं। यहां चमेली का तेल चढ़ाने की मान्यता है। ऐसे ही सुहाग की रक्षा के लिए महिलाएं बीजासेन माता की पूजा करती हैं। कई लोग इसे अपनी कुलदेवी का मंदिर भी मानते हैं।