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Jhansi News: हिंदी की भगिनी भाषाओं को भी पढ़ाया जाना चाहिए : प्रो. सत्यकाम
Jhansi News: राजर्षि टंडन मुक्त विवि, प्रयाग के कुलपति प्रो सत्यकाम ने कहा कि हिंदी के तमाम पाठ्यक्रमों में हिंदी की भगिनी भाषाओं को भी सभी विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिए तभी हिंदी और समृद्ध होगी।
Jhansi News: राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती पर बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हिंदी साहित्य के विकास में बुंदेलखंड का योगदान विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और राजर्षि टंडन मुक्त विवि, प्रयाग के कुलपति प्रो सत्यकाम ने कहा कि हिंदी के तमाम पाठ्यक्रमों में हिंदी की भगिनी भाषाओं को भी सभी विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिए तभी हिंदी और समृद्ध होगी। उन्होंने कहा कि हिंदी एक भाषा परिवार है। इसमें अवधी, बुंदेली और ब्रज समेत अनेक क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं। इन सभी भाषाओं ने हिंदी को समृद्ध किया है। हिंदी भाषा तब तक ही समृद्ध रहेगी जब तक इससे संबद्ध अन्य भाषाएं पुष्पित और पल्लवित होंगी। गौर से देखें तो यह साफ होगा कि सभी भाषाएं आपस में मिलकर ही समृद्ध होती हैं।
उन्होंने कहा कि हमें नई शिक्षा नीति के तहत मातृ भाषा बुंदेली में पढ़ाई की व्यवस्था करवानी चाहिए। वो इस संबंध में उचित व्यवस्था बनाने को प्रयासरत हैं। उन्होंने मोबाइल फोन की लत पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में सभी विद्यार्थी एक साथ दो डिग्री ले सकते हैं। उन्होंने सभी विद्यार्थियों से नई शिक्षा नीति का लाभ उठाने का आह्वान किया। उन्होंने बीयू के हिंदी विभाग में पाण्डुलिपियों और पुस्तकों के संग्रहण की उचित व्यवस्था की सराहना भी की।
बुंदेलखंड ने साहित्य सृजन की समृद्ध परंपरा दी
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो पवन अग्रवाल ने कहा कि बुंदेलखंड अपने हृदय में हजारों वर्षों का इतिहास समेटे हुए है। वैदिक काल के यजुर्वेद के पहले कांड की रचना इसी क्षेत्र में हुई। जबसे लेखन का कार्य शुरू हुआ तबसे बुंदेलखंड क्षेत्र ने अपना विशेष दखल बनाए रखा है। रामायण और महाभारत दोनों महाग्रंथों की रचना इसी क्षेत्र में रचे गए। महर्षि वेद व्यास और वाल्मीकि दोनों इस क्षेत्र के रहे।प्रो अग्रवाल ने विभिन्न रचनाकारों के मत का उल्लेख कर बुंदेलखंड के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हिंदी तमाम बोलियों का समुच्चय है। बुंदेलखंड ने साहित्य सृजन की समृद्ध परंपरा दी है। उन्होंने जगनिक और महाकवि केशव के कार्यों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि महावीर द्विवेदी और मैथिली शरण गुप्त ने खड़ी बोली के विकास में अप्रतिम योगदान दिया। बुंदेलखंड ने हिंदी के रचनाकारों को सदैव सही दिशा दिया।
हिंदी साहित्य में बुंदेलखंड का योगदान अपरिमित है
प्रो सत्यकेतु ने कहा कि बुंदेलखंड ने सिर्फ हिंदी साहित्य ही नहीं पूरे देश को वैचारिक रूप से समृद्ध किया। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास और राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त को याद करते हुए उनके योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने विविध प्रसंगों का उल्लेख कर तुलसीदास के साहित्य की विशेषताओं को रेखांकित किया।गुजरात से आए प्रो संजीव दुबे ने कहा कि हिंदी साहित्य में बुंदेलखंड का योगदान अपरिमित है। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में मैथिली शरण गुप्त के भाई सियाराम शरण गुप्त के साहित्य पर और प्रकाश लाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को वर्तमान की चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए।बुंदेलखंड को अब उद्योग खंड के रूप में विकसित करना चाहिए।प्रो राजेश कुमार गर्ग ने बुंदेलखंड के सभी जिलों का उल्लेख कर कहा कि यह भक्ति और वीरता की भूमि है। उन्होंने घासीराम व्यास की पंक्तियां भी पेश कीं। उन्होंने कालिदास, तुलसीदास, विश्वदास, नाभा दास, हरिराम व्यास की रचनाओं का भी उल्लेख किया।
मृत्युंजय और गायत्री मंत्रों के महत्व को भी रेखांकित किया
डा पवन पुत्र बादल ने कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा संवाद और जन जागरण से आगे बढ़ी है। जो जगाने का काम करता है वह महत्वपूर्ण होता है। जब हम ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाते हैं तो आगामी पीढ़ियां समृद्ध होती है। उन्होंने नचिकेता और ब्रह्मा संवाद का उल्लेख कर भारतीय संस्कृति की विशिष्टताओं का उल्लेख किया। उन्होंने महा मृत्युंजय और गायत्री मंत्रों के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब किसी साहित्यकार की रचना जन जन के कंठ पर आ जाती है तो वह अमर हो जाता है। उन्होंने पंडित जगन्नाथ और पद्माकर की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों और संतों को सदैव भ्रमण करते रहना चाहिए तभी समाज का कल्याण होगा। उन्होंने महाकवि अवधेश की रचना का भी उल्लेख किया। बुंदेलखंड के साहित्यकारों का विस्तार से उल्लेख किया।
साहित्य का अनुपम शिल्प और विंब भी बुंदेलखंड में ही रचा गया
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पद्म श्रीअवध किशोर ने कहा कि आज की संगोष्ठी बहुत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने खुद को कवि बताते हुए कहा कि पहला महाकाव्य ही बुंदेलखंड में रचा गया। पहले आचार्य महाकवि केशव भी बुंदेलखंड के ही रहे हैं। उन्होंने कवि केशव की रचनाएं सुनाकर उनकी खूबियों का उल्लेख किया। बगरो बुंदेली का है। साहित्य का अनुपम शिल्प और विंब भी बुंदेलखंड में ही रचा गया। उन्होंने बुंदेलखंड के रचनाकारों के अनुपम शिल्प के उदाहरण भी पेश किए।
उन्होंने कहा कि महाकवि केशव हिंदी साहित्य के चमत्कार हैं। उन्होंने कहा कि यदि बुंदेलखंड के एक दर्जन रचनाकारों को निकाल दिया जाए तो हिंदी का साहित्य आधा हो जाएगा। इससे बुंदेलखंड के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने सभी अतिथियों से अपनी रचनाएं हिंदी विभाग को देने का भी आग्रह किया। अतिथियों ने समीक्षा नामक पत्रिका का विमोचन भी किया। डा सीमा श्रीवास्तव की एक पुस्तक का भी विमोचन किया गया। सभी अतिथियों को स्मृति चिह्न और सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। अतिथियों ने राष्ट्रकवि के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
यह लोग रहे मौजूद
संचालन डा अचला पाण्डेय ने किया। अंत में डा. हरि त्रिपाठी ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डा जेपी पाण्डेय, आद्या प्रसाद द्विवेदी, आईटीएचएम के विभागाध्यक्ष प्रो देवेश निगम, साहित्यकार प्रमोद अग्रवाल, डा नवीन पटेल, पत्रकारिता विभाग के समन्वयक डा जय सिंह, डा कौशल त्रिपाठी, उमेश शुक्ल, डा राघवेन्द्र दीक्षित, अतीत विजय, डा शैलेंद्र तिवारी, डा प्रेमलता, डा सुनीता वर्मा, डा सुधा दीक्षित, डा अजय कुमार गुप्ता, डा पुनीत श्रीवास्तव, मनमोहन मनु, दीपक त्रिपाठी समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।