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कानून लाकर राम मंदिर बनाना बहुत कठिन है : जिलानी
शारिब जाफरी
लखनऊ। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून लाने की बात कही थी। इस पर देश भर से प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो चुका है। ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा है कि ये तो भारत का कोई भी रहने वाला हुकूमत से डिमांड कर सकता है। सवाल ये है कि हुकूमत इस पर क्या रिएक्ट करती है। जहां तक मैं समझता हूं कि हुकूमत में लीगल एक्सपर्ट्स भी शामिल हैं। वह कोई ऐसा काम नहीं करना चाहेंगे, जिसकी वह फेस सेविंग न कर सकें।
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इस मसले पर कानून बनाना लगभग असंभव है। चूंकि यह जो बाबरी मस्जिद की जगह है, इसे 1993 में भारत सरकार ने अधिग्रहण अधिनियम के तहत अधिग्रहीत किया था। इसी अधिनियम के तहत जो मुकदमे चल रहे थे, उनको सबको उच्चम न्यायालय ने खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि प्रिफरेंशियल रिफरेंस होगा, उसको सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया। हम लोगों ने और कई अन्य लोगों ने भी इसको चैलेंज किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला दिया और अधिग्रहण को कायम रखा और कहा कि अधिनियम एकदम सही है। सिर्फ इस जमीन का जिक्र करते हुए कहा कि यह अधिग्रहण अस्थाई रहेगा। ये प्रापर्टी भारत सरकार की कस्ट्डी में रहेगी। जो पार्टी मुकदमा जीतेगी, उसे ये जमीन हैंडओवर कर दी जाएगी। इसलिए आज ये प्रापर्टी भारत सरकार की कस्टरडी में है और अधिग्रहीत है। अब ऐसी प्रापर्टी जो पहले से अधिग्रहीत है,उसे दुबारा अधिग्रहीत तो किया नहीं जा सकता। फिर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का फैसला, जिसमें यह कहा गया था कि हाईकोर्ट की जो प्रोसीडिंग खत्म की गई है, वह रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है। अब भारत सरकार फिर से कोई कानून पास करे तो यह उस फैसले के खिलाफ अर्जी होगी। इसलिए कानून लाकर राम मंदिर बनाना लगभग असंभव है।
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जिलानी ने कहा कि बीजेपी माइंडेड लोगों ने तो इसी उम्मीद में वोट दिया था कि राम मंदिर बनेगा। चाहे ऐसे लोगों की तादाद सिर्फ 15 से 20 परसेंट ही क्यों न हो। शेष बाकी लोगों ने डेवलपमेंट के नाम पर बीजेपी को वोट किया था। तो अब जो वह 15 से 20 परसेंट लोग हैं, वो सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। उनको तो मालूम नहीं कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट बीच में है, वह सरकारों से ऊपर है। बीजेपी घिर गई है और संघ उसको बचाना चाहता है। संघ बीजेपी को पहले भी बचाता रहा है। इस सरकार बनने के बाद संघ की पहली मीटिंग लखनऊ में हुई थी। उसमें अमित शाह आए थे। उस वक्त इन्हीं का बयान था कि हम 2019 तक का इनको मौका देते हैं। हम तब तक कुछ नहीं बोलेंगे राम मंदिर के बारे में। तो अब जाहिर है कि पांच साल हो रहे हैं। तो संघ को कुछ न कुछ अपनी फेस सेविंग करना है और सरकार को भी बचाना है। तो यह उसी स्ट्रैटजी का एक हिस्सा है।