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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा- शरीयत कानून में SC का दखल नहीं मंजूर
लखनऊ: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीबीएल) ने कहा है कि मुस्लिमों में तीन बार तलाक कहने पर होने वाले तलाक या शरीयत के अन्य कानून पर सुप्रीम कोर्ट को बोलने का हक नहीं है।
क्या कहते हैं जफरयाब जिलानी?
एआईएमपीबीएल के प्रवक्ता ने सोमवार को newztrack.com से बात करते हुए कहा, ''सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए तीन बार तलाक कह रिश्ते खत्म करने की प्रथा की कानूनी जांच करने का निर्देश दिया था। पर्सनल लॉ कुरान पर आधारित है और इसमें सुप्रीम कोर्ट को दखल देने का हक नहीं है।''
और क्या कहा?
-16 अप्रैल को एआईएमपीबीएल कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है।
-बैठक में सुप्रीम कोर्ट के तलाक पर लिए गए संज्ञान पर भी चर्चा होगी।
-पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगा।
-जिलानी ने कहा कि ये पार्लियामेंट से पास हुआ कानून नहीं हैं।
-एक अन्य मुस्लिम संस्था ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को उसी कोर्ट में चुनौती दी है।
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बोर्ड का क्या है मानना?
-बोर्ड के मुताबिक, यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत भी नहीं है।
-इससे राष्ट्रीय अखंडता और एकता की कोई गारंटी नहीं मिलती है।
-विधायिका से पारित कानून और धर्म से निर्देशित सामाजिक मानदंडों के बीच एक स्पष्ट लकीर होनी चाहिए।
-मुस्लिम लॉ की स्थापना पवित्र कुरान और इस्लाम के पैगंबर की हदीस से की गई है।
-इसे संविधान के आर्टिकल-13 के मुताबिक अभिव्यक्ति के दायरे में लाकर लागू नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट में है मामला
-ट्रिपल तलाक का मामला फिर एक बार देश की सबसे बड़ी अदालत में है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, महिला बाल विकास मंत्रालय से जवाब मांगा है।
-सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में चीफ जस्टिस से मामले पर खुद ही संज्ञान लेते हुए फैसला करने के लिए कहा था।
-बेंच ने कहा था कि अब वक्त आ गया है कि इस पर कोई कदम उठाए जाए।
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क्या कहा था बेंच ने...
-बेंच ने कहा था कि अब आ गया है कदम उठाने का वक्त तीन तलाक, एक पत्नी के रहते दूसरी शादी मूलभूत अधिकार का उल्लंघन, समानता, जीने के अधिकार का उल्लंघन, शादी और उत्तराधिकार के नियम किसी धर्म का हिस्सा नहीं हैं।
-समय के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में बदलाव जरूरी है। सरकार, विधायिका इस बारे में विचार करें। यह संविधान में वर्णित मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकार, सुरक्षा का मुद्दा, सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है।
-सुप्रीम कोर्ट के ही पूर्व के फैसलों का उदाहरण देते हुए जजों ने कहा कि बहुविवाह की प्रथा सार्वजनिक नैतिकता के लिए घातक है।
-इसे भी सती प्रथा की तरह प्रतिबंधित किया जा सकता है। कोर्ट का कहना है कि इस तरह की प्रथाएं महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
-ये प्रथाएं संविधान द्वारा दिए गए समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।