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बाबरी विध्वंस: क्या SC के फैसले ने आडवाणी-जोशी को राष्ट्रपति पद की रेस से किया बाहर?
लखनऊ: पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का बेहतर प्रदर्शन रहा। अब देश की नजर राष्ट्रपति चुनाव पर टिकी है। ये चुनाव इसी साल जुलाई में होने हैं। कयास लगाया जा रहा था कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी इस पद की रेस में सबसे आगे हैं।
लेकिन बुधवार (19 अप्रैल) को बाबरी विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इन दोनों दावेदारों को दौड़ से लगभग बाहर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, अब आडवाणी और जोशी सहित बीजेपी के 13 नेताओं पर आपराधिक षड्यंत्र का मुकदमा चलाया जाएगा।
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जोशी थे आरएसएस की पहली पसंद
गौरतलब है कि इससे पहले बीजेपी की ओर से लगातार संकेत दिए जा रहे थे, कि आडवाणी या जोशी देश के अगले राष्ट्रपति बनाए जा सकते हैं। राजनीतिक पंडित तो ये मान रहे थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस मुरली मनोहर जोशी की दावेदारी पर विचार कर रही है।
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आडवाणी-जोशी, मोदी सरकार से थे असहमत
उल्लेखनीय है कि इसी साल मोदी सरकार ने वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी को पद्म विभूषण सम्मान दिया है। मोदी सरकार आने के बाद से जोशी और आडवाणी बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं। हालांकि, दोनों नेता शुरुआत में मोदी सरकार से असहमत होने के संकेत देते रहे थे। लेकिन हाल के दिनों में इन नेताओं से पीएम मोदी और अमित शाह के रिश्तों में सुधार होता दिख रहा था।
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अधिकतम तीन साल की सजा संभव
बाबरी मामले में सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सहित अन्य अभियुक्तों पर आईपीसी की धारा 153-ए (दो समुदायों के बीच नफरत पैदा करने, 153-बी (राष्ट्रीयता अखंडता के प्रतिकूल बयानबाजी या दावा) और 505 (उपद्रव या सामाजिक शांति भंग करने के मकसद से गलत बयानी करना या अफवाह फैलाना) का आरोप लगाया है। इन सभी मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल तक की सजा हो सकती है।
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इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी के अनुसार अगर आडवाणी, जोशी और उमा भारती इत्यादि इन आरोपों के दोषी पाए गए तो उन्हें अधिकतम तीन साल तक की सजा हो सकती है।