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बाबरी मस्जिद से क्या है कल्याण सिंह का रिश्ता, पढ़िए पूरी खबर
भाजपा के दिग्गज नेता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का आज निधन हो गया। उनके निधन से देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी है
भाजपा के दिग्गज नेता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का आज निधन हो गया। उनके निधन से देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। कल्याण सिंह भाजपा के शीर्ष पंक्ति के नेता माने जाते थे। लेकिन फिर बाबरी से लेकर कई ऐसी राजनीतिक घटनाओं के कारण उनका भाजपा में कद घटता चला गया था। जिस समय अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़ा गया था वे उस समय वहां का सीएम थे। इस घटना के बाद व सीएम के पद से इस्तीफा दे दिए थें। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी से उनका अदावत चलती थी, जिसके कारण उनका भाजपा में लगातार कद छोटा होता चला गया था।
अंतिम में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई थी लेकिन वो ज्यादा दिन तक चल नहीं पाई थी। 2014 में केंद्र में मोदी की सरकार आने के बाद उनका कद बड़ा और वे राजस्थान के राज्यपाल बने और अपना कार्यकाल पूरा कर राजस्थान से अपने राज्य उत्तर प्रदेश गए जहां वे बाबरी केस में कोर्ट की कार्रवाई में उपस्थित रहें और अंत में कोर्ट ने उन्हें कोई साक्ष्य नहीं रहने के कारण उन्हें तमाम मामलों में बरी कर दिया।
सीबीआई अदालत ने कल्याण सिंह को बरी कर दिया था
आपको बता दें कि अयोध्या विध्वंस केस में लखनऊ की सीबाआइ अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सहित सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया था। अदालत के फैसले पर पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने खुशी जताते हुए कहा कि अदालत का फैसला ऐतिहासिक है। हम लोग ही नहीं आज इस फैसले से पूरा देश खुश है।
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कोरोना पॉजिटिव होने के बाद से गाजियाबाद के यशोदा हॉस्पिटल में भर्ती हैं, जिसकी वजह से वह सीबीआई अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने के दौरान अदालत में मौजूद नहीं थे। सुनवाई के दौरान वह वर्चुअल माध्यम से जुड़े रहे। उनके बेटे एटा के सांसद राजवीर सिंह राजू ने कहा कि बाबू जी ने फैसले को ऐतिहासिक बताया है। वह पहले भी कह चुके हैं कि भगवान श्रीराम के मंदिर को बनने के लिए सत्ता ही क्या वह सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार है।
कई लाख के आसपास कारसेवक जमा हो चुके थें
एटा के सांसद राजवीर सिंह ने छह दिसंबर, 1992 के दिन की यादें ताजा करते हुए कहा कि जब माहौल बिगड़ने लगा, तो बाबूजी के पास अयोध्या के जिलाधिकारी का फोन आया था। जिलाधिकारी ने कहा कि कई लाख के आसपास कारसेवक जमा हो चुके हैं। केंद्रीय सुरक्षा बल मंदिर परिसर की तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन कारसेवकों ने साकेत कॉलेज के पास उनका रास्ता रोक रखा है।
तब बाबूजी ने कारसेवकों पर फायरिंग का आदेश देने से मना कर दिया था। वह आदेश अब भी फाइलों में होगा। फायरिंग करने से हालात और बिगड़ सकते थे। कई लोगों की जान जा सकती थी न सिर्फ यहां बल्कि पूरे देश में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती थी। बाबूजी को अपने इस फैसले पर आज भी गर्व है कि मेरी सरकार चली गई लेकिन मैंने कारसेवकों को बचा लिया।
सीबीआई ने साक्ष्य के अभाव में सभी को बरी कर दिया था
बता दें कि छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में हुए ढांचा विध्वंस मामले में बुधवार को सीबीआइ कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ कोई निश्चयात्मक सुबूत नहीं पेश कर सकी। विध्वंस के पीछे कोई साजिश नहीं रची गई और लोगों का आक्रोश स्वत: स्फूर्त था। इस मामले के मुख्य आरोपितों में एक स्व. अशोक सिंहल को कोर्ट ने यह कहते हुए क्लीन चिट दे दी कि वह तो खुद कारसेवकों को विध्वंस से रोक रहे थे, क्योंकि वहां भगवान की मूर्तियां रखी हुई थीं।