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Kalyan Singh: राजनीति में वटवृक्ष की तरह थे कल्याण सिंह
पांच दशकों से यूपी भाजपा की राजनीति में केन्द्र बिन्दु रहे कल्याण सिंह ने अपना पूरा जीवन राजनीति के एक वट वृक्ष की तरह जिया। अपनी छत्रछाया में उन्होंने अपने बेटे को पहले विधायक फिर सांसद व बहू को विधायक और पोते को प्रदेश सरकार में मंत्री बनवाने का काम किया।
लखनऊ। पिछले पांच दशकों से यूपी भाजपा की राजनीति में केन्द्र बिन्दु रहे कल्याण सिंह ने अपना पूरा जीवन राजनीति के एक वट वृक्ष की तरह जिया। उनकी छांव में रहकर न जाने कितने नेता पल्लवित हुए। यहां तक कि अपनी छत्रछाया में उन्होंने अपने बेटे को पहले विधायक फिर सांसद व बहू को विधायक और पोते को प्रदेश सरकार में मंत्री बनवाने का काम किया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल बनने के बाद अब वह एक सामान्य कार्यकर्ता की भूमिका में सक्रिय रहे। राजयपाल का पद छोड़ने के बाद कहने को भले ही वह सामान्य कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव के सामने पार्टी की सदस्यता ली हो पर वह संगठन और सरकार दोनें में संरक्षक की ही भूमिका निभाना चाहते थे।
हर चुनाव में प्रभावी भूमिका में रहे कल्याण सिंह
वहीं अगर अतीत पर गौर करें तो नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन के अगुवाकार रहे कल्याण सिंह ने जब बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद अपनी सरकार दावं पर लगाई तो उनका पूरे देश में नाम हो गया। हिन्दू जनमानस के दिलों में उनकी एक खास जगह बन गयी। वह राष्ट्रीय परिदृश्य में आ गए। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया गया। इसके बाद भी 1997 में साझा सरकार में उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी बीच जितने भी प्रदेश में चुनाव हुए चाहे वह विधानसभा का चुनाव हो लोकसभा का हो या स्थानीय निकाय का ही चुनाव क्यों न हो कल्याण सिंह अपनी प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं।
बीजेपी में आना-जाना बना रहा
उन्होंनें भाजपा भी छोड़ी पर फिर से शामिल हुए। वर्ष 1999 में भाजपा छोड़कर खुद की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई। ये पार्टी जब सफल नहीं हुई तो वर्ष 2004 में भाजपा में फिर से वापस आ गए। वर्ष 2009 में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मनमुटाव हुआ तो फिर भाजपा से अलग हुए। वर्ष 2012 में भाजपा में वापस हुए। 2014 में राज्यपाल बने। अब पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद वह नए तरीके से भाजपा की राजनीति करने मैदान में उतरे।
बेटे राजबीर के केंद्र में मंत्री न बन पाने की बनी रही कसक
भाजपा के शीर्षस्थ नेता अटल बिहारी वाजपेयी से छत्तीस का आंकड़ा रहा। जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। यही नहीं इसी मुद्दे को लेकर पहले उन्हें भाजपा से निष्कासित किया गया, जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का गठन किया। लेकिन बड़ी सफलता मिलती न देख वह फिर से भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा से अलग होने के बाद उनकी नजदीकियां सपा और मुलायम सिंह से भी रही। 2004 का लोकसभा के चुनाव से पूर्व वे अपने कुनबे के साथ भाजपा में शामिल हो गए। दूसरी बार पार्टी में वापसी के एक बार फिर उनका भाजपा से मोहभंग हुआ और उन्होंने उससे पल्ला झाड़कर जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) का गठन किया।
भाजपा से अलग होकर उनकी यह दूसरी पारी भी फेल साबित हुई। इसके बाद 2014 का लोकसभा चुनाव आने तक फिर अपने कुनबे के साथ भाजपा में चले गए। 2014 में केन्द्र की सरकार की बनने पर उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। उनके बेटे राजबीर सिंह दूसरी बार एटा से सांसद हैं, जबकि उनके पौत्र संदीप सिंह योगी सरकार में राज्यमंत्री है। कल्याण सिंह अपने पुत्र राजबीर सिंह को अपना उत्तराधिकारी के तौर अपने जैसा ही रूतबा दिलाना चाहते थे। राजबीर सिंह के पुत्र संदीप सिंह तो इस समय योगी सरकार में राज्यमंत्री हैं लेकिन राजबीर सिंह के केन्द्र में मंत्री न बन पाने की कसक बनी रही।