Kannauj News: कन्नौज में शरद पूर्णिमा को रावण दहन की है परम्परा, इसके पीछे छुपा है कुछ रहस्य

Kannauj Ravan Dahan: कन्नौज शहर में पारम्परिक तौर से दो स्थानों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है जिसमे ग्वाल मैदान में आदर्श रामलीला के बैनर तले रामलीला का शुभारम्भ सन 1880 में हुआ था।

Pankaj Srivastava
Published on: 24 Oct 2023 12:52 PM GMT
Kannauj Ravan Dahan
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Kannauj Ravan Dahan (Photo - Social Media)

Kannauj Ravan Dahan: देशभर मे जहां रामलीला के रावण का पुतला दहन दशहरा बाले दिन होता है तो वहीँ इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज में एक अनूठी धार्मिक परंपरा है। यहाँ दशहरा वाले दिन रावण दहन न होकर शरद पूर्णिमा वाले दिन रावण वध और रावण दहन का कार्यक्रम किया जाता है। इसके पीछे कान्यकुब्ज ब्राह्मणो की मान्यता है कि दशहरा को राम ने रावण को तीर मारकर धराशाई किया था‚ लेकिन रावण ने अपने प्राण शरद पूर्णिमा वाले दिन ही त्यागे थे इस बजह से रावण का अंत शरद पूर्णिमा को ही हुआ और यही कारण है कि आज भी कन्नौज में यह परम्परा शरद पूर्णिमा को रावण दहन करके निभाई जा रही है।

कन्नौज शहर में पारम्परिक तौर से दो स्थानों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है जिसमे ग्वाल मैदान में आदर्श रामलीला के बैनर तले रामलीला का शुभारम्भ सन 1880 में हुआ था। इस रामलीला में भी शुरुआत से ही रावण वध और रावण का दहन शरद पूर्णिमा वाले दिन ही किया जाता है। इतिहासकार बताते हैं कि रावण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही प्राण त्यागे थे, इस बीच उन्होंने प्रभु राम के इशारे पर उनके छोटे भाई लक्ष्मण जी को ज्ञान दिया था‚ इसी वजह से दशहरा को रावण का दहन न करके पूर्णिमा के दिन रावण का पुतला कन्नौज में जलाया जाता है।

कन्नौज शहर में होती है दो अलग–अलग रामलीलाएं

इसी तरह यहां दूसरा आयोजन भी कन्नौज शहर के एस.बी.एस. मैदान पर भी रामलीला का मंचन होता है। कन्नौज में ग्वाल मैदान और एस.बी.एस. कालेज मैदान में दोनों ही स्थानों पर शरद पूर्णिमा के दिन ही रावण का पुतला जलाया जाता है। दोनों ही स्थानों पर एक साथ अक्टूबर माह में गणेश पूजन के साथ रामलीला मंचन की शुरुआत की जाती है और करीब 15 दिन तक अलग-अलग मंचन होते हैं। इसीलिए रामबारात दोनों ही रामलीला की अलग-अलग दिन निकलती है। ग्वालमैदान वाली एक दिन पहले रामबारात निकाली जाती है तो वही एसबीएस मैदान में एक दिन बाद। जबकि रावण दहन दोनों रामलीलाओं में एक ही दिन पूर्णिमा को किया जाता है।


शरद पूर्णिमा के दिन छोड़े थे रावण ने अपने प्राण

जानकारों की माने तो शरद पूर्णिमा के दिन रावण का पुतला फूंकने के पीछे मान्यता है कि इसी दिन रावण का अंत हुआ था। भगवान राम ने दशहरा के दिन युद्ध करते हुए रावण की नाभि पर तीर मारा था लेकिन वह शरद पूर्णिमा तक जीवित रहा। इस बीच राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान लेने के लिए भेजा। शरद पूर्णिमा के दिन अमृत वर्षा हुई। इसी वजह से अभी भी शरद पूर्णिमा के दिन लोग रात में छतों पर खीर रखकर सुबह खाते हैं। इसी पौराणिक मान्यता के चलते अब तक कन्नौज जिले में शरद पूर्णिमा के दिन रावण दहन किया जाता है।


शरद पूर्णिमा को अमृत वर्षा की परम्परा से जुड़ा है यह राज

अक्सर शरद पूर्णिमा को लोग आस्था और विश्वास के साथ खीर बनाकर खुले आसमान की नीचे रखते है ताकि उस खीर में अमृत वर्षा का अंश पड़ जाए। कान्यकुब्ज ब्राहम्णो का मत है कि रावण के जो प्राण निकले थे, वह शरद पूर्णिमा के दिन ही निकले थे और इससे प्राण निकलते ही रावण की नाभि में भरा हुआ अमृत फ़ैल गया और वही अमृत पाने के लिए आज भी परम्परा चली आ रही है कि लोग शरद पूर्णिमा को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते है ताकि वह खीर अमृत के सामान बन जाए।

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