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किन्नर अखाड़ा : शंकराचार्य व अन्य संतों ने किया स्वागत, अखाड़ा परिषद विरोध में

Newstrack
Published on: 13 Oct 2017 12:57 PM IST
किन्नर अखाड़ा : शंकराचार्य व अन्य संतों ने किया स्वागत, अखाड़ा परिषद विरोध में
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आरबी त्रिपाठी की स्पेशल रिपोर्ट

लखनऊ: प्रयाग नई प्रतिष्ठाओं का केंद्र रहा है। जब-जब देश और समाज में नई स्थापनाएं और नए मानक बने, उनमें या तो प्रयाग के लोगों का नेतृत्व रहा है या फिर वहां की महती भूमिका रही है। चाहे वह कुंभ और अर्धकुंभ का अवसर हो या माघ मेले अथवा अन्य धाॢमक आयोजनों का, प्रयाग के लोग सन्मार्ग पर चलने वालों के साथ खड़े हुए हैं, उन्हें शक्ति दी है, संजीवनी दी है। अबकी बार भी यही होने जा रहा है, जब प्रयाग में किन्नर अखाड़ा अपना स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। एक तरफ अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद किन्नर अखाड़े के प्रति भेदभाव बरतते हुए उसे अखाड़े के रूप में मान्यता देने को तैयार नहीं है तो दूसरी तरफ वहीं ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के ही आश्रम में किन्नर अखाड़े ने डेरा डाल दिया है। वह इसी आश्रम में अपना तीसरा स्थापना दिवस समारोह धूमधाम से मना रहा है।

2014 में उज्जैन के कुंभ मेले में स्थापित किए गए किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण ने उज्जैन पीठ के अपने महंत पवित्रा व अन्य संतों महंतों के साथ इलाहाबाद पहुंच गए हैं। सभी किन्नर संतों का संगम स्नान, बड़े हनुमान जी का दर्शन और भजन-पूजन निरन्तर चल रहा है। प्रयाग के विभिन्न समुदायों के लोग, अधिवक्ता और संत किन्नर अखाड़े का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन इसी बीच अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि, जो बड़े हनुमान मंदिर के महंत भी हैं, किन्नर अखाड़े के विरोध में खड़े हैं।

वे कहते हैं, हम तो सिर्फ 13 अखाड़ों को ही मान्यता देते हैं। इनके अलावा किसी और अखाड़े का न कोई अस्तित्व है और न ही मान्यता। इसी पर किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण का कहना है कि संत कौन होगा, अखाड़ा कौन बनाएगा, इसे कोई व्यक्ति कैसे तय कर सकता है। हमें किसी से मान्यता लेने की जरूरत ही नहीं। हम अपने अधिकार लेकर रहेंगे। हम शासन-प्रशासन के पीछे भागने वाले नहीं हैं। हम प्रयाग, हरिद्वार और नासिक में भी अपने अखाड़े के मुख्यालय स्थापित करेंगे। हमें शंकराचार्य और हजारों संतों का आशीर्वाद प्राप्त है।

जारी होगा परिचय पत्र

स्वागत और विरोध के बीच अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने यह कहकर एक नई बहस को मौका दे दिया कि अब संतों का परिचय पत्र जारी होगा। वे कहते हैं कि अखाड़े के महंत अपने-अपने अखाड़े के संतों का परिचय पत्र जारी करेंगे। संत समाज में अखाड़ा परिषद का इस बात का मखौल उड़ाया जा रहा है कि क्या अब संत आईडेंटिटी कार्ड लेकर चलेंगे। क्या वह तभी संत माने जाएंगे, जब उनका परिचय पत्र होगा। क्या संतत्व की नई परिभाषा गढ़ी जाएगी?

इनके बोल, बड़े अनमोल

सनातन धर्म सबको जोड़ता है। इसके पक्ष में धर्मयुद्ध के लिए जो भी खड़ा हो, हमारा उसे आशीर्वाद है। किन्नर अखाड़ा समुदाय के संत यदि सनातन परंपरा को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं तो इसे अनुचित कैसे ठहराया जा सकता है। किसी की ईश्वर भक्ति और समर्पण पर विवाद क्यों। हम तो उन सबको संत मानते हैं जो ईश्वर में लीन होने की चेष्टा में हैं। आखिरकार धर्म की रक्षा और भगवत भजन करने का अधिकार तो सबको होता ही है।

-शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती

वेदों और श्रुतियों में सबको ईश्वराभिमुख होने का नैसर्गिक अधिकार बताया गया है। ऐसी आत्माएं जो भगवान से प्रेम करती हैं, भगवान उनसे दोगुना प्रेम करते हैं चाहे वह स्त्री हो, पुरुष हो या किन्नर। अगर किसी में शरीराभिमान है तो वह ईश्वर भक्ति में लीन हो ही नहीं सकता। श्रीमद्भागवत पुराण, भगवद्गीता, रामचरित मानस आदि ग्रंथों में भी भक्ति, भक्त और भगवंत के प्रति यही स्थापना है। इसलिए किन्नर समुदाय का विरोध कदापि नहीं होना चाहिए।

-शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ

बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब सदग्रंथन्ह गावा। मनुष्य के स्वरूप की निन्दा करना, भारतीय संस्कृति का अपमान है। जातिवाद,सम्प्रदायवाद,क्षेत्रवाद, स्त्रीवाद, पुरुषवाद, अर्धनारीश्वरवाद, शिखण्डीवाद व किन्नरवाद आदि अनेकवाद की मायावी उलझन में पडक़र मानव की निन्दा बंद करनी चाहिए। भगवान सभी में हैं। हमें सभी रचनाओं का सम्मान करना चाहिए। क्रियायोग भी यही सिखाता है। इसके अभ्यास से हम निन्दा करने की आदत व मायावी संस्कार के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं।

-क्रियायोगवेत्ता श्री श्री योगी सत्यम

हमारे वेदों, पुराणों और श्रुतियों में जड़-चेतन, चर-अचर, देवता, नर, किन्नर, गधर्व सबकी अपनी-अपनी जगह उचित मान्यता और प्रतिष्ठा है। किन्नर समुदाय यदि ईश्वर आराधना करते हुए सनातन धर्म की रक्षा के लिए काम कर रहा है तो उसके प्रति द्वेष भाव क्यों होना चाहिए। शंकराचार्य ने तो चार ही अखाड़े बनाए थे। अब अगर 13 अखाड़े हो गए हैं तो देश, काल और परिस्थिति के अनुसार और नए अखाड़े क्यों नहीं हो सकते। जो विरोध कर रहे हैं, उनके विरोध का कोई नैतिक और कानूनी अधिकार भी नहीं है।

-स्वामी चक्रपाणि, अध्यक्ष अखिल भारतीय संत महासभा



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