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Ganga Mela: रंगों के रेला नाम 'गंगा मेला', कानपुर में भैंसा और बैलगाड़ी से मशहूर इस त्योहार का क्या है इतिहास
Kanpur Ganga Mela:
Ganga Mela: होली कानपुर में एक ऐसा पर्व है, जो सात दिनों तक रंगों के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस बार गुरुवार यानि 20 मार्च को अनुराधा नक्षत्र में रंगपंचमी के मौके पर बुल्डोजर, भैंसागाड़ी और बैलगाड़ी के जरिए कानपुरवासियों पर रंग बरसाएंगे। गंगामेला, जो इतिहास से जुड़ा हुआ एक विशेष आयोजन है, कानपुरियों को रंगों से सराबोर कर देता है। इस खबर में जानिए कि गंगामेला की शुरुआत कैसे हुई और कैसे यह एक महत्वपूर्ण परंपरा बन गई।
कानपुर में होली से ज्यादा रंग गंगामेला पर खेला जाता है। अनुराधा नक्षत्र के दिन गंगामेला के अवसर पर कनपुरिये धूमधाम से रंग खेलेंगे। बुल्डोजर, भैंसागाड़ी और बैलगाड़ी में रंगों से भरे ड्रमों वाले ठेले शहर भर में घूम-घूमकर लोगों पर रंग बरसाएंगे। लोग छतों, छज्जों और खिड़कियों से रंगों की बौछार करके इन ठेलों का शानदार स्वागत करेंगे।रंगों से सराबोर नाचते झूमते होरियारे, पिचकारी लेकर दौड़ते हुए बच्चे, और फाग-होली गीत गाती टोलियां गंगामेला में रंगों की खुशी फैलाती हैं। यह दृश्य केवल कानपुर में ही देखने को मिलता है, जहां होलिका दहन से लेकर अनुराधा नक्षत्र तक रंग खेलने की परंपरा निभाई जाती है।
इस वर्ष गंगा मेला की 84वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। जैसे ही सुबह होती है, घरों में एक-दूसरे का चेहरा पोतने का सिलसिला शुरू हो जाता है। बच्चे आपस में रंग खेलते नजर आते हैं, और परिवारवाले आंगन व छतों पर मिलकर एक-दूसरे के चेहरे रंगते हैं। होरिया में उड़े गुलाल और 'होले खेले रघुवीरा' जैसे गानों पर नाचते हुए रंगों से भरे ठेले चलते हैं। गंगा मेला का समापन सरसैया घाट पर होता है।
गंगा मेला का इतिहास
वर्ष 1942 में होली के दिन अंग्रेज अधिकारियों ने गंगा मेला के आयोजन को बंद करने का आदेश दिया। गुलाबचंद सेठ ने इसका विरोध किया, तो गुस्साए अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। विरोध करने पर जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त पार्षद, बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां को भी गिरफ्तार कर सरसैया घाट स्थित जिला कारागार में बंद कर दिया गया। इस विरोध को देखते हुए क्रांतिकारियों ने सात दिन तक होली खेली, जो गंगा मेला के इतिहास का अहम हिस्सा बन गया।
रंग का ठेला: गंगा मेला का दिल
रज्जन बाबू पार्क से जैसे ही रंग का ठेला निकलता है, तो शहर भर में मस्ती की लहर दौड़ जाती है। हटिया, गया प्रसाद लेन, जनरलगंज, काहूकोठी, सिरकी मोहाल, महेश्वरी मोहाल, चटाई मोहाल, चौक, इटावा बाजार, मनीराम बगिया, धनकुट्टी, कलक्टरगंज, नील वाली गली और बिरहाना रोड समेत अन्य क्षेत्रों में रंगों की बौछार करती टोली निकलती है, जो पूरे शहर को रंगीन बना देती है।
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल
गंगा मेला के दौरान, मुस्लिम भाई भी रंग के ठेले का स्वागत करते हैं। तिरंगा फहराकर और फूलों की वर्षा कर वे इस उत्सव को और भी खास बनाते हैं। सभी एक-दूसरे को गुलाल लगाकर गले लगते हुए होली की शुभकामनाएं देते हैं। रास्तेभर में मुस्लिम समुदाय के लोग रंग के ठेले का स्वागत करते हैं, और छतों से भी रंगों की बारिश होती है।