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Kushmanda Devi Temple: शक्तिस्वरूपा मां का चौथा स्वरूप कूष्माण्डा देवी, कानपुर में मौजूद है एक मंदिर जहां एक ग्वाला से प्रसिद्ध हुईं माता

Kushmanda Devi Temple: हर मंदिर की अपनी अलग पौराणिक गाथा है। दुर्गासप्तशती में आदि शक्ति के जिन रूपों व नामों का वर्णन है उनमें " कूष्माण्डेति चतुर्थकम " अर्थात शक्तिस्वरूपा माँ का चौथा स्वरूप कूष्माण्डा है।

Anoop Shukla
Written By Anoop Shukla
Published on: 18 Oct 2023 8:19 AM GMT (Updated on: 18 Oct 2023 8:38 AM GMT)
Kushmanda Devi Temple  Kanpur
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Kushmanda Devi Temple Kanpur (photo: social media ) 

Kushmanda Devi Temple: शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व की धूम से पूरा देश सरोबार और हर्ष उल्लास में डूबा हुआ है। नवदुर्गा स्वरूप देवियों के मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है और जय माता दी, जय दुर्गा माँ के नारों की गूंज से भक्तिमय माहौल हुआ है। वैसे तो देश में नवदुर्गा स्वरूप देवियों के कई मंदिर हैं । हर मंदिर की अपनी अलग पौराणिक गाथा है। दुर्गासप्तशती में आदि शक्ति के जिन रूपों व नामों का वर्णन है उनमें " कूष्माण्डेति चतुर्थकम " अर्थात शक्तिस्वरूपा माँ का चौथा स्वरूप कूष्माण्डा है। कूष्माण्डा देवी का एक ऐसा ही मंदिर कानपुर जनपद में मौजूद हैं। माता के इस मंदिर की एक अपनी अलौकिक कथा है, यहाँ कूष्माण्डा देवी की प्रतिमा लेटी हुई है। माता के भक्त वैसे हर दिन माँ का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए आते हैं। लेकिन नवरात्र के दिनों में इसका महत्व कुछ अलग हो जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं इस मंदिर क्या है असली कहानी?

कूष्माण्डा देवी का यह भव्य व अद्भुत मंदिर कानपुर जनपद के घाटमपुर कस्बे के पूर्वी भाग में स्थित है। कानपुर इतिहास समिति के महासचिव अनूप शुक्ला कहते हैं कि कानपुर का इतिहास भाग- 1 में इस मन्दिर का उल्लेख कुड़हा देवी मन्दिर के रूप में मिलता है। यहाँ पर भगवती के चौथे रूप कूष्माण्डा की प्रधान प्रतिमा लेटी हुई है, जिसमें दोनों ओर सिर है और उदर एक है, जिसके केन्द्र मे नाभि भाग उत्कीर्णित है।

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विशेष स्थान पर अपना दूध गिरती थी गाय

मान्यता है कि इस स्थान पर सघन अरण्य था। कुड़हा नामक ग्वाला रोज गायों को चराने आता था। उसकी एक गाय ने जब शाम को दूध देना बंद कर दिया तो कुड़हा ने पड़ताल करना शुरू की। कुछ दिनों की हड़ताल के बाद उसने देखा कि यह गाय एक विशेष स्थान पर अपना दूध गिरा देती है। यह देख वह हैरान हो गया। उसने इस स्थान पर साफ सफाई कराने के साथ खुदाई का निर्णय लिया। जब यहां खुदाई शुरू हुई तो भगवती कूष्माण्डा की प्रतिमा निकली। देवी की प्रतिमा देख कुड़हा आश्चर्यचक रह गया। उसने उसी स्थान पर चबूतरा बना कर देवी प्रतिमा को स्थापित करवाई। यही वजह है कि घाटमपुर कस्बे के पूर्वी भाग में स्थित कूष्माण्डा देवी लोक में कुड़हा देवी के नाम से वह प्रसिद्ध हुईं।

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घाटमपुर के संस्थापक घाटमदेव जी कुड़हा देवी के परम भक्त

अनुप शुक्ल बताते हैं कि कुड़हा देवी का अगर कोई सबसे बड़ा परम भक्त हुआ है तो वे घाटमपुर के संस्थापक घाटमदेव जी थे। उन्होंने कुड़हा देवी को अपनी कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया था। उन्होंने बताया कि कालान्तर में बंजारो ने एक छोटा सा मठ बनवा दिया था। बाद के मन्दिर का निर्माण चन्दीदीन भुर्जी ने संवत 1947 में कराया था। वर्तमान में माँ कूष्माण्डा ज्योति समिति व नवयुवक संघ ने आरती व सौंदर्यीकरण के कार्यों का सम्पादन कराया। मन्दिर से सटा हुआ कूष्माण्डा सरोवर है। देवी कूष्माण्डा के चरणोद्क से नेत्रविकार दूर होने की भी मान्यता है। नवरात्र में यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मन्दिर के पास ही भदरस में भद्रकाली का भी मन्दिर है।

(लेखक कानपुर इतिहास समिति के महासचिव हैं)

Monika

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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