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Kanpur News: नेत्रों की ज्योति प्रदान करती माँ कूष्मांडा, घाटमपुर में स्थित है माँ का भव्य मंदिर

Kanpur News: नवरात्र के चतुर्थ दिन माँ कूष्मांडा का होता है मातारानी के स्वरूप के बारे में कवि एवं इतिहासकार रहे उम्मेदराय खरे द्वारा पाण्डुलिपि (फारसी में) रचित पुस्तक 'ऐश आफ्जा' में विधिवत वर्णन किया है। जिसमें माता कूष्मांडा देवी की मूर्ति दसवीं सदी के आसपास की प्राचीन बताई गयी है।

Anup Pandey
Published on: 6 Oct 2024 3:34 PM IST (Updated on: 6 Oct 2024 3:37 PM IST)
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Kanpur News: मां कुष्मांडा देवी पिंडी के रूप में दो मुख के साथ विराजमान है, जिनका आदि और अंत आज तक किसी को नहीं मिला है. इसी के चलते यह लेटी हुई प्रतीत होती हैं।मान्यता यह है कि अगर मां कुष्मांडा की मूर्ति से रिस रहे जल को आंखों में लगाया जाए तो बड़े से बड़ा नेत्र विकार भी जल्द ठीक हो जाते है।इसी के चलते यहां हमेशा सैकड़ो भक्तों का जमघट लगा रहता है। जो मां की आराधना कर अपने अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं.

नवरात्र के चतुर्थ दिन माँ कूष्मांडा का होता है मातारानी के स्वरूप के बारे में कवि एवं इतिहासकार रहे उम्मेदराय खरे द्वारा पाण्डुलिपि (फारसी में) रचित पुस्तक 'ऐश आफ्जा' में विधिवत वर्णन किया है। जिसमें माता कूष्मांडा देवी की मूर्ति दसवीं सदी के आसपास की प्राचीन बताई गयी है। पुस्तक में मान्यता के अनुसार कहा गया है कि माता की पूजा-अर्चना करने और जल को आंखों में लगाने से भक्तों को नेत्र ज्योति मिलती है। सिद्धपीठ मंदिर में मनोकामना पूरी होने पर भक्तों द्वारा चुनरी, ध्वज, नारियल और घंटा चढ़ाने के साथ ही भीगे चने भी अर्पण किये जाते हैं। ये सिद्ध पीठ कानपुर जनपद के घाटमपुर में स्थित है। कानपुर से तकरीबन 40 किमी दूर सागर हाइवे मार्ग में घाटमपुर कस्बे में स्थित माता कूष्मांडा का सिद्धपीठ मंदिर स्थित है।

क्या है माता के मंदिर का इतिहास

कूष्मांडा देवी के बारे में बुजुर्गो का कहना है कि जहां मंदिर बना है यहां जंगल और मिट्टी का बङा टीला था। जिसमें एक गाय रोजाना आकर खड़ी हो जाती थी। किवदंती है कि गाय का दूध अपने आप टीले के ऊपर गिरने लगता था। चरवाहे कुड़हादीन ने इसकी जानकारी घाटमपुर को बसाने वाले राजा घाटमदेव को दी। राजा ने टीले की खुदाई कराई जहां माता की लेटी हुयी मूर्ति निकली। इसके बाद उसी जगह चबूतरे का निर्माण कराया गया। स्थानीय लोगों ने चरवाहे के नाम कर ही माता को कुङहा देवी नाम दिया। इसके बाद कस्बा निवासी बंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण कराया था। नवरात्रि के चौथे दिवस चौथी शक्तिपीठ मां कूष्मांडा मंदिर में सांझ ढलते ही दीपदान का नजारा देखने योग्य होता है। माता के दर्शन के आज के दिन लाखों श्रद्धालु दूर -दूर से आते है वहीं दीप दान में लाखों दीयों की रोशनी से मंदिर जगमगा उठता है। वहीं मंदिर की सुरक्षाव्यवस्था को लेकर स्थानीय प्रशासन द्वारा पुख्ता इंतजाम किये जाते है।



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Shalini singh

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