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Navratri Special: स्वप्न में माता ने दिया मंदिर बनाने का संदेश, अब कानपुर के इस मंदिर में भक्त ताला बांधकर मांगते हैं मन्नत
Navratri Special: कालीबाड़ी में लोग मनौती के लिए ताला लगाते है और पूर्ण होने पर उसे खोलते है। इस वजह से परिसर में सैकड़ों ताले टंगे हैं। यह मंदिर कानपुर के लालबंगला के हरजेंदर नगर में स्थित है।
Kalibari Temple Kanpur: भगवती परमाम्बा के विविध नाम व रूप साधकों के मध्य प्रचलित हैं। उनमें से भगवती का एक रूप काली का भी है। इस रूप में उपासना सर्वाधिक बंग समाज में प्रचलित हैं। कानपुर में बंग समाज का पहला परिवार 1783 मे चन्द्रनगर से श्रीकृष्णचन्द्र मजूमदार का आया। इस शहर में जहां वह परिवार बसा वह बंगाली मोहाल और साल 1857 में बंगाली किला कहलाया।
मुखर्जी परिवार को स्वप्न में आया था मॉं देवी का संदेश
मान्यता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व कोलकाता के एक भक्त मुखर्जी परिवार को देवी जी का स्वप्न आया कि वह अब कानपुर जा रही हैं। भक्त मुखर्जी व्याकुलता में कोलकाता से कानपुर को पैदल चल दिए। कई माह बाद वह कानपुर पहुंचे। यहां पर उनकी एक महात्मा जी से भेंट हुई। फिर महात्मा जी मुखर्जी को स्न्नान कर भगवती काली माता का पूजन का निर्देश दिया। भक्त मुखर्जी महाशय ने कहा मैं पूजन विधि नहीं जानता हूँ...तो महात्मा जी ने कहा "एइतो माएर पूजो कुर्ते पारिस एमोन भाबेई मायर पूजो कोर्बी" अर्थात जैसे माँ की पूजा करते हो, इसी तरह ही माँ की पूजा करना है। इसके बाद जब मुखर्जी महाशय गंगा स्नान कर लौटे तो उन महात्मा जी की काफी खोज की, लेकिन वह उन्हें नहीं मिले। भक्त का एहसास हो गया कि वह महात्मा कोई और नहीं बल्कि भगवती काली का रुप थे। यहां पर भगवती काली की दक्षिणाभिमुख विशाल मूर्ति है। तन्त्र साधकों का आकर्षण का केन्द्र इस मन्दिर में बलिप्रथा प्रचलित रही और बलिवेदी भी बनी है। कालीबाड़ी में लोग मनौती के लिए ताला लगाते है और पूर्ण होने पर उसे खोलते है। इस वजह से परिसर में सैकड़ों ताले टंगे हैं। यह मंदिर कानपुर के लालबंगला के हरजेंदर नगर में स्थित है।
शास्त्रीनगर के काली मठिया मंदिर की कहानी
इसी प्रकार एक काली मठिया शास्त्रीनगर में भी प्रसिद्ध हैं। मान्यता है कि मतइयापुरवा के ग्रामीणों ने नीम व पीपल पेड़ के नीचे छोटे से चबूतरे पर काली जी की मूर्ति स्थापित कर पूजन करते थे। आजादी के बाद जब वहां श्रमिक कालोनियां बनी तो भगवती काली के साधकों में ख्याति अधिक बढ़ी। सन 1968 मे मन्दिर विस्तार की योजना से कार्य शुरू हुआ और फरवरी 1971 में काली जी की प्रतिमा स्थापित हुई। मौजूदा समय यह मंदिर कानपुर में लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। नवरात्रि में यहां माता के भक्तों का रैला लगा रहता है। काली मठिया मंदिर का संचालन एक समिति के हाथों से होता है।
(लेखक: अनूप कुमार शुक्ल, कानपुर इतिहास समिति के महासचिव)