Military Parachute: कानपुर में सेना के लिए बन रहे दो तोला तक के पैराशूट

Military Parachute: 20 से 400 ग्राम तक वजन के यह पैराशूट हमले के लिए कारगर है। पैराशूट थल सेना के नाइट ऑपरेशन में रोशनी बिखेरने का काम कर रहे।

Snigdha Singh
Written By Snigdha Singh
Published on: 4 Sep 2024 2:49 PM GMT
Military Parachute
X

Military Parachute (Pic: Social Media)

Military Parachute: तोला-माशा तो सोने-चांदी के कारोबार में चलते हैं, युद्धक उपकरणों में नहीं। आमतौर पर लोग यही समझते हैं लेकिन युद्ध में भी तोले दो तोले के उपकरण बड़े काम करते हैं। कानपुर की ऑर्डिनेंस पैराशूट फैक्ट्री में 20 ग्राम तक के हल्के पैराशूट बन रहे हैं। इन्हें मोर्टार गन और रॉकेट लांचर से लक्ष्य तक भेजा जाता है। यह इल्यूमिनेटिंग पैराशूट हैं, जिनका काम किसी खास इलाके में रोशनी करने का होता है। यहां 20 से 400 ग्राम तक वजन के इन पैराशूटों का उत्पादन चल रहा है और इसकी आपूर्ति भी भारतीय सेना को होने लगी है।

टाइमर और केमिकल युक्त कैंडल से लैस

रोशनी बिखेरने वाले इल्युमिनेटिंग पैराशूट छह तरह के गोलों के शेल के साथ इस्तेमाल होते हैं। इनमें टाइमर फिट होता है। इनके एक खास ऊंचाई पर गुरुत्वाकर्षण बल लगते ही पैराशूट खुलता है। इसमें एक केमिकल युक्त कैंडल लगी होती है, जो हवा के संपर्क में आते ही जलती है। पैराशूट के खुलते ही जलती हुई कैंडल नीचे उतरती है। जितने क्षेत्रफल में रोशनी की जरूरत होती है, उतना बड़ा पैराशूट अधिक क्षमता के गोलों के शेल के साथ दागा जाता है। रोशनी होने पर सेना को अंधेरे में कोई नाला, खाई या किसी भी तरह के खतरे का अंदाजा हो जाता है।

पैराशूट धीरे धीरे नीचे उतरते हैं, जितनी देर तक वह ड्रॉप होते हैं, तब तक पूरे क्षेत्र में केमिकल युक्त कैंडल से रोशनी रहती है। 20 ग्राम का पैराशूट 0.93 किलो वजन की कैंडल लाइट संग 150 मीटर ऊंचाई पर खुलता है। यह तीन से चार मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से उतरता है। इसे 51 एमएम के शेल के साथ मोर्टार गन से दागा जाता है। जबकि 400 ग्राम का इल्युमिनेटिंग पैराशूट 43 किलो के वजन के साथ 1200 मीटर की ऊंचाई पर खुलता है। 10 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार 155 एमएम शेल से फायर होता है।

खासियत

20 ग्राम से शुरू होकर यह 100 ग्राम, 120 ग्राम, 160 ग्राम, 360 ग्राम और 400 ग्राम वजन के पैराशूट आर्डिनेंस पैराशूट फैक्ट्री में बन रहे हैं। इनका इस्तेमाल एक बार ही किया जाता है। वजन के हिसाब से इनमें अलग अलग तरह का फैब्रिक और नायलॉन इस्तेमाल होता है। पैराशूट में लगी कैंडल केमिकल युक्त होने से हवा से बुझती नहीं हैं। टाइमर और तकनीक के तालमेल से इसे एक निर्धारित अवधि में ही खुलने के हिसाब से तैयार किया गया है।

आत्म निर्भर भारत के तहत निर्माण

एमसी बालासुब्रमणियम, महाप्रबंधक, ओपीएफ के अनुसार भारतीय सेना के लिए अंधेरे में किसी ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए यह हल्के इल्युमिनेटिंग पैराशूट सहायक बन रहे हैं। इनका उत्पादन फैक्ट्री में हो रहा है और सेना को इसकी आपूर्ति की गई है। आत्म निर्भर भारत मिशन के तहत अब पैराशूट के क्षेत्र में भारत की निर्भरता विदेशों पर नहीं है बल्कि भारत दूसरे देशों को निर्यात करने में सक्षम बन चुका है।

Sidheshwar Nath Pandey

Sidheshwar Nath Pandey

Content Writer

मेरा नाम सिद्धेश्वर नाथ पांडे है। मैंने इलाहाबाद विश्विद्यालय से मीडिया स्टडीज से स्नातक की पढ़ाई की है। फ्रीलांस राइटिंग में करीब एक साल के अनुभव के साथ अभी मैं NewsTrack में हिंदी कंटेंट राइटर के रूप में काम करता हूं। पत्रकारिता के अलावा किताबें पढ़ना और घूमना मेरी हॉबी हैं।

Next Story