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Kanpur News: तकनीक की दृष्टि से दुनिया की सबसे उत्तम है संस्कृत: प्रो. विनय कुमार पाठक

Kanpur News: कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने कहा कि संस्कृत तकनीक की दृष्टि से दुनिया की सबसे उत्तम भाषा है। उन्होंने मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि चीन ने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपनी मातृभाषा में विकसित किया है।

Anup Pandey
Published on: 23 Feb 2024 7:36 PM IST
Pro. Vinay Kumar Pathak said- Sanskrit is the best in the world from the point of view of technology
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प्रो. विनय कुमार पाठक ने कहा- तकनीक की दृष्टि से दुनिया की सबसे उत्तम है संस्कृत: Photo- Newstrack

Kanpur News: छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो. विनय कुमार पाठक ने स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ और शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के द्वारा “अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” सप्ताह के अंतर्गत "आधुनिक तकनीक और हिन्दी" विषय पर एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन वर्चुअल माध्यम से किया गया।

दुनिया की सबसे उत्तम भाषा संस्कृत

कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने कहा कि संस्कृत तकनीक की दृष्टि से दुनिया की सबसे उत्तम भाषा है। उन्होंने मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि चीन ने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपनी मातृभाषा में विकसित किया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य संगोष्ठी तक सीमित न रहे बल्कि प्रयोग की दृष्टि से व्यवहार में भी आत्मसात किया जाए तो अधिक लाभप्रद होगा।

रिपोर्ट के अनुसार 42 भाषाएं संकट ग्रस्त

मुख्य वक्ता बालेन्दु शर्मा जी ने बताया कि यूनेस्को के द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 42 भाषाएं संकट ग्रस्त है।भाषा वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी भाषाओं की संख्या 1500 से भी अधिक है। उन्होंने भाषा संवर्धन और लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण में प्रौद्योगिकी की भूमिका को अहम बताया। भाषा सबसे अधिक व्यावसायिक कारणों से प्रभावित होती है। किसी भी भाषा का विकास विज्ञान, प्रौद्योगिकी और तकनीक से जुड़ने और आत्मसात् करने से होता है।

रेडियो के माध्यम से पिछड़ी भाषाओं का हुआ सर्वाधिक विकास

भाषा का मुख्य उद्देश्य आर्थिक अवसर पैदा करना, तकनीक कौशल का निर्माण, भावी पीढ़ियों के लिए भाषा एवं संस्कृति का संरक्षण इत्यादि प्रमुख है। रेडियो के माध्यम से पिछड़ी भाषाओं का विकास सर्वाधिक हुआ। इन्होंने लिपि पर बात करते हुए कहा कि गोंडी भाषा के 20 लाख लोगों में से मात्र 100 लोग ही अपनी लिपि लिखना जानते है। संथाली भाषा का विकास तकनीक के कारण ही संभव हो सका है। इसलिए उन्होंने यह कहा कि— "नहीं नारों के दम पर एक भी सीढ़ी चढ़ेगी/ नतीजे हम दिखाएंगे तभी हिंदी बढ़ेगी" । हिंदी की सर्वाधिक प्रगति तकनीकी क्षेत्र में हुई है।

आज हिंदी में आख़िर क्या नहीं है ?

दफ़्तर का काम, संचार-सहकर्म, सोशल मीड़िया, सामग्री निर्माण, प्रकाशन और मीडिया, सर्च इंजन, वेबसाइट विकास, मोबाइल विकास, डेटा विश्लेषण, नवाचार आदि सब तो है। जावा एवं माइक्रोसॉफ्ट ने हिंदी भाषा में एक दर्जन से अधिक सॉफ्टवेयर विकसित किए हैं। आधुनिक तकनीक एवं हिंदी के विकास में अगर कमी है तो वह है— जागरूकता, डिजिटल साक्षरता, तकनीकी मित्रता एवं महत्वाकांक्षा का आभाव है। क्योंकि वस्तुस्थिति यह है कि अधिकांश चीजें जो चाहिए थीं वे मिल चुकी हैं; जैसे कि— हिंदी फॉन्ट, हिंदी ऑफिस अनुप्रयोग (हिंदी वर्तनी जाँच), हिंदी में इंटरफ़ेस (हिंदी डोमेन नाम), हिंदी ईमेल पते, हिंदी मशीनी अनुवाद (हिंदी स्वचालित कैप्शन), हिंदी वाक् से पाठ, हिंदी ओसीआर (इंक रिकॉग्निशन), हिंदी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (हिंदी जेनेरेटिव एआई) इत्यादि। हिंदी भाषा की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चैट जीपीटी की मदद से आज हम सृजनात्मक कृत्रिम बुद्धिमत्ता की ओर जा रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि आज प्रौद्योगिकी के माध्यम से चुनौतियों को दूर किया जा चुका है। जैसे कि— स्थानीय भाषाओं में पाठ का डिस्प्ले, टेक्स्ट इनपुट और स्टोरेज, लोकलाइजेशन या स्थानीयकरण, ऑफिस में भाषाई सुविधाएँ और युक्तियाँ और रोजमर्रा की दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता इत्यादि।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालाय के माननीय प्रति-कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी जी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि आज के हमारे विशिष्ट वक्ता श्री बालेंदु दाधीच जी ने भारतीय भाषाओं के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया और वे भाषायी एकता और संस्कृति के सूत्रधार हैं। कार्यक्रम का संचालन रंजना यादव (प्रांत संयोजिका भारतीय भाषा मंच) ने तथा धन्यवाद स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ के निदेशक डॉ. सर्वेश मणि त्रिपाठी जी ने किया।



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Shashi kant gautam

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