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Kanpur News: जानिए विशेषज्ञ की जुबानी, क्यों जरूरी है वर्षा ऋतु में मछली पालन
कोरोना के कारण हुई आर्थिक छति की भरपाई के लिये, इस समय का यदि मत्स्य पालक सदुपयोग कर लें तो मछली पालन से अच्छी आय अर्जित की जा सकती है।
Kanpur News: उत्तर प्रदेश के कानपुर में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मत्स्य विशेषज्ञ डॉक्टर आनन्द स्वरूप श्रीवास्तव,(प्रभारी मत्स्य) ने बातचीत करते हुए बताया कि वर्षा ऋतु में मछली पालन करना से व्यवसाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय होता है।इस व्यवसाय से अच्छी आमदनी के साथ पौष्टिक आहार प्राप्त हो सकता है।
आर्थिक क्षति दूर करने का सबसे अच्छा समय
उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण हुई आर्थिक छति की भरपाई के लिये, इस समय का यदि मत्स्य पालक सदुपयोग कर लें तो मछली पालन से अच्छी आय अर्जित की जा सकती है। चूंकि अधिकांश मछलियां वर्षा ऋतु में प्रजनन करती हैं और इनके बच्चे जिन्हें हम फ्राई,या जीरा कहते है तैयार होते है।मत्स्य नर्सरी में इनका संचय कर मत्स्य अंगुलिका तैयार की जाती है। यही मत्स्य अंगुलिका का बरसात के समय संचय कर मत्स्य उत्पादन किया जाता है। यह सब कार्य वर्षा ऋतु में ही किये जाते है।
मछली पालन से एक ओर जहां अच्छी आय के साथ पौष्टिक आहार प्राप्त होता है वही दूसरी ओर जल संचय तथा भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि भी होती है। मत्स्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2018 -19 में प्रदेश में मछली का की उत्पादकता लगभग 4500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी तथा प्रदेश में उत्पादन लगभग 6,62000 मीट्रिक टन था।
वैज्ञानिक विधि से बढ़ सकता है मछली उत्पादन
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक विधि से मछली उत्पादन को और बढ़ाया जा सकता है। किसान भाई मत्स्य पालन के साथ-साथ बत्तख, उद्यान,पशुपालन कर अतिरिक्त लाभ अर्जित कर सकते हैं। उन्होंने बताया की मछली एक शक्ति वर्धक एवं पौष्टिक खाद्य पदार्थ है यह खाने में सुपाच्य होती है। और इसमें आवश्यक अमीनो एसिड तथा प्रोटीन भी अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसके अतिरिक्त इसमें वसा, कैल्शियम व खनिज भी पाए जाते हैं जिसके कारण संतुलित आहार में मछली की विशेष उपयोगिता है। उन्होंने बताया कि गांव क्षेत्र में कृषक भाई अनुपयोगी तालाबों की सफाई करने के उपरांत उसमे मत्स्य अंगुलिकाओ का संचय करे। वर्षा का मौसम मछली पालने के लिए उपयुक्त है।
कम पूंजी में मिलता है अधिक लाभ
उन्होंने बताया कि मत्स्यय व्यवसाय एक श्रम प्रधान व्यवसाय है इस व्यवसाय में कम पूंजी लगाने पर अधिकतम लाभ अर्जित कर सकते हैं मछली पालने के लिए सबसे पहले तालाबों में उपस्थित खरपतवार की सफाई कर ले। तालाबों में खरपतवार जैसे जलकुंभी, लैमिना, हाइड्रिला आदि होते हैं। अधिक जलीय वनस्पति होने की दशा में रसायनों का प्रयोग जैसे फ़रनेक्सान 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तालाब में प्रयोग कर सफाई करनी चाहिए तथा बंधे आदि दुरुस्त कर लेना चाहिए।
चूना जल की छारीयता का करता है संतुलन
मछलियों की बढ़वार में जल की छारीयता का विशेष महत्व है।मछली का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए जल की छारियता 7.5-8.5 तथा घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम प्रति लीटर आवश्यक होती है जल की उत्पादकता हेतु छारीयता का निर्धारण करने के लिए गोबर की खाद और चूने का प्रयोग किया जाता है उन्होंने बताया कि चूना जल की छारीयता का संतुलन करता है। साथ ही साथ मछलियों में होने वही अधिकांश बीमारियो से बचाव भी होता है। वही गोबर की खाद से मछली का प्राकृतिक भोजन जिसे प्लेकटान कहते हैं उत्पन्न होता है।
परंतु जब तालाब में वैज्ञानिक तरीके से मछलियों को अधिक संख्या में पाला तो उनके भोजन की अतिरिक्त व्यवस्था करनी होती है।इसके लिए सरसो की खली और धान के कना का 50- 50 प्रतिशत (वजन) के हिसाब से भोजन के लिए प्रयोग करते है। इससे मछलियों को पौष्टिक आहार प्राप्त होता है और अच्छी बढ़वार मिलती है।उन्होंनेे कहा कि जब तालाब की तैयारी हो जाए तो मत्स्य विभाग के माध्यम से मछली के बच्चों जिन्हें अंगुलिका कहते है,की बुकिंग करा लें उन्होंने बताया कि आमतौर पर मछली पालन हेतु भारतीय मछली मेजर कॉर्प ( रोहू,कतला और नैन) और विदेशी प्रजाति में कॉमन कार्प,ग्रास कॉर्प और सिल्वर कॉर्प का चयन सबसे उपयुक्त रहता है।
पंगेसियस मछली की बढ़ गई है मांग
उन्होंने बताया कि आज कल शहरों में पंगेसियस मछली की भी बहुत मांग है, मत्स्य पालक समय की मांग के अनुसार पंगेसियस मछली का अवश्य उत्पादन करे। मत्स्य अंगुलिका जितनी बड़ी होंगी उतना उपयुक्त होगा छोटे बच्चों में मृत्यु दर होना स्वाभविक है। वर्षा ऋतु में एक बात का मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिये, चुकी मछली पानी मे घुलित ऑक्सीजन का प्रयोग अपने श्वसन के लिए करती है और पानी में इसकी उप्लब्धतता जलीय वनस्पति के प्रकाश संश्लेषण के द्वारा होती है।
वर्षा ऋतु में अधिक समय तक बदली होने के कारण से कभी कभी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया कम हो जाती है परिणाम स्वरूप ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।और मछली अपना मुंह ऊपर निकलती हुई दिखती है।यदि ऐसा हो तो पानी में उथल-पुथल करना चाहिए और ताजे पानी की फव्वारा रूप में आपूर्ति करना चाहिए जिससे वातावरण की ऑक्सीजन पानी मे घुल जाए। डॉ आनन्द श्रीवास्तव ने बताया की मत्स्य पालक वैज्ञानिक विधि से मछली पालन करके एक हेक्टेयर तालाब से प्रतिवर्ष ₹ 2 से 3 लाख की आमदनी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।