आठ सौ साल पुराना देवी मंदिर, नवरात्र की अष्टमी को लगता है मेला

करहल में विराजमान माता शीतला देवी का प्रिय भोग बसौड़ा है। नवदुर्गा की सप्तमी ,अष्टमी की रात्रि को प्रसाद बनाया जाता है।

Praveen Pandey
Reporter Praveen PandeyPublished By Shraddha
Published on: 20 April 2021 4:35 PM GMT (Updated on: 20 April 2021 4:37 PM GMT)
करहल में विराजमान माता शीतला देवी का प्रिय भोग बसौड़ा
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 800 साल पुराना शीतला देवी मंदिर

मैनपुरी : वैसे तो करहल कस्बा काफी छोटा है। लेकिन कस्बे में कई करिश्माई नजारे सबके सामने आते रहते हैं। मैनपुरी जनपद (Mainpuri district) में कस्बा करहल में माता शीतला का मंदिर भी इसी इतिहास का प्रतीकात्मक दृश्य है। जो इतिहास पन्नो में दर्ज है। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि कन्नौज की बेटी मैनपुरी के राजा तेज सिंह के लिए ब्याही थी और उनके कोई संतान नहीं थी। तभी मैनपुरी के राजा तेज सिंह (Raja Tej Singh of Mainpuri) ने कलकटिया घाट पर 21 वर्ष व रानी ने 11 वर्ष दोनों ने मिलकर घन घोर तपस्या की। मैनपुरी की महारानी माता शीतला की परम भक्त थीं।

एक बार राजा तेज सिंह सपने में माता शीतला ने दर्शन दिए और कोलकाता में मूर्ति होने की बात कही। तभी राजा तेज सिंह उन्हें मैनपुरी ले जाने की विनती की। इस पर माता शीतला ने उनसे शर्त रखी कि जहां मुझे उतार दोगे हम वहीं उतर जायेगें। फिर वहीं रहेंगे। जिसके बाद महाराजा तेज सिंह सुबह ही कोलकाता (kolkata) मूर्ति लेने के लिए निकल पड़े और माता शीतला के बताए हुये स्थान पर जाकर उन्हें वहां से निकाल लिया।

माता शीतला मंदिर का रहस्य

आपको बता दें कि राजा माता शीतला को सर पर रखकर मैनपुरी के लिए वापस चल दिए। इस दौरान वह चलते चलते वापस करहल पहुंचे वैसे ही उन्हें लघुशंका करने के लिए माता की शर्त भूलकर राजा ने प्रतिमा को अपने सैनिक को पकड़ा दिया। जिसके बाद राजा लघुशंका के लिए चले गए। तभी मूर्ति भारी होती गई और सैनिक ने मूर्ति को वहीं रख दिया। वापस आने पर राजा तेज सिंह ने जैसे ही प्रतिमा को उठाया तो माता की प्रतिमा अपना स्थान ले चुकी थी।

काफी प्रयासों के बाद मूर्ति हिली तक नहीं। जिसके बाद राजा ने फिर से माता को याद किया तो माता ने अपनी शर्त याद दिलाई। जिस पर राजा को बहुत दुःख हुआ और कहा कि मैं अपनी रानी की मनोकामना भी पूरी नहीं कर पाया। तभी रानी ने उनसे नदी के पास अपना स्थान बनाये जाने को कहा। माता ने कहा कि वहीं हम आ जायेंगे। इस पर राजा तेज सिंह ने ईशन नदी पुल के निकट स्थान बनवा कर मंदिर की स्थापना कराई। वहीं करहल में भव्य ऐतिहासिक माता शीतला देवी का मंदिर का निर्माण कराया साथ ही ट्यूबैल व विश्राम ग्रह बनवाया।

नव दुर्गा अष्टमी को विशाल भव्य मेले का आयोजन

तभी से नव दुर्गा महोत्सव की अष्टमी को विशाल भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। जहां दूरदराज के ग्रामीण आकर यहां मेले का जमकर लुत्फ उठाते हैं और सतिया बनाकर अपनी मन्नतों को मांगते हैं। मैनपुरी जनपद में सदर और करहल की माता शीतला देवी के मंदिर पर वर्ष के प्रतिदिन श्रद्धालु माता शीतला के दर्शन के लिए यहां मत्था टेकते आते हैं। नवदुर्गा की अष्टमी के दिन यहां मन्नते मांगने वालों की मुरादे पूरी होती है। जब श्रद्धालु यहां आकर मंदिर परिसर में सतिया बनाकर अपनी मन्नते मांगते हैं। और मन्नते पूरी होने पर नवदुर्गा महोत्सव में नेजा चढ़ाते हैं। मंदिर के सर्वराकार पप्पू ने बताया कि यह मंदिर लगभग 800 वर्ष पुराना है। महामाई का इतिहास काफी पुराना है। उनके दरबार में मन्नते मांगने पर मां उसकी सारी मुरादे पूरी करती हैं।


आठ सौ साल पुराना मंदिर फाइल फोटो (सौजन्य से सोशल मीडिया )

माता शीतला का मुख्य प्रसाद है बसौड़ा

करहल में विराजमान माता शीतला देवी का सबसे प्रिय प्रसाद बसौड़ा है। इसे नवदुर्गा की सप्तमी और अष्टमी की रात्रि को प्रसाद तैयार किया जाता है और अष्टमी को सुबह प्रसाद का भोग लगाकर उसका वितरण किया जाता है। इसके साथ ही बीरा बताशे भी यहां का प्रसाद के रूप में चढाया जाता है।

करिश्माई हैं करहल की माता शीतला की महिमा

महाराजा तेज सिंह के द्वारा बनवाए गए ट्यूबैल के खराब हो जाने पर क्रेन से मशीन को सेट कर रहे थे और उस बोरिग में 4 मजदूर काम कर रहे थे। तभी लोहे कि रस्सी अचानक टूट गई और क्रेन गिर पड़ी तभी मजदूरों ने माता रानी को याद किया तो मातारानी अचानक प्रकट हो गई और क्रेन को चुम्मक की तरह चिपका गई।

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