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बदलने लगी बदनाम इलाके की फिजां, काशियाना फाउंडेशन ने की ये अनोखी पहल

raghvendra
Published on: 15 Dec 2017 1:10 PM IST
बदलने लगी बदनाम इलाके की फिजां, काशियाना फाउंडेशन ने की ये अनोखी पहल
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आशुतोष सिंह

वाराणसी। शिवदासपुर को बनारस की सबसे बदनाम इलाके के तौर पर पहचाना जाता है। कभी यहां की गलियों में घुंघरूओं और तबले की थाप पर महफिलें जमती थी। इन गलियों में सैकड़ों सालों से जिस्मफरोशी का धंधा चलता था, लेकिव वक्त बदलने के साथ अब यहां की तस्वीर भी बदलने लगी है। यहां पर रहने वाली नगरवधुएं अब बदनामी की छाप अपने बच्चों पर नहीं पडऩे देना चाहती है। जिल्लत भरी जिंदगी से पीछा छुड़ाने के लिए यहां की नगर वधुएं छटपटा रही हैं। ऐसे में नगरवधुओं और उनके बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए बीएचयू और काशी विद्यापीठ के छात्रों का एक दल आगे आया है। ये छात्र अपनी पॉकेटमनी से इनके लिए सुविधाएं जुटा रहे हैं। इन छात्रों की कोशिश है कि सालों से जिल्लत भरी जिंदगी जीने वाली ये नगरवधुएं अब समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें।

छात्रों के संगठन ने लिया गोद

बनारस की इस बदनाम गली की फिजां अब बदली-बदली सी दिख रही है। कभी जिस्म बेचकर परिवार पालने वाली नगरवधुएं अब समाज की मुख्य धारा में शामिल होना चाहती हैं। उनकी मदद के लिए आगे आए छात्र उनकी जिंदगी में उजाला बिखरने की कोशिश कर रहे हैं। छात्रों के संगठन काशियाना फाउंडेशन ने बनारस से सटे शिवदासपुर गांव को गोद लिया है। संगठन की कोशिश है कि सरकार की मदद से नगरवधुओं की जिंदगी को संवारा जाए। काशियाना ग्रुप के प्रमुख सदस्य सुमित बताते हैं कि हमने 15 वार्डों को चिन्हित कर घर-घर जाकर देखा तो कुछ लोगों के घरों में शौचालय व बिजली नहीं है। अब गांव वाले खुद मिलकर उसे मुहैया करा रहे हैं। साथ ही हमारे फाउंडेशन के साथ लोग जुड़ रहे हैं। सुमित और उनके साथियों ने बकायदा डीएम और सीडीओ के हस्ताक्षर से इस गांव को गोद लिया है। गांव की तस्वीर बदलने के लिए वे लगातार कोशिश कर रहे हैं। सुमित के मुताबिक इन गलियों का जो इतिहास रहा है, अब वो कोसों दूर जा चुका है। दो-चार घरों में ऐसा कुछ हो रहा है तो गांव वाले उन्हें समझा रहे हैं। उनकी इस पहल का असर भी दिखने लगा है। लोगों में जागरुकता लगातार बढ़ रही है।

शिवदासपुर इलाके का दौरा करते काशियाना फाउंडेशन के संस्थापक सुमित व अन्य सदस्य

इलाके में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

गांव के 30-35 घर रेडलाइट एरिया के अंतर्गत आते हैं और यहां काफी समय से बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। ग्रामीणों का आरोप है कि इलाके में राशन कार्ड बनाने में भी धांधली की गई है। गांव के बदनाम होने के कारण यहां रहने वाले आम परिवारों के लोग भी अपने घरों के बाहर गृहस्थ घर होने का बोर्ड लगाकर रहने को मजबूर हैं। खैर अब शिवदासपुर गांव को बदलने और सुविधाओं के विकास के लिए बनारस की इस संस्था की ओर से पहल की गई है। गांव में जागरुकता लाने के लिए छात्रों का यह दल नगरवधुओं के बीच जाता है। उनकी काउंसिलिंग करता है।

सरकार की ओर से चलाई जा रही है योजनाओं के बारे में बताता है। यही नहीं छात्र खुद हर रविवार को गांव में सफाई अभियान चलाते हैं। छात्रों के मुताबिक सरकारी योजनाओं को ठीक ढंग से लागू कराने के अलावा उद्यमियों से सहयोग लिया जाएगा। संस्था से जुड़े छात्र अपना जेब खर्च भी गांव की सुविधाओं पर लगा रहे हैं। संस्था द्वारा गांव के लोगों के लिए अलग से वेबसाइट बनाई जाएगी। इसके साथ ही इस इलाके में स्कूल, स्किल डिवलेपमेंट, पीने का शुद्ध पानी, शौचालय और अन्य महत्वपूर्ण सुविधाओं के विकास के लिए काम किया जाएगा। इसके अलावा गांव के युवाओं के लिए रोजगार और महिलाओं को कुटीर उद्योग से जोडऩे के लिए भी कई कदम उठाए जाएंगे। संस्था के दूसरे अहम सदस्य आशीष बताते हैं कि हमारी संस्था कुल 19 प्वाइंट पर कार्य कर रही है। सरकारी तंत्र से जुडक़र स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई, ई लाइब्रेरी और युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता है। हमारी कोशिश है कि यहां पर जितनी भी समस्याएं हैं, उन्हें सरकारी तंत्र की मदद से दूर किया जाए।

रंग ला रही है छात्रों की पहल

छात्रों की यह कोशिश रंग भी ला रही है। सालों से जिस्मफरोशी के दलदल में फंसी रहने वाली नगरवधुएं चाहती हैं कि उनके घरों की बहू-बेटियों इस धंधे में न आएं। हालांकि इन लोगों को सरकार से नाराजगी है। बातचीत के दौरान एक नगरवधू बताती है कि सरकार से उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिल रही है। ना राशन कार्ड है और ना ही अन्य सुविधाएं मिल रही है। हम नहीं चाहते हैं हमारे बच्चे पेशे में आएं। एक नगरवधू बताती है कि अब हम धंधे से हट रहे हैं। बच्चे पढ़ लिख रहे हैं। उनकी शादी हो रही है। यहां का प्रधान कहता है कि पक्का मकान तो है मगर सवाल यह है कि क्या मकान खोद के खाएंगे।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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