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धार्मिक नगरी काशी भी स्वच्छता के मोर्चे पर फेल

raghvendra
Published on: 1 Jun 2018 8:13 AM GMT
धार्मिक नगरी काशी भी स्वच्छता के मोर्चे पर फेल
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धार्मिक नगरी काशी को क्योटो बनाने का सपना देखा था। काशी के कायाकल्प के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के अधिकारी दिन रात मेहनत भी कर रहे हैं, लेकिन स्वच्छता के मोर्चे पर पूरा मामला फेल है। आलम ये है कि पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी बनारस देश के टॉप टेन स्वच्छ शहरों में अपनी जगह नहीं बना पा रहा है। गलियां कूड़े से पटी पड़ी हैं तो चुनिंदा घाटों को छोडक़र अधिकांश पर गंदगी का साम्राज्य दिखाई पड़ता है। सडक़ें ईंट, पत्थर और धूल से सनी हैं। सुव्यवस्थित मॉनीटरिंग न होने से सिर्फ कागजों पर सफाई हो रही है, लेकिन सडक़ों पर कूड़ा पटा पड़ा है। शहर का कोई भी ऐसा इलाका नहीं, जहां कूड़ा उठाया जा रहा हो और नियमित सफाई कराई जा रही हो। शहर के भीतरी हिस्से में तो हालात और बदतर हैं। निजी एजेंसियों आईएलएफएस, कियाना सोल्यूसंश और इकोपाल के डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के दावे के बावजूद सफाई कर्मी घरों तक नहीं पहुंच रहे हैं।

हाल-ए-नगर निगम

  • रोजाना शहर से निकलता है 600 मीट्रिक टन कूड़ा और हर महीने सफाई व्यवस्था पर खर्च होते हैं 4.50 करोड़ रुपए।
  • नगर निगम में नियमित सफाई कर्मी हैं 1100 जबकि संविदा सफाई कर्मी 1150 और आउटसोर्सिंग वाले सफाईकर्मी 600 हैं।
  • नगर निगम के पास आठ जेसीबी एवं आठ कांपैक्टर, 27 डंपर, 20 ट्रैक्टर, 18 हापर एवं नए 25 हापर, 37 टाटा मैजिक उपलब्ध हैं।
  • शहर में 2850 सफाई कर्मचारी शहर के सभी 90 वार्डों में डोर टू डोर कूड़ा उठाने का काम करते हैं। शहर में दो पालियों में कूड़ा उठाने की व्यवस्था है। सुबह की पाली में घरों से कूड़ा उठाया जाता है, जबकि सडक़ों और सार्वजनिक स्थलों पर दो बार कूड़ा उठाया जाता है।
  • शहर की सफाई व्यवस्था के लिए नगर निगम के साथ ही तीन निजी एजेंसियां आईएलएफएस, कियाना सोल्यूसंस और इकोपाल लगाई गई हैं।
  • नगर की सफाई व्यवस्था पर नजर बनाए रखने के लिए जोनल अधिकारी के अलावा सफाई इंस्पेक्टरों, सुपरवाइजरों की नियुक्ति की गई है।
  • कूड़ा निस्तारण के लिए चार प्लांट लगे हैं। करसड़ा प्लांट में वेस्ट टू कम्पोस्ट बनाया जाता है, जबकि आदमपुर, भेलूपुर और पहडिय़ा प्लांट में वेस्ट टू इनर्जी बनायी जाती है।

सघन इलाकों में हालात खराब

कहा जाता है कि गलियों में ही बनारस बसता है, लेकिन इन गलियों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। पक्के महाल को छोडक़र शहर की अधिकांश गलियां कूड़े से पटी रहती हैं। इन गलियों में सफाई कर्मी सिर्फ रस्मअदायगी के लिए कूड़ा उठाने का काम करते हैं। कुछ ऐसा ही हाल बनारस के घाटों का भी है। चुनिंदा घाटों को छोडक़र अधिकांश घाट कूड़े से पटे रहते हैं। स्थानीय लोग और स्वयंसेवी संस्था मिलकर सफाई का जिम्मा अपने कंधों पर उठा रहे हैं।

दावा नगर निगम का

नगर निगम का दावा है कि सभी जगहों पर स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी वीके दूबे के मुताबिक वार्डों में कूड़ा निस्तारण डोर टू डोर कराया जा रहा है। कुछ स्थानों पर कूड़ा उठान को लेकर शिकायतें जरूर हैं, इसे दुरुस्त किया जा रहा है। लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई भी की जाती है। नगर निगम के अधिकारियों के मुताबिक इन दिनों शहर में आईपीडीएस और गैस पाइपलाइन बिछाने का कार्य चल रहा है। इसके अलावा फ्लाईओवर निर्माण के साथ ही हृदय और अमृत योजना के चलते जगह-जगह सडक़ों की खुदाई हुई है। निर्माण कार्यों के चलते कूड़ा उठान में दिक्कत हो रही है।

नगर स्वास्थ्य अधिकारी के मुताबिक योजनाओं के चलते स्वच्छता की रफ्तार धीमी जरूर पड़ी है। खासतौर से गलियों में कूड़ा उठाने की समस्या सबसे अधिक है। सफाई को लेकर लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं हो पा रहा है। तमाम हिदायतों के बाद भी लोग सडक़ों पर कूड़ा फेंकने से बाज नहीं आते हैं। ऐसे लोगों पर नकेल कसने के लिए नगर निगम अब कड़ा कानून बनाने जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक इस कानून का खाका तैयार है, जल्द ही सहमति मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा।

मिशन ग्रामोदय से जगाई सफाई की अलख

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को प्रभावी बनाने तथा कूड़ा कचरा का बेहतर प्रबंधन करने के उद्देश्य से नगर निगम की सीमा से सटे 13 शहरीकृत ग्रामों में मिशन ग्रामोदय की शुरुआत की गई है। इसके तहत प्रदेश स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन किया जाएगा। पूरे प्रदेश में वाराणसी जिला प्रशासन की ओर से यह पहला प्रयोग है। कूड़ा कचरा को उठाने तथा परिवहन कर करसड़ा प्लांट ले जाने में आने वाले खर्च का भुगतान वाराणसी नगर निगम द्वारा किया जाएगा। मिशन ग्रामोदय के तहत नालियों की साफ सफाई, बड़े नालों की सफाई, डोर टू डोर वेस्ट कलेक्शन, सेग्रीगेशन तथा करसड़ा प्लांट तक परिवहन का कार्य शामिल है। इसके लिए प्रति परिवार 50 का मासिक यूजर चार्ज लिया जाएगा।

सफाई के मोर्चे पर कैंट रेलवे स्टेशन फेल

वाराणसी का कैंट रेलवे स्टेशन देश के सबसे गंदे स्टेशनों की सूची पर चौथे नंबर पर है। ये हाल तब है जब कैंट स्टेशन के कायाकल्प के लिए रेलवे मंत्रालय ने पूरी जान लगा दी है। रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा प्रत्येक योजना की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन कैंट स्टेशन की सफाई व्यवस्था ऐसी है कि स्टेशन के अंदर प्रवेश करते ही जगह-जगह कूड़े का ढेर दिखाई पड़ता है। यही हाल प्रतीक्षालय, यात्री हॉल व शौचालयों का भी है। यहां दुर्गंध के कारण दो मिनट भी ठहरना मुश्किल है। प्लेटफार्मों की पटरी पर ट्रेनों से गिरा मल-जल बजबजाता रहता है। बारिश के दिनों में तो स्थिति और बिगड़ जाती है। ये हालत तब है जबकि स्टेशन की सफाई के लिए तीन निजी एजेंसियों प्राइमस सोल्यूशन, किंग सिक्योरिटी, एपकान इंडिया को सफाई का ठेका दिया गया है। ये तीनों एजेंसियां स्टेशन परिसर के अलग-अलग हिस्सों में सफाई करती हैं।

सफाई के लिए बजट की बात करें तो प्रति वर्ष डेढ़ करोड़ रुपए का प्रावधान है। तीनों एजेसिंयों के कुल 160 कर्मचारी लगे हुए हैं जो तीन पालियों में स्टेशन की सफाई करते हैं। सफाई कर्मचारियों के मुताबिक पिछले दो सालों में स्टेशन परिसर में नवीनीकरण का कार्य चल रहा है। इस वजह से सफाई में दिक्कत आ रही है। वहीं स्टेशन के एडीआरएम रवि प्रकाश चतुर्वेदी का तर्क है कि शहर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। इसका असर स्टेशन पर भी पड़ता है। स्टेशन परिसर में मरम्मत कार्य की वजह से भी सफाई में दिक्कत आ रही है। उम्मीद है कि जल्द ही सफाई के मोर्चे पर कामयाबी मिल जाएगी। बता दें कि वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन की गिनती देश के सर्वाधिक व्यस्त स्टेशनों में होती है। यहां से प्रतिदिन लगभग 200 गाडिय़ां गुजरती हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन लगभग पचास हजार की संख्या में मुसाफिर कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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