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कश्मीर पर भारत की कूटनीति सफल: प्रोफेसर पंत

raghvendra
Published on: 25 Oct 2019 9:11 AM GMT
कश्मीर पर भारत की कूटनीति सफल: प्रोफेसर पंत
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति को लेकर खूब चर्चा हो रही है। विपक्ष मोदी की विदेश नीति को खारिज करने पर तुला है तो एक बड़ा तबका विदेश नीति के लिहाज से इसे भारत का स्वर्णिम काल कह रहा है। भारत वर्तमान में अपने पड़ोसियों से संबंधों को लेकर नये दौर में प्रवेश कर रहा है। जहां पाकिस्तान से उसकी नीति आरपार की है तो वहीं महाशक्ति बनने की राह पर निकल चुके चीन के साथ दोराहे की स्थिति दिख रही है। मित्र राष्ट्र नेपाल के साथ अजीबोगरीब द्वंद्व दिख रहा है। नेपाल कभी चीन के करीब होता दिखता है तो कभी आर्थिक नाकेबंदी जैसी कवायदों के बीच वह भारत से रोटी-बेटी का संबंध तोड़ता दिखता है। पड़ोसियों से बनते-बिगड़ते रिश्तों को लेकर अपना भारत की संवाददाता पूर्णिमा श्रीवास्तव ने किंग्स कॉलेज लन्दन के प्रोफेसर और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रेटजिक स्टडीज प्रोग्राम के निदेशक प्रो.हर्ष वी.पंत से लंबी बातचीत की। प्रोफेसर पंत पिछले दिनों दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में व्याख्यान देने आए थे। प्रस्तुत है प्रोफेसर पंत से बातचीत के प्रमुख अंश।

  • जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के बाद भारत की विदेश नीति को किस तरह देखते हैं। क्या यह सही दिशा में है?

भारत की कूटनीति कश्मीर को लेकर सफल साबित हो रही है। धारा 370 हटाने के बाद भारत कश्मीर को लेकर जिस प्रकार विश्व पटल पर कूटनीतिक कदम बढ़ा रहा है उससे पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। पाकिस्तान हमेशा से ही भारत के लिए सिरदर्द बना रहा है,लेकिन भारत की कूटनीति पूर्ववर्ती सरकारों के मुकाबले काफी सकारात्मक दिख रही है। केवल विदेश नीति ही नहीं, सुरक्षा नीति के फ्रंट पर भी हम ज्यादा प्रोएक्टिव एप्रोच अपना रहे हैं। देश के अंदर आइडियाज व इंस्टीट्यूशन्स को भी नया शेप दिया जा रहा है। मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया था कि अब भारत दुनिया के सभी 190 से ज्यादा देशों से संपर्क व संबंध कायम करेगा। पिछले 6 वर्षों में सरकार ने इस दिशा में काफी कोशिशें की हैं। पाकिस्तान को पूरी दुनिया में अलग-थलग करने में भी भारतीय कूटनीतिक खेमे को जबरदस्त कामयाबी मिली है। कुछ वर्ष पहले तक भारत पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर अत्यधिक संयम की नीति अपनाता रहा। लेकिन इससे हमें लगातार नुकसान हुआ। पाकिस्तान ने यह समझ लिया कि भारत हमेशा ऐसा ही करेगा। लिहाजा आतंकवाद का निर्यात करना पाक की विदेश नीति का एक अंग बन गया। लेकिन मोदी सरकार ने अनावश्यक संयम और सीमित विकल्पों के साथ प्रतिक्रिया देने की रणनीति बदल दी। केवल विदेश नीति ही नहीं, सुरक्षा नीति के फ्रंट पर भी हम ज्यादा प्रोएक्टिव एप्रोच अपना रहे हैं। पहले सर्जिकल स्ट्राइक और बाद में सीधे पाकिस्तानी जमीन पर जाकर एयर स्ट्राइक करके और इसकी खुली घोषणा करके भारत ने ये जता दिया है कि अब दक्षिण एशिया में शांति कायम रखना अकेले भारत की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि अब ये पूरी तरह पाकिस्तान की जिमेदारी है।

  • चीन से दोस्ती पर हमेशा सवाल होते रहे हैं। वह पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़ा है और भारत से भी रिश्तों को मजबूत दिखाना चाहता है। इस पर क्या कहेंगे?

चीन से दोस्ती हमेशा संदेह वाली रही है। वह कभी भी बेहतर दोस्त साबित नहीं हो सकता है। पर, डोकलाम प्रकरण के बाद भारत ने जिस मजबूती से वैश्विक स्तर पर अपने दखल को बढ़ाया है, उसे कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा सकता है। चीन भारत के साथ शिखर वार्ता को लेकर विवश हुआ है। अमेरिका से भारत के रिश्तों को भी चीन दरकिनार करने की स्थिति में नहीं है। आज भारत गुटनिरपेक्षता की बात नहीं कर रहा। आज हम अन्य शक्तियों के साथ सक्रिय रणनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य साझेदारी करने को तैयार हैं। भारत अब वैश्विक राजनीति में बैलेंसिंग रोल नहीं अपनाना चाहता। खुद को विश्व की एक उभरती महाशक्ति के तौर पर देख रहा हिंदुस्तान अब उन मंचों पर बैठना चाहता है जहां पर वैश्विक नीतियां बनायी या बदली जाती हैं। इसीलिए अमेरिका में वहां के राष्ट्रपति ट्रंप के साथ एक भव्य कार्यक्रम करने के कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी शी जिनपिंग को भारत बुलाकर उनका शानदार स्वागत करते हैं। आज के भारत की विदेश और रक्षा नीति कहीं ज्यादा डायनामिक और प्रो एक्टिव है। हम चीन के साथ डबल ट्रैक पर चल रहे हैं। जहां सहयोग सम्भव है वहां सहयोग कर रहे हैं, जहां विरोध जरूरी है,वहां विरोध कर रहे हैं।

  • पाकिस्तान को विश्व में अलग-थलग करने को लेकर भारतीय नीति सही दिशा में है या भटक रही?

आज पाकिस्तान हमारे लिए स्ट्रेटेजिक प्रॉब्लम नहीं, हमारी स्ट्रैटेजिक प्रॉब्लम चीन है। पाकिस्तान आज हमारे सामने सिर्फ इसलिए तनकर खड़ा है क्योंकि उसके साथ चीन है। बड़े वैश्विक मंचों पर चीन लगातार भारत की राह में रोड़े अटका रहा है। लिहाजा भारत ने भी अब पाकिस्तान की समस्या को चीन के साथ जोडक़र देखना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान को पूरी दुनिया में अलग थलग करने में भी भारतीय कूटनीतिक खेमे को जबरदस्त कामयाबी मिली है। कुछ वर्ष पहले तक भारत पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर अत्यधिक संयम की नीति अपनाता रहा। लेकिन इससे हमें लगातार नुकसान हुआ। मोदी सरकार ने अनावश्यक संयम और सीमित विकल्पों के साथ प्रतिक्रिया देने की रणनीति बदल दी।

  • नेपाल से हमारे संबंध रोटी-बेटी के हैं। पर वह आज चीन से अधिक करीब दिख रहा है। इस पर आप क्या कहेंगे?

इसमें कोई संदेह नहीं कि नेपाल से चीन की नजदीकियां पिछले कुछ साल में भारत की तुलना में काफी बढ़ी हैं। नेपाल का युवा वर्ग अब भारत से सांस्कृतिक रिश्तों को लेकर पूर्व की तरह संजीदा नहीं है। नेपाल के युवा के सोचने का दायरा बदला है। वह पूरे विश्व को देख रहा है। पिछले वर्षों में बार्डर पर हुई नाकेबंदी की नेपाल अभी भी गांठ बांधे हुए है। इसे लेकर नेपाल के बुद्धिजीवी और युवा वर्ग में काफी गुस्सा दिख रहा है। चीन नेपाल में संचालित अपनी योजनाओं को बेहतर तरीके से पूरा कर रहा है। वहीं भारत घोषित परियोजनाओं को पूरा करने में चीन की तरह संजीदा नहीं दिख रहा है।

  • चीन की नेपाल के साथ बढ़ रही नजदीकियां क्या भारत के लिए खतरे की घंटी है?

चीन के व्यापारिक और सांस्कृतिक दखल के बाद भी नेपाल भारत के रिश्तों को दरकिनार नहीं कर सकता है। आज भी नेपाल से हमारा रोटी-बेटी का संबंध है। नेपाल के नए संविधान में भले ही धर्मनिरपेक्षता को लेकर नये सिरे से व्याख्या हो रही हो पर उसकी मान्यता हिन्दू राष्ट्र के रूप में ही है। भारत और नेपाल के बीच धार्मिंक और सांस्कृतिक समानता की काट चीन के पास नहीं है। भारत-नेपाल का संबंध सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ता भावना के बंधन में बंधा है। यही भारत-नेपाल संबंध के लिए ट्रंप कार्ड है।

  • फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान को लेकर खूब विवाद हुए है। अब राफेल भारत आ रहा है। इससे भारत कितना मजबूत होगा?

राफेल के आने से एयरफोर्स को काफी मजबूती मिलेगी। राफेल काफी अत्याधुनिक जहाज है। विवादों से बचने के लिए भारत रक्षा सौदों से बचता रहा है। यह बात भारतीय एयरफोर्स के लिए काफी खतरनाक साबित हो रही थी। डिफेंस को लेकर भारत की नीति बदली है। इससे भारत को ताकतवर देशों की कतार में मजबूती से खड़ा होने में मदद मिलेगी।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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