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Kedarnath Singh's Birth Anniversary: केदारनाथ सिंह काव्य जगत के ऐसे दीपक, जिसने लोक प्रकाशित किया
Kedarnath Singh's Birth Anniversary: सात जुलाई को केदारनाथ सिंह (Kedarnath Singh) की जयंती है। समकालीन कविता के क्षेत्र में केदारनाथ सिंह एक बहुत बड़ा नाम है।
Kedarnath Singh's Birth Anniversary: सात जुलाई को केदारनाथ सिंह (Kedarnath Singh) की जयंती है। समकालीन कविता के क्षेत्र में केदारनाथ सिंह एक बहुत बड़ा नाम है। ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले वह हिन्दी के दसवें साहित्यकार (Hindi 10th Litterateur) थे। उन्हें मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार (Maithilisharan Gupta Award), दिनकर पुरस्कार (Dinkar Award), साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) भी मिला। केदारनाथ के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी कविताओं (Kedarnath Singh Poems) का अंग्रेजी, स्पेनिश, रुसी, जर्मन आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ।
वरिष्ठ गद्यकार विनोद शंकर शुक्ल ने केदारनाथ सिंह पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था कि उनकी वरिष्ठता को देखते हुए ही उन्हें ज्ञानपीठ के लिए चुना गया। हिन्दी काव्य (Hindi Kavya) के क्षेत्र में वे ऐसे दीपक हैं, जिनसे कई दीपक जल रहे हैं। उनकी कविताओं से नए कवि आकर्षित हुए हैं। उनके नाम पर कोई विवाद नहीं है। वे कविता के शिखर पुरुष हैं। उनकी काव्य-साधना इतनी लंबी है कि वे बीज से वटवृक्ष बने हैं। सोने की तरह तपकर खरे हुए हैं। 1972 से उनकी कविताएं पढ़ रहा हूं। समकालीन समाज में उनकी कविताओं की गहरी पकड़ है।
'केदारनाथ सिंह तीसरे सप्तक के कवि'
वरिष्ठ आलोचक डॉ.राजेन्द्र मिश्र ने भी कहा था कि केदारनाथ सिंह तीसरे सप्तक के कवि हैं। उनकी कविताओं की दुनिया एक ऐसी दुनिया है जिसमें रंग,रोशनी,धूप,चंद्र,दृश्य एक दूसरे में खो जाते हैं। वे कविता के क्षेत्र में 50 साल से सक्रिय हैं। उनकी कवि मनीषा निरंतर अप्रत्याशित अरपों का संधान करती है। उनकी कविताएं नितांत मनुष्य केन्द्रित नहीं है, उसमें चर, अचर दोनों प्रकार की दुनिया है।
केदारनाथ सिंह की बॉयोग्राफी (Kedarnath Singh Biography)
परिचय की बात करें तो केदारनाथ सिंह का जन्म (Kedarnath Singh Ka Janm) 7 जुलाई 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में एक किसान परिवार में हुआ था, इनके पिता का नाम डोमन सिंह एवं माता का नाम लालझरी देवी था, इनका गाँव चकिया लगभग पांच हजार की आबादी वाला गांव है तथा यह बलिया जिले के अंतिम पूर्वी छोर पर गंगा एवं सरयू नदी की गोद में बसा है।
केदारनाथ सिंह की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राथमिक विद्यालय में हुई, अपने गांव में आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने उपरांत केदारनाथ सिंह बनारस चले आये और यहीं पर इंटर की पढाई करने के साथ ही उदय प्रताप कालेज से स्नातक तथा इन्होंपने बनारस विश्वविद्यालय से सन् 1956 ई. में हिन्दीं में एम.ए. और सन् 1964 ई. में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इन्हों ने अनेक कॉलेजों में पढाया और अन्त में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के हिन्दी. विभाग के अध्य्क्ष पद से सेवा-निवृत्त हुए। इन्होंने कविता व गद्य की अनेक पुस्तकें लिखीं।
केदारनाथ सिंह ने 1952-53 के आसपास कविता लेखन शुरू किया और उनकी लेखनी अविराम लगभग छह दशक तक चली। तीसरा सप्तक में भी उनकी कविताएं सम्मिलित की गईं।
केदारनाथ सिंह की काव्यगत विशेषताएं (Kedarnath Singh ki Kavyagat Visheshta)
केदार नाथ सिंह की कविताओं की जीवनी लोक जीवन का सौंदर्य और संघर्ष रहा। प्रारंभिक रचनाओं में भले ही प्रेम या अन्य कोई विषय रहा हो उन्होंने लोक को उसमें ढाला जैसे 'रुको, आंचल में तुम्हारे यह समीरन बांध दूं, यह टूटता प्रन बांध दूं। एक जो इन उंगलियों में कहीं उलझा रह गया है फूल-सा वह कांपता क्षण बांध दूं।
कवि केदारनाथ की अंतिम कविता
जीवन के अंतिम संग्रह में कवि केदारनाथ ने "जाऊंगा कहां" को अपनी अंतिम कविता के रूप में रखा, जिसकी कुछ लाइनें संसार से विदा होने की आहटें दे गई थीं। "जाऊंगा कहाँ, रहूँगा यहीं किसी किवाड़ पर, हाथ के निशान की तरह पड़ा रहूंगा किसी पुराने ताखे, या सन्दुक की गन्ध में"।