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बदले की नहीं बल्कि बदलाव की है भारतीय संस्कृति: चिदानन्द सरस्वती
परमार्थ निकेतन शिविर, अरैल सेक्टर 18 में विश्व के 42 देशों से आये आदिम जाति-आदिवासी, जनजाति के लोगों ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती के पावन सानिध्य में संगम में डुबकी लगाकर विश्व एक परिवार है का संदेश दिया।
आशीष पाण्डेय
कुम्भ नगर: परमार्थ निकेतन शिविर, अरैल सेक्टर 18 में विश्व के 42 देशों से आये आदिम जाति-आदिवासी, जनजाति के लोगों ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती के पावन सानिध्य में संगम में डुबकी लगाकर विश्व एक परिवार है का संदेश दिया।
गिल रॉन शमा और उनके ग्रुप ने परमार्थ निकेतन शिविर से ली विदाई
परमार्थ निकेतन शिविर के पावन तट पर इजरायल, यमन, इरान, टर्की और अमेरिका से आये सुरों के सम्राट गिल रॉन शमा और उनके शिवा बैंड ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती का आशीर्वाद लेकर संगम के तट से विदा ली। शिवा ग्रुप के सदस्यों ने यहां से चलते-चलते नदियों के संरक्षण का संकल्प लेकर प्रस्थान किया।
सूफी ग्रुप ने संगम के तट पर हिब्रू, संस्कृत और हिन्दी भाषा में अद्भुत, दिव्य और अलौकिक संगीत की प्रस्तृति दी। इस संगीत कार्यक्रम की शुरूआत गिल रॉन शमा ने ओम ध्वनी से की, सचमुच यह भारतीय संस्कृति के लिये गर्व का विषय है। सभी देशी-विदेशी श्रद्धालु संगीत की सुर लहरों में मस्त होकर थिरकने लगे। उन्होने संगीत के माध्यम से विश्व की प्रदूषित होती नदियों को अविरल और निर्मल बनाने का संदेश दिया।
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भारत, स्पेन, ब्राजील, पूर्तगाल, चीन, मैक्सिको, क्रेच, बेल्जियम, अमेरिका, कोलम्बिया, बोलबियेनो, नीदरलैण्ड, पेरू, अर्जेन्टीना, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, इटली, नार्वे, चीली, जर्मनी, तिब्बत, भूटान, रूस, इजरायल में रहने वाले चेरोकी, पेरू से आने वाले कैकेटाइबो, इस्कोहनुया, मैसिगेन्का है। बोलिविया से अयमर्स लोग है, आस्रोगोत्स, मरकॉमनिक्स, फैंक्स वंडल्स, जर्मनी से नवाजो, चेरोकी अमेरिका से अट्रेबट्स, बेलगैस एवं यू. के. से कान्तरि असिस एवं नवाजो जनजातीय समुदाय के लोग तथा सुदूर उत्तर भारत में रहने वाले खासी और गारो जनजातीय समुदाय के लोग ने कहा कि भारत आकर विश्व के सबसे बड़े मेले में भाग लेना जीवन का विलक्षण अनुभव है। उन्होने कहा कि कुम्भ नदियों के तट पर होने वाला अद्भुत महोत्सव है।
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विश्व के विभिन्न देशों से आये कीर्तनियों ने राधे-कृष्णा की मधुर ध्वनी और संगीत के साथ संगम में डुबकी लगायी। पहली बार इतने देशों के आदिवासी प्रमुखों ने कुम्भ में डुबकी लगायी और बोले कि लगता है मानों स्वर्ग में आ गये हो। भारतीय श्रद्धा को देख कर वे गदगद हुये और कहा कि अद्भुत लोग है भारत के बस एक गठरी लिये चले आ रहे है संगम के तट पर और बस एक ही भाव कि एक डुबकी लग जाये।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि आज कुम्भ में एक ऐसा कुम्भ हो रहा है जो पूरे विश्व को संगम का दर्शन करा रहा है। यही तो है संगम के तट से संगम का संदेश जहां पर सारी संस्कृतियां मिल जाती हो; एक हो जाती हो एक परिवार बना देती हो। आज इस संगम के तट से पूरे विश्व को यही संदेश है कि इस देश के संगम ने, इस देश के संतो ने हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम् को बनाये रखने की कोशिश की। भारत के ऋषियों ने गुफाओं में रहकर विश्व एक परिवार है की संस्कृति को बनायें रखने की कोशिश की। उन्होने कहा कि भारत धरती का एक टुकड़ा नहीं बल्कि भारत एक जीता-जागता राष्ट्र है। भारत की संस्कृति बदले की नहीं बल्कि बदलाव की संस्कृति है।
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चिदानन्द ने कहा की भारत के यशस्वी और ऊर्जावान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कर्मयोगी योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों ने कुम्भ को दिव्य कुम्भ और भव्य कुम्भ बनाया ताकि विश्व को संदेश जा सके कि किस प्रकार एक छोटे से शहर में पूरे भारत को समाया जा सकता है। भारत के दिल में कोई दीवार नहीं है बल्कि भारत के दिल में तो पूरे विश्व को समाने हेतु विशाल हृदय है। यहां पर पूरा विश्व एक परिवार की तरह रह सकता है, जी सकता है। जो भी यहां आया वह भारत में समा गया, एक हो गया, एक परिवार बन गया। भारत में कोई धर्म आया हो या कोई समुदाय आया हो सब एक परिवार की तरह समा गये।
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पैट्रिक ने कहा कि यह केवल भारत में ही सम्भव है, कहीं भी दुनिया के किसी भी देश में यह सम्भव नहीं है। यदि भारत न आते तो कभी भी यह दृश्य देखने को न मिलता।
चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि विश्व के विभिन्न देशों से आये लोगों को मां गंगा, यमुना और सरस्वती ने आपनी ओर खींचा है, उनकी आस्था ने खींचा है और भारतीय अध्यात्म ने खींचा है। इसलिये हमें अपने अध्यात्म को, अपनी गंगा को, अपनी नदियों को और जलाशयों को बचाकर रखना होगा। स्नान करने के बाद सबने भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया तथा जल बचाने हेतु साथ मिलकर काम करने का संकल्प लिया।
साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि कीवा पर्व प्रकृति से सान्निध्य का पर्व है। इसमें पृथ्वी के गर्भ मे अग्नि, मृदा, जल, पत्थरों और चारों दिशाओं का विशेष महत्व है। कीवा पर्व के माध्यम से जल संरक्षण का संदेश प्रसारित किया जा रहा है। वास्तव में कुम्भ मधुर मिलन का पर्व है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विश्व के विभिन्न देशों से आये आदिम जाति-आदिवासी और जनजाति समुदाय के लोगों को अपने जलस्रोत्रों और जलाशयों को शुद्ध रखने का संकल्प कराते हुये कहा कि पानी है तो पीढ़ियां है, पानी है तो प्रयाग है और पानी है तो कुम्भ है अतः पानी को बचाना नितांत आवश्यक है।