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मुर्दों के मसीहा: सालों से लावारिस लाशों को सुपुर्द-ए-खाक कर रहे हाशमी
मीरजापुर के केएम हाशमी पिछले 46 वर्षों से लावारिस लाशों को कंधा देकर उनको सुपुर्द-ए-खाक करा रहे हैं।
मीरजापुर: इंसान जिंदा रहता है तो उसके अनेकों ख्वाब रहते है, लेकिन जब आखिरी सांसे गीन रहा होता है तो उसकी अपनी अंतिम इच्छा होती है। वह अपनों के कंधों का सहारा खोजता है, लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको मरने के बाद भी अपनों का साथ नसीब नहीं हो पाता। ऐसे लावारिस लाशों के लिए मीरजापुर के केएम हाशमी हमेशा अपने कंधे का सहारा लेकर खड़े रहते हैं। यह कोई अरबपति या पैसे वाले इंसान नहीं है। यह एक दर्जी का कार्य करते थे, यह पिछले 46 वर्षों से लावारिस लाशों को कंधा देकर उनको सुपुर्द-ए-खाक करा रहे हैं। हाशमी 2000 से अधिक लावारिस लाशों को सुपुर्द-ए-खाक करा चुके हैं। हाशमी मुस्लिम समुदाय के लाशों को रीति-रिवाज से सुपुर्द-ए-खाक करते हैं वहीं, वे हिंदू धर्म के भी लावारिस लाश मिलने पर सहायता करते हैं।
लावारिस शवों को देते है कंधे का सहारा
शहर के रमई पट्टी इलाके के रहने वाले केएम हाशमी अपने उस्ताद मोहम्मद रफीक जो रिश्ते में मामू लगते थे, उनके साथ दर्जी का काम सीखा करते थे, हाशमी को अज्ञात शव के सुपुर्द-ए-खाक करने की प्रेरणा उन्हीं से मिली। सन 1955 से लेकर 1974 तक मामू रफीक के साथ मिलकर लावारिस लाशों को सुपुर्द-ए-खाक किया करते थे। उनके इंतकाल के बाद हाशमी 1974 से अकेले लावारिस शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर अपना फर्ज अदा कर रहे हैं।
विपरीत परिस्थितियों में भी बने रहे मिशाल
विपरीत परिस्थितियों में भी हाशमी परेशान नहीं होते उन्होंने बताया कि चाहे दिन हो या रात, सर्दी हो या बरसात अपने मिशन से कभी पीछे नहीं हटे। केएम हाशमी ने साबित किया है कि जिसका कोई नहीं होता है उसका भी सहारा भगवान होते हैं। लावारिस शवों के साथ इंसानियत का रिश्ता पूरी शिद्दत से निभाने वाले हाशमी बताते हैं कि 1974 से लेकर 2007 तक में अपने पैसे खर्च कर सुपुर्द-ए-खाक करते थे। एक शव सुपुर्द-ए- खाक करने में 4 से 5 हजार रुपये तक का खर्च आता है, हम आपस में मिलकर खर्च को वहन करते हैं, कभी 10 तो कभी 25 लोग भी मौके पर शामिल हो जाते हैं। यह सभी लोग अपनी स्वेच्छा से सहयोग करते हैं।लावारिश शव मिलते ही इन लोगों में से एक शख्स कफन तो दूसरा 700 रुपये की मदद करता है।
कोविड के दौरान तीन शवों को कराया सुपुर्द-ए-खाक
कोरोना काल में जहां लोग एक-दूसरे से दूरी बना कर रहते थे। वहीं केएम हाशमी लावारिस शवों के साथ रहे। कोरोना काल में भी इन्होंने तीन लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराया। आखरी शव इन्हें हलिया थाना क्षेत्र के बरौंधा चौकी अंतर्गत मिला था, जिसे मुस्लिम रीति-रिवाज से सुपुर्द-ए-खाक कराया, इनको कभी सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज से तो कभी मिर्जापुर के चुनार, हलिया, जमालपुर के साथ ही मोर्चरी में रखे लावारिस शवों की सूचना वहां लाने वाला सरजू देता है, पता चलते ही केएम हाशमी लावारिस शव का वारिस बनकर अंतिम संस्कार करने में जुट जाते हैं।
कब्रिस्तान की कमेटी ने दी जगह
कब्रिस्तान की कमेटी ने मुस्लिम लावारिस शव के अंतिम संस्कार करने में कोई बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए कब्रिस्तान कमेटी भी इस काम में सहयोग कर रही है। जितने भी लावारिस शव आएंगे, उनके दफनाने के लिए कमेटी ने जगह दे रखी है। शहर के पक्का पोखरा और टेढ़वा कब्रिस्तान में शवों को सुपुर्द-ए-खाक किया जाता है, 2000 शवों में से ज्यादातर पुरुषों के शवों का ही अंतिम संस्कार हाशमी ने किया है। महिलाओं की पहचान नहीं होने पर लोग बताते हैं कि महिला अल्लाह का नाम लेती थी। इसी से उसके मुस्लिम होने की पहचान होने पर उन्हें भी मिट्टी दी जाती है।
हाशमी बोले: छोटा बेटा संभालेगा जिम्मेदारी
मुस्लिम समुदाय के शवों को सुपुर्द-ए-खाक कराने वाले केएम हाशमी बताते हैं कि इस काम में मुझे बहुत सुकून मिलता है। इसका मुझे फायदा भी है। आज हमारे बेटा-बेटी बिल्कुल सुरक्षित हैं, तीन बेटों और चार बेटियों के पिता हाशमी ने बताया कि यह काम रुकेगा नहीं चलता रहेगा। उन्होंने बताया कि छोटा बेटा रिजवाक इसकी जिम्मेदारी हमारे न रहने पर संभालेगा।
रिपोर्ट : बृजेन्द्र दुबे
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