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काशी: धधकती चिताओं के बीच घुँघरुओं की झंकार, सालों से कायम है अनूठी परंपरा

मोक्ष के तट मणिकर्णिका घाट पर एक अनोखी महफ़िल सजी। एक तरफ चिताएं जल रही थीं तो दूसरी ओर घुँघरुओं की झंकार थी।

Ashutosh Singh
Published on: 20 April 2021 12:02 PM IST (Updated on: 20 April 2021 1:43 PM IST)
काशी: धधकती चिताओं के बीच घुँघरुओं की झंकार, सालों से कायम है अनूठी परम्परा
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मणिकर्णिका घाट (फोटो- सोशल मीडिया)

वाराणसी: मोक्ष के तट मणिकर्णिका घाट पर एक अनोखी महफ़िल सजी। एक तरफ चिताएं जल रही थीं तो दूसरी ओर घुँघरुओं की झंकार थी। मरघट में सजी महफ़िल रातभर चलती रही। समाज के हाशिये पर रहने वाली नगर वधुएं बाबा महाश्मशान नाथ की पहले आरती उतारती हैं। इसके बाद उन्हें नृत्यगंजली देती हैं।

दरअसल काशी में चैत नवरात्री के सप्तमी की रात बाबा महाश्मशान नाथ का वार्षिक श्रृंगार समारोह आयोजित किया जाता है। इस दिन शहर की नगर वधुएं श्मशान घाट पर आरती हैं और नृत्य पेश करती हैं। काशी की ये परम्परा सालों से चली आ रही है। नृत्याँजलि पेश करने के पीछे मान्यता है। नगर वधुएँ बाबा के दरबार में इस उम्मीद के साथ नृत्य करती हैं कि अगले जन्म नगर वधु से मुक्ति मिलेगी। बनारस के लोगों को इस समारोह से बेसब्री से इंतजार रहता है। लेकिन इस बार कोरोना की वजह से कार्यक्रम सिर्फ प्रतीकात्मक तौर पर आयोजित किया गया।

मणिकर्णिका घाट (फोटो- सोशल मीडिया)


सालों से क़ायम है परम्परा

कहते हैं काशी में मौत पर भी उत्सव मनाया जाता है। नगर वधुओं का नृत्य-संगीत का कार्यक्रम इस कहावत को सच साबित कर रहा था। कभी ना ठंडी पड़ने वाली मणिकर्णिका घाट पर एक तरफ चिताएं धधक रही थी, तो दूसरी तरफ घुंघरू की झंकार सुनाई दे रही थी। आम लोगों के लिए यह यकीन कर पाना मुश्किल था।

Roshni Khan

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