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मिलिए कृष्णपाल सिंह से, लिखी जल संरक्षण की नई कहानी, 700 साल पुराना तालाब हो गया जिन्दा
लखनऊ: बागपत कई मायनो में अनूठा है। यहाँ राजनीति से लेकर समाज तक की कहानिया लिखने का चलन है। इसी बागपत जिले के गांव डौला एक बार तब चर्चा में आया था जब रजेरा सिंह को रेमन मैग्सेसे अवार्ड मिला था। अब यही गांव फिर से उसी तरह के एक नए काम के लिए दुनिया में शोध का विषय बन गया है। गांव में जनसहयोग से कृष्ण पाल सिंह ने 700 साल पुराने , मर चुके तालाब को जिन्दा कर दिया है। तालाब संरक्षण की यह कहानी अब शोध का विषय बन गई है। अमेरिकी विद्यार्थियों को भी इस तालाब की कहानी सुनाई-दिखाई जाएगी ताकि वे जल संरक्षण का पाठ ठीक से सीख और समझ सके।
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राजेंद्र सिंह ही बने प्रेरणा
डौला अब एक रोचक कहानी जैसा लगता है। बागपत जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर इस गाँव की आबादी करीब 15 हजार है। यहां की 80 फीसद परिवार खेती पर निर्भर है। वर्ष 1998 में डौला निवासी राजेन्द्र सिंह को जल संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिये 2001 में मैग्सेसे पुरस्कार मिला।राजेंद्र सिंह को अब दुनिया जलपुरुष के रूप में जानती है। इसी से प्रेरित होकर गाँव के ही कृष्णपाल सिंह ने ग्रामीणों से बात की तो वे भी इस मुहिम में शामिल हो गये। ग्रामीणों ने एक-एक कर गाँव के सभी तालाबों से अवैध कब्जा हटवाया।आखिर में सबसे बड़े गोसाईं वाला तालाब पर काम शुरू हुआ। इस तालाब के जल संग्रहण क्षेत्र में अवैध कब्जों के कारण इसमें पानी आना बन्द हो गया था।
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25 साल से बिलकुल सूखा था तालाब
कृष्णपाल सिंह बताते हैं कि करीब 25 साल से यह सूखा पड़ा था। 2004 में ग्रामीणों ने पहले अवैध कब्जा हटवाया फिर तालाब की खुदाई और सौन्दर्यीकरण शुरू हुआ। दिसम्बर 2016 में प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के जरिए 45 लाख रुपए की मदद मिली तो करीब 20 साल से बन्द 13 किलोमीटर लम्बे नाले की सफाई कराकर हिंडन नदी से तालाब तक पानी लाया गया। तालाब अब लबालब हैं तो भूजल भी रिचार्ज होगा और फसलें भी लहलहाएँगी।
डौला गाँव 700 साल पहले बसा था
बताया जा रहा है कि डौला गाँव 700 साल पहले बसा था। बताया जाता है कि तब गोसाईं बाबा ने इस तालाब की खुदाई कराई थी। इस तालाब में 14 किलोमीटर क्षेत्र का बारिश का पानी आता था, लेकिन करीब 25 साल से जगह-जगह अतिक्रमण के चलते तालाब में पानी आना बन्द हो चुका था। बताते हैं कि यह इकलौता तालाब है, जो हिंडन नदी से पानी लेने की बजाय उल्टे पानी देकर उसे रिचार्ज करता था। गाँव में कुल 17 तालाब हैं। कुछ तालाबों का नामकरण जातियों पर किया गया है। जैसे कि वाल्मीकी तालाब, ठाकुरों वाला तालाब आदि। ऐसे इधर के अधिकाँश तालाबों के साथ जुड़ा है।
कैलीफिर्निया (अमेरिका) और डीयू के शोधार्थियों ने शुरू किया शोध
हम्बोल्ट स्टेट यूनिवर्सिटी, कैलीफिर्निया (अमेरिका) और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थियों की एक सयुक्त टीम भार में गिरते भूजल स्तर और जल संरक्षण के प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, जो डौला गाँव पहुँची। यह टीम इसी जून में चार बार डौला जाकर विस्तृत जानकारी जुटा चुकी है। हम्बोल्ट स्टेट यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया के प्रोफेसर लोनी ग्राफमैन का कहना है कि वे डौला का गोसाईं वाला तालाब के बारे में अपने छात्रों को बताएँगे और इसका वीडियो दिखाकर पानी बचाने का पाठ पढ़ाएँगे।
तालाबों का मिटता वजूद हम सबके लिये चिन्ता की बात
इसी गांव से अपनी पहचान बनाने वाले राजेंद्र सिंह कहते हैं कि पानी की बर्बादी तथा तालाबों का मिटता वजूद हम सबके लिये चिन्ता की बात है। इसे बचाने की पहल करनी होगी। डौला के ग्रामीणों ने 700 साल पुराने तालाब को बचाकर अनूठा काम किया है। कृष्णपाल सिंह का कहना है कि 2001 में राजेन्द्र को जल संरक्षण के लिये मैग्सेसे पुरुस्कार मिला, उनसे प्रभावित हो मैंने गाँव में एक तालाब बनवाया। फिर उन्हीं की प्रेरणा से अपने गाँव के सभी 17 तालाबों का पुनरुद्धार कराया।