×

कुंभ 2019: कल्पवास है कठोर तप, परीक्षा ले रहे हैं इन्द्रदेव

हजारों तप के बरार कल्पवास का पुण्य होता है। कल्पवास करना और उसके सभी नियमों का पालन करना भी कठिन है। यह कोई सुनी हुई बातें नहीं बल्कि शास्त्रों में भी इस तप की कठोरता और कठिनाइयों का वर्णन है। उस कठिनाई के रूप अलग हो सकते हैं। कल्पवास में अपने भौतिक सुखों का त्याग कर लोग मोक्ष की कामना लेकर गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर एक बालू में तंबू लगाकर रह रहे हैं। जिसमें वह सुबह से शाम तक पूजा पाठ व भजन में ही लीन रहते हैं।

Anoop Ojha
Published on: 25 Jan 2019 1:40 PM GMT
कुंभ 2019: कल्पवास है कठोर तप, परीक्षा ले रहे हैं इन्द्रदेव
X

आशीष पाण्डेय

कुंभ नगर: हजारों तप के बरार कल्पवास का पुण्य होता है। कल्पवास करना और उसके सभी नियमों का पालन करना भी कठिन है। यह कोई सुनी हुई बातें नहीं बल्कि शास्त्रों में भी इस तप की कठोरता और कठिनाइयों का वर्णन है। उस कठिनाई के रूप अलग हो सकते हैं। कल्पवास में अपने भौतिक सुखों का त्याग कर लोग मोक्ष की कामना लेकर गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर एक बालू में तंबू लगाकर रह रहे हैं। जिसमें वह सुबह से शाम तक पूजा पाठ व भजन में ही लीन रहते हैं।

यह भी पढ़ें.....मॉरीशस के PM समेत तीन हजार प्रवासी भारतीय पहुंचे कुंभ, ये है कार्यक्रम

एक समय का भोजन और दोनो समय स्नान वह भी इस कड़ाके की ठंड में कठिन तो है ही। उस पर भी अगर परीक्षा का दौर शुरू हो तो आस्था मजबूत हो तभी टिकती है। कुछ ऐसा ही दृश्य इन दिनों मेला क्षेत्र में कल्पवासियों के साथ हो रहा है। बेमोसम की बारिश से जहां तंबुओं में पानी टपक रहा है तो वहीं अंदर रखे कपड़े व बिस्तर भी भीग गए लेकिन कल्पवासी हैं कि इन्द्रदेव की इस परीक्षा को अमृत योग बताकर तप करने पर अडिग हैं।

यह भी पढ़ें.....प्रियंका गांधी जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा प्रयागराज कुंभ, जश्न में डूबे कार्यकर्ता

इसी को आस्था कहते हैं। क्योंकि साधारण मनुष्य जरा सा पानी गिरने पर इधर उधर भागता है और घर में रहने को विवश होता है तो वहीं इस बारिश में तंबुओं में तप करना आध्यात्म का परमसुख प्रदान कर रहा है। इस कड़कड़ाती ठंड और बारिश में भी जिस्म में भस्म लपेटे और धूनि रमाए नागा लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हर कोई संतों का आशीर्वाद लेने को आतुर है। कल्पवास का मूल गीता के इस श्लोक में मिलता है।

विष्णुरेकादशी गीता तुलसी विप्रधेनव:।

असारे दुर्गसंसारे षटपदी मुक्तिदायिनी।

यह भी पढ़ें.....पौष पूर्णिमा आज: संगम में लाखों श्रद्धालु लगा रहे आस्था की डुबकी, कल्पवास शुरू

कल्पवास में इस श्लोक में सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा करना है। भगवान विष्णु परमात्मा के तीन स्वरूपों में से एक हैं और जगत के पालनहार हैं। वही ऐश्वर्य, सुख -समृद्धि और शांति के स्वामी है। श्री हरि विष्णु की पूजा करने से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष सब कुछ प्राप्त होता है। कल्पवास में श्री हरि का जप, गीता पाठ, तुलसी सेवा, गौ दान आदि का विशेष महत्व है। इस कठोर तप में इन्द्रदेव भी परीक्षा ले रहे हैं और यही कठोर तप हजारों यज्ञ के बराबर पुण्य लाभ देता है। इसीलिए कल्पवास मोक्ष का मार्ग है।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

Next Story