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Kushinagar: कप्तानगंज चीनी मिल पर मंडरा रहा बंद होने का खतरा

Kushinagar News Today: पहले उत्तर प्रदेश सरकार की निगम की चीनी मिले बंद हुई। अब कप्तानगंज स्थित निजी क्षेत्र की चीनी मिल भी इसी सत्र में से बंद होने की कगार पर पहुंच गई है।

Mohan Suryavanshi
Published on: 15 Sep 2022 5:10 PM GMT
Kushinagar News
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कप्तानगंज चीनी मिल (न्यूज नेटवर्क)

Kushinagar News: पूर्वांचल का चीनी का कटोरा कहा जाने वाले जनपद से एक-एक करके चीनी मिलें बंद होती चली जा रही हैं। पहले उत्तर प्रदेश सरकार की निगम की चीनी मिले बंद हुई। अब हालात ऐसे बन रहे हैं कि कप्तानगंज के निजी क्षेत्र की चीनी मिल भी इसी सत्र में से बंद होने की कगार पर पहुंच गई है। इस फैक्टरी पर किसानों का 44 करोड़ रूपये के लगभग किसानों का गन्ना मूल्य का बकाया है।

आर्थिक संकट में घिरी चीनी मिल

कप्तानगंज की चीनी मिल के बंद के कगार पर पहुंचने के लिए मिल का लगातार घाटे में होना बताया जा रहा है। इस मिल को सरकारी सहायता नहीं मिल पायी है। जनपद की अन्य चीनी मिलो ने सरकारी कर्जे से लेकर अन्य सुविधाओं का लाभ ले लिया है। लेकिन कप्तानगंज चीनी मिल इन लाभों से वंचित रह गयी है। क्योंकि सरकार ने उन्हीं निजी मिलों को कर्ज दिया जो गन्ना मूल्य भुगतान में अव्वल रहे ।इस मामले में कप्तानगंज चीनी मिल फिसड्डी रहा ।इसलिए वह लाभ नहीं ले पाया ।

चीनी मिल नहीं चलने पर मचा हाहाकार

जनपद के कप्तानगंज चीनी मिल में नए सत्र की गन्ना पेराई को लेकर कोई तैयारी नहीं चल रही है। जबकि नए सत्र के पेराई शुरू होने में लगभग 2 माह शेष बचे हैं। कप्तानगंज चीनी मिल बहुत अधिक गन्ने के क्षेत्रफल के बीच में स्थित है। कप्तानगंज से 14 किलोमीटर दूर रामकोला त्रिवेणी मिल तथा 18 किलोमीटर पिपराइच चीनी मिल है। कप्तानगंज क्षेत्र के जोन में काफी मात्रा में किसान गन्ने की खेती करते हैं। फैक्ट्री के अचानक बंद होने से किसानों में हाहाकार मच जाएगा।

किसानों का कप्तानगंज चीनी मिल से मोहभंग

कप्तानगंज की द कनोरिया चीनी मिल के आर्थिक संकट की वजह से किसानों का 44 करोड़ रूपये बकाया मूल्य का भुगतान नहीं हो पा रहा है । किसान अपने बकाए गन्ने मूल्य के भुगतान को लेकर सशंकित हैं। किसान अपनी गाढ़ी कमाई गन्ने को सिक्योर हाथों में देना चाहते हैं । जहां से उन्हें समय से गन्ने का मूल्य के भुगतान मिल सके। ऐसे में किसान कप्तानगंज चीनी मिल से मोहभंग कर अन्य मिलों को गन्ना देने का विकल्प तलाश रहे हैं।

Prashant Dixit

Prashant Dixit

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