Sonbhadra: खतरे में पौराणिक नदियों का जीवन, लगातार बहाई जा रही कोयले की राख

Sonbhadra: वहीं कभी कछुआ सेंक्चुअरी की पहचान रखने वाले सोन-रेणु-बिजुतल संगम इलाके में कई जलीय जीवों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 16 July 2022 12:18 PM GMT
Coal ash in river in Sonbhadra
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Coal ash in river in Sonbhadra (Image: Newstrack)

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Sonbhadra: एनजीटी की लगातार सख्ती और शासन के निर्देश के बावजूद सोनभद्र की पौराणिक नदियों का जीवन खतरे में हैं। जहां एक तरफ रेणुका नदी और इसके जरिए सोन नदी में लगातार बिजली परियोजना से निकलने वाली कोयले की राख का बहाव जारी है। वहीं प्रदूषण नियंत्रण विभाग, सोनभद्र में प्रदूषण की जांच के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन सचिव की अगुवाई में हाईपावर कमेटी गठित होने की बात कह पल्ला झाड़ ले रहा है।

इसके चलते जहां नदियों के जलस्तर के साथ, आस-पास के जलस्रोतों में प्रदूषण का दायरा बढ़ता जा रहा है। वहीं कभी कछुआ सेंक्चुअरी की पहचान रखने वाले सोन-रेणु-बिजुतल संगम इलाके में कई जलीय जीवों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। हालत यह है कि कागजों पर तो सब कुछ बेहतर होने का दावा किया जाता है लेकिन ओबरा में रेणुका नदी में सीधे बहाए जाने वाले राख की जो स्थिति है, उसमें सुधार की बजाय, उसका और भी विस्तृत स्वरूप दिखने लगा है।


बताते चलें कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से होकर उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने वाली रिहंद नदी पर जहां पिपरी में रिहंद बांध के नाम से विशाल जलाशय का निर्माण किया गया है। वहीं ओबरा में भी इस नदी पर ओबरा बांध का निर्माण किया गया है। इसी बांध से ओबरा परियोजना को पानी दिया जाता है। ओबरा इलाके में आकर इस नदी का नाम रेणुका हो जाता है। परियोजना के साथ ही आस-पास के इलाकों की प्यास बुझाने तथा पौराणिक नदी का दर्जा होने के कारण यह नदी लोगों की श्रद्धा का केंद्र भी है।

छठ पर्व पर इसके तट पर अपार जनसमूह भी देखने को मिलता है। बावजूद नदी में कोयले की राख का सीधे बहाव का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा। 2015 से जब इस मामले को लेकर एनजीटी ने सख्ती बरतनी शुरू की तो रेणुका पार चकाड़ी स्थित ऐश डैम की ऊंचाई बढ़ाई गई। सीधे प्रवाह पर भी कुछ रोक देखने को मिली। एक ट्रीटमेंट प्लांट बिठाकर कागज पर उसका संचालन भी शुरू कर दिया गया लेकिन हकीकत यह है कि राख बांध के पूर्वी इलाके में दो पाइप निकालकर गुड़ुर नाले के जरिए सीधे रेणुका नदी में राख बहाव का रास्ता निकाल लिया गया।

प्रदूषण विभाग कागजों पर करता रहता है नियंत्रण का दावाः

पहले यह पानी सीधे नाले में गिर रहा था। इस बहाव से बांध के दिवारों को कोई नुकसान न पहुंचे, इसके लिए बाकायदे नाले में पानी बहाव के लिए सीढ़ीनुमा रास्ता बना दिया गया है। पूछे जाने पर कहा जाता है कि इसे बारिश के समय होने वाले ओवरफ्लो के लिए बनाया गया है। वर्तमान में जहां पूरा सूबा बारिश के संकट से जूझ रहा है, वहां से ओवरफ्लो वाले रास्ते से लगातार नदी में राखमिश्रित पानी का बहाव और नदी में जगह-जगह बालू के टीलों पर दिखती राख की मोटी परत, जिम्मेदारों के दावों की कलई खोलने के लिए काफी है। दिलचस्प मसला यह है कि हर तीन माह पर प्रदूषण विभाग की टीम प्रदूषण प्रभावित इलाकों, खासकर बिजली परियोजनाओं से निकलने वाली राख की स्थिति जांचने के लिए दौरा भी करती है, बावजूद इन पर संबंधितों की नजर क्यूं नहीं पड़ती? चर्चाओं का बाजार गर्म है।


मले की सीएम सहित अन्य को भेजी गई शिकायतः

रेणुका नदी में राख बहाव को लेकर महिला सुरक्षा एवं जनसेवा ट्रस्ट की अध्यक्ष सावित्री देवी की तरफ से इसको लेकर एक शिकायत सीएम सहित अन्य को भेजी गई है। पत्र के साथ भेजे गए वीडियो और तस्वीरों के जरिए दावा किया है कि रेणुकापार और इससे सटा इलाका जबरदस्त प्रदूषण की चपेट में है। नदी में सीधे राख बहाव से रेणुका नदी के साथ सोन और बिजुल का जलीय जीवन खतरे में है। जलीय जीव-जंतुओं का प्रजनन भी तेजी से प्रभावित हो रहा है। मामले में कमेटी गठित कर जांच की मांग की गई है।

सोन के रास्ते गंगा तक पहुंच रही कोयले की राखः

रेणुका नदी में गिराई जाने वाली राख सिर्फ रेणुका नदी में ही नहीं पट रही, बल्कि इसे गोठानी स्थित सोन-रेणु-बिजुल संगम से होते हुए, सोन नदी के रास्ते पटना में गंगा तक पहुंचने का दावा किया जाता है। नदी में पानी की मात्रा कम होने के साथ ही, सोन नदी में पानी के साथ होता राख का बहाव देखने को भी मिलने लगता है बावजूद इस पर नियंत्रण क्यूं नहीं हो पा रहा? सवाल उठाए जा रहे हैं। उधर, वायरल हो रही तस्वीर और वीडियो तथा राख बांध से रेणुका नदी में बहाई जा रही राख के बाबत जानकारी के लिए क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी टीएन सिंह से सेलफोन पर वार्ता का प्रयास किया गया लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो पाए।

Rakesh Mishra

Rakesh Mishra

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